
ट्रंप-विरोधी माहौल, शुल्क विवाद से बिगड़े भारत–अमेरिका रिश्ते
50% टैरिफ, रूस तेल विवाद और कूटनीतिक तनाव के बीच भारत पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की यात्रा को टालने के पक्ष में है।
स्वतंत्रता के बाद से अब तक भारतीय नेतृत्व हमेशा अमेरिकी राष्ट्रपतियों की भारत यात्रा का बेसब्री से इंतज़ार करता रहा है। कई बार भारतीय नेताओं ने इन दौरों को प्रोत्साहित किया, यहां तक कि इसके लिए लॉबिंग भी की, और यह सुनिश्चित किया कि वॉशिंगटन से आने वाले सम्मानित मेहमान के आगमन से पहले कोई अड़चन न आए।लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत चाहता है कि मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति कम से कम तब तक भारत न आएँ, जब तक देश में व्याप्त ट्रंप-विरोधी माहौल शांत न हो जाए।
रिश्तों में गिरावट
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% शुल्क लगाने के फ़ैसले के बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट आई। इस फैसले ने भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाज़ार में कारोबार करना लगभग असंभव बना दिया। इसके साथ ही, ट्रंप ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर को खुलकर साधा, जिन पर भारत ने हालिया पहलगाम आतंकी हमले का ज़िम्मेदार ठहराया था। ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर भारत की ऊँची टैरिफ नीति की आलोचना की, जिससे पहले दोस्त माने जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रति भारत में नाराज़गी बढ़ गई।
ट्रंप की इस साल के अंत में नई दिल्ली में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने की योजना थी, लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने भारत के साथ चल रही व्यापार वार्ता रोक दी है और संभव है कि अपनी यात्रा रद्द कर दें। पहले यह खबर भारत में चिंता का कारण बनती, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में इसे राहत के रूप में देखा जा रहा है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस समय ट्रंप का गर्मजोशी से स्वागत करना “राजनीतिक रूप से कठिन” होता।
ट्रंप पर बढ़ता विरोध
हाल ही में ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने पर भारत पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने की घोषणा की, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया। यह भारतीय निर्यातकों के लिए अमेरिकी बाज़ार में सामान बेचना लगभग नामुमकिन बना देता है। ट्रंप का कहना है कि भारत की रूसी तेल खरीद से मॉस्को को यूक्रेन युद्ध जारी रखने में मदद मिल रही है। उन्होंने चेतावनी दी है कि 27 अगस्त तक यदि भारत तेल खरीद बंद नहीं करता, तो यह दंडात्मक शुल्क लागू रहेगा।
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा कि उनके विचार में मौजूदा परिस्थितियों में क्वाड शिखर सम्मेलन संभव नहीं है और ट्रंप का भारत आना भी मुश्किल है।
भारत की प्रतिक्रिया और दोहरे मानदंड का आरोप
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “भारत को निशाना बनाना अनुचित और अव्यावहारिक है।” भारतीय पक्ष ने अमेरिका और यूरोपीय संघ पर रूस से तेल खरीद को लेकर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया है। भारत ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक ऊर्जा बाज़ार स्थिर रखने के लिए अमेरिका ने खुद भी रूसी तेल की बड़ी मात्रा खरीदी, जबकि चीन जैसे देशों ने भारत से भी अधिक तेल खरीदा लेकिन उन्हें ट्रंप ने कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाया।भारत ने अपने निर्णय को एक संप्रभु राष्ट्र के आर्थिक और राष्ट्रीय हित सुरक्षित रखने के अधिकार के रूप में सही ठहराया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति दौरों का इतिहास
अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा 1959 में ड्वाइट आइज़नहावर से शुरू हुई। शीत युद्ध के दौरान ये यात्राएँ कम थीं, लेकिन 2000 में बिल क्लिंटन की यात्रा एक टर्निंग प्वॉइंट साबित हुई। इसके बाद जॉर्ज बुश, बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन भी भारत आ चुके हैं। इन दौरों ने दोनों देशों के संबंधों को कई क्षेत्रों में मजबूत किया।
मोदी–ट्रंप रिश्ते और तनाव
मोदी, ट्रंप के व्हाइट हाउस में दूसरे कार्यकाल शुरू होने के बाद मिलने वाले शुरुआती नेताओं में से थे। दोनों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार 500 अरब डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा। लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत–पाक संघर्ष को खत्म करने के तरीकों को लेकर मतभेद, कठिन व्यापार वार्ताएँ, और कृषि–मत्स्य पालन क्षेत्रों में बाज़ार खोलने से इनकार ने रिश्तों में खटास ला दी।
आगे का रास्ता
भारतीय अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा तनाव के बावजूद भारत–अमेरिका संबंधों में दांव पर बहुत कुछ लगा है और इसे फेंक नहीं सकते। एक वरिष्ठ राजनयिक ने कहा, याद रखिए, ट्रंप के बाद भी जीवन है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप के हालिया कदमों के बाद संबंधों को पटरी पर लाने में लंबा समय लगेगा।