इस जंग में पाकिस्तान से हारा भारत, पड़ोसी मुल्क के पक्ष में लामबंद हुए अधिकतर देश
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इस जंग में पाकिस्तान से हारा भारत, पड़ोसी मुल्क के पक्ष में लामबंद हुए अधिकतर देश

भारत को पाकिस्तान से हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि, यह हार सियासी, खेल और सैन्य जंग न होकर कुछ और ही है.


Basmati rice ownership: भारत और पाकिस्तान का कई मोर्चों पर संघर्ष करते नजर आते रहते हैं. हालांकि, अधिकतर मोर्चों पर भारत ही जीतता आया है. लेकिन आज उसे पाकिस्तान की तरफ से हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि, यह हार सियासी, खेल और सैन्य जंग न होकर खाने के सामान को लेकर है. हां जी जनाब, इस खास चीज का नाम 'बासमती' चावल है और इसको लेकर भारत और पाकिस्तान से लेकर पूरी दुनिया भर में दीवानगी है. क्योंकि इसकी महक खाने में चार चांद लगा देती है. लेकिन अब इसी बासमती चावल के मालिकाना हक को लेकर वैश्विक लड़ाई में भारत की पाकिस्तान के हाथों हार हुई है.

न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने आधिकारिक रूप से बासमती को पाकिस्तान का उत्पाद मान लिया है. वहीं, यूरोपीय संघ से भी पाकिस्तान के पक्ष में इसी तरह का फैसला आ सकता है. ऐसे में भारत के बासमती चावल पर पाकिस्तान के दावे को कमजोर करने के प्रयास असफल हो गए हैं. क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञों और इतिहासकारों ने यह साबित कर दिया है कि बासमती की उत्पत्ति पाकिस्तान के हाफिजाबाद जिले से हुई थी.

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भारत के दावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया और यूरोपीय संघ से भी जल्द ही इसी तरह का फैसला आने की संभावना है. बता दें कि पाकिस्तान का बासमती चावल अपनी उच्च गुणवत्ता और खुशबू के लिए दुनिया भर में मशहूर है.

पाकिस्तान के बासमती निर्यात में 4 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है. जिससे यह 27 अरब डॉलर के वैश्विक चावल बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है. पाकिस्तान के बढ़ते निर्यात से चिंतित भारत ने बासमती व्यापार पर नियंत्रण पाने के प्रयास किए हैं. लेकिन इसके प्रयास उलटे पड़ गए हैं.

पाकिस्तान के निर्यातकों का कहना है कि भारत असली बासमती का उत्पादन नहीं करता है. पाकिस्तान का बासमती दुबई भेजा जाता है. जहां से भारतीय व्यापारी इसे अपना बताकर आगे निर्यात करते हैं. ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी भारत के दावों को कमजोर करते हैं. खाद्य और कृषि संगठन (FAO) को दिए गए डेटा के अनुसार, 1965 से पहले भारत ने एक भी दाना बासमती का निर्यात नहीं किया था. जबकि पाकिस्तान पहले ही 1960 के दशक में इसे यूरोप और खाड़ी देशों में निर्यात कर रहा था.

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