जब भारत बना था ईरान-इज़राइल टकराव का मैदान, 13 साल पुरानी घटना
x
ईरान- इज़राइल पिछले 12 दिन तक एक दूसरे के साथ जंग में थे।

जब भारत बना था ईरान-इज़राइल टकराव का मैदान, 13 साल पुरानी घटना

2012 में दिल्ली में इज़राइली अधिकारी की पत्नी पर बम से हमला हुआ। जांच में ईरानी साज़िश, कुद्स फोर्स की भूमिका और भारतीय पत्रकार की गिरफ़्तारी सामने आई थी।


13 फरवरी 2012 की दोपहर दिल्ली की सर्द हवाओं के बीच, एक ऐसा धमाका हुआ जिसने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींच लिया। इस दिन, इज़राइली रक्षा अटैची की पत्नी द्वारा इस्तेमाल की जा रही इनोवा कार की पिछली खिड़की एक भीषण विस्फोट में उड़ गई। धमाका इतना ज़ोरदार था कि लोहे के टुकड़े 50 मीटर दूर तक जा गिरे। पास खड़ी गाड़ियों की खिड़कियों से लेकर आस-पड़ोस के घरों के शीशे तक चकनाचूर हो गए।

घटना दिल्ली के औरंगज़ेब रोड के पास करीब 3:10 बजे हुई। गाड़ी एक सिग्नल पर खड़ी थी, तभी एक बाइक सवार वहां रुका और हेलमेट पहने हुए व्यक्ति ने कार के पिछले हिस्से पर एक चौकोर वस्तु चिपकाई और तेज़ी से निकल गया। कुछ ही सेकंड में धमाका हुआ और कार का पिछला हिस्सा उखड़ कर दूर जा गिरा। इस हमले में इज़राइली अधिकारी की पत्नी और उनका ड्राइवर घायल हुए।

ईरान-इज़राइल टकराव की चपेट में भारत

आज जब दुनिया ईरान और इज़राइल के बीच जारी संघर्ष को लेकर चिंतित है, यह घटना याद दिलाती है कि 13 साल पहले भारत भी इन दोनों देशों की छाया जंग का मैदान बन चुका है। जांच एजेंसियों की रिपोर्ट, अदालतों में दर्ज दस्तावेज़ और जुड़े लोगों से बातचीत के आधार पर इस पूरे घटनाक्रम को फिर से जोड़ा गया।

जो शुरुआत में एक अंधेरे में तीर लगती घटना थी, वह कुछ ही घंटों में एक बहुराष्ट्रीय साज़िश के रूप में सामने आने लगी। उसी दिन जॉर्जिया के त्बिलिसी में और अगले दिन थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में भी ऐसे ही दो धमाके हुए। दिल्ली की घटना के ठीक बाद, त्बिलिसी में इज़राइली दूतावास की कार पर भी एक चिपचिपा बम लगाया गया, जिसे समय रहते डिफ्यूज़ कर दिया गया।

बैंकॉक और मलेशिया से भी मिले सुराग

अगले ही दिन बैंकॉक में दो ईरानी मूल के व्यक्ति मोरादी सईद और मोहम्मद ख़ज़ाई को गिरफ्तार किया गया। और 24 घंटे में, मलेशिया में ईरानी नागरिक सिदघतज़ादे मसूद को भी एक साथी के साथ पकड़ा गया। खास बात यह रही कि मसूद और उसका साथी नुरौज़ी शायन अली अकबर ने तेहरान स्थित भारतीय दूतावास से वीज़ा के लिए आवेदन किया था।

जांचकर्ताओं ने पाया कि उनके वीज़ा फॉर्म में तीन ईरानी मोबाइल नंबर (989123944144, 989125444652, 982144505272) दिए गए थे। इनमें से एक नंबर 989123944144 पूरे मामले की सबसे अहम कड़ी बन गया।

फोन कॉल्स से जुड़ी पूरी साज़िश

पता चला कि इस नंबर पर पहली कॉल 25 अप्रैल 2011 को भारत के एक मोबाइल नंबर 8860484945 से आई थी। ठीक उसी दिन जब यह नंबर सक्रिय किया गया। इसके बाद मई 2011 और फिर 29 जनवरी 2012 को भी कॉल्स हुईं।

यह भारतीय नंबर हौशंग अफ़शार ईरानी नामक ईरानी नागरिक के नाम पर दर्ज था, जो उस समय दिल्ली के पहाड़गंज के एक होटल में ठहरा हुआ था। जब जांचकर्ताओं ने उसके यात्रा रिकॉर्ड खंगाले, तो साफ़ हुआ कि यह नंबर दिल्ली में इज़राइली दूतावास के पास की लोकेशन में सक्रिय था और 6 मई को IGI एयरपोर्ट पर बंद हुआ। 25 मई को यह नंबर फिर चालू हुआ लेकिन इस बार जॉर्जिया में।

यह नंबर सात महीने तक निष्क्रिय रहा और फिर 29 जनवरी 2012 को फिर से दिल्ली में सक्रिय हुआ और 13 फरवरी रात 9 बजे IGI एयरपोर्ट पर दोबारा बंद हो गया। इन 15 दिनों में यह नंबर लगातार इज़राइली दूतावास के आसपास सक्रिय रहा।

करोलबाग से बाइक और CCTV सबूत

जांच में पता चला कि इस बार हौशंग ईरानी करोल बाग के एक होटल में रुका था और रोज़ 500 रुपए में बाइक किराए पर ली थी। होटल के आसपास लगे CCTV कैमरों में साफ दिखा कि वो 13 फरवरी सुबह 9:30 बजे रक्सैक और दो हेलमेट लेकर निकला और शाम 4 बजे बिना रक्सैक और हेलमेट के लौटा। उसके बाद उसने तुरंत होटल छोड़ दिया और फोन की अंतिम लोकेशन IGI एयरपोर्ट मिली।जांच में यह भी सामने आया कि हमले के समय कम से कम तीन और ईरानी एजेंट दिल्ली में मौजूद थे।

परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या का बदला?

पुलिस और खुफिया एजेंसियों को यकीन है कि यह हमला इज़राइल द्वारा ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या के खिलाफ बदले की कार्रवाई के तहत किया गया था। माना जाता है कि यह पूरी साज़िश ईरानी इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की कुद्स फोर्स द्वारा रची गई थी, जिसका नेतृत्व तब जनरल क़ासिम सुलेमानी कर रहे थे जिन्हें 2020 में अमेरिका ने ड्रोन हमले में मार गिराया।भारत ने इस हमले को लेकर ईरान के समक्ष कूटनीतिक विरोध दर्ज कराया था।

एक पत्रकार भी गिरफ्त में

जांच में यह भी सामने आया कि हौशंग ईरानी द्वारा इस्तेमाल किए गए नंबर से एक और भारतीय नंबर पर संपर्क हुआ था, जो दिल्ली के पत्रकार सैयद मोहम्मद अहमद काज़मी इस्तेमाल कर रहे थे। काज़मी ने ईरान-आधारित न्यूज़ एजेंसियों के लिए काम किया था।मार्च 2012 में काज़मी को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर चार्जशीट दायर की। हालांकि अक्टूबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ज़मानत दे दी, और आज भी केस अदालत में लंबित है। काज़मी ने अदालत में सभी आरोपों से इनकार किया है।

13 फरवरी 2012 की इस घटना ने भारत को ऐसे संघर्ष का हिस्सा बना दिया, जिसमें उसकी कोई सीधी भूमिका नहीं थी। लेकिन यह दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक और सैन्य संघर्षों के साए में किसी भी तीसरे देश की ज़मीन कब जंग का मैदान बन जाए, कहा नहीं जा सकता।

Read More
Next Story