
PCA का फैसला खारिज, सिंधु जल संधि पर गहराया टकराव
India vs Pakistan: जहां PCA ने मुकदमे की सुनवाई जारी रखने का निर्णय लिया. वहीं, भारत ने उस अदालत को “मान्य नहीं” किया. फिलहाल मामला राजनयिक-आर्थिक-वैधानिक विवाद में परिवर्तित हो चुका है.
Indus Water Treaty: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुरानी सिंधु जल संधि एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है. लेकिन इस बार वजह कोई तकनीकी विवाद नहीं, बल्कि एक 'अवैध अदालत' का दखल है — कम से कम भारत यही कह रहा है. हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) ने पाकिस्तान की याचिका पर सुनवाई जारी रखने की घोषणा की है. लेकिन भारत ने साफ कह दिया कि हमने कभी इस तथाकथित अदालत को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी!
भारत ने हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के उस निर्णय को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि यह अदालत पाकिस्तान की किशनगंगा एवं रतले जल विद्युत परियोजनाओं से संबंधित याचिका सुन सकती है, भले ही भारत ने सिंधु नदी संधि को निलंबित कर दिया हो. वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत ने इस अदालत द्वारा दी गई “पूरक पुरस्कार” (supplemental award) को भी अस्वीकार कर दिया है और इसे “कानूनन अस्वीकार्य” बताया है. मंत्रालय ने कहा कि यह अदालत अवैध तरीके से गठित की गई है और इसके किसी भी आदेश या निर्णय को भारत मान्य नहीं कर सकता.
पीसीए क्या कहती है
पाकिस्तान ने 2016 में किशनगंगा (330 मेगावाट) और रतले (850 मेगावाट) परियोजनाओं के कुछ डिजाइन तत्वों पर आपत्ति जताई थी. इस पर पहले न्यूट्रल एक्सपर्ट नियुक्त किया गया था. लेकिन पाकिस्तान ने 2016 में मध्यस्थता अदालत की याचिका की. PCA ने 23 अप्रैल के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें भारत ने सिंधु नदी संधि को “स्थगित” बताया था. अदालत ने कहा कि भारत का यह निर्णय मुकदमे की सुनवाई पर बाधा नहीं है और इसमें उसने स्थायी मध्यस्थता की “कानूनन क्षमता” स्वीकार की है.
भारत की प्रतिक्रिया
सरकार ने कहा कि 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान द्वारा “सीमा पार आतंकवाद” के समर्थन तक संधि को कायम रखने की शर्त रखी थी और वाकई इस शर्त को पूरा न होने पर सिंधु नदी संधि को निलंबित कर दिया. विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने घोषणा की थी कि सिंधु संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक पाकिस्तान अपनी आतंकवाद-समर्थन की नीति त्याग नहीं देता. मंत्रालय का कहना है कि जब तक संधि स्थगित है, भारत संधि के तहत किसी भी प्रतिबद्धता का पालन करना बंद कर देगा. इस बीच PCA जैसे किसी भी “तथाकथित न्यायालय” का अधिकार नहीं बनता.
भारत ने क्यों किया पुराना फैसला खारिज
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत ने इस अदालत के सभी पूर्वनिर्णयों को भी खारिज किया है. इसका गठन स्वयं ही सिंधु संधि का गंभीर उल्लंघन है. मंत्रालय ने यह भी कहा कि पाकिस्तान द्वारा PCA का सहारा लेना “एक बार फिर वैश्विक आतंकवाद के केंद्र बने पाकिस्तान की जवाबदेही से बचने की कोशिश है और यह फरेब और अंतरराष्ट्रीय मंचों में धोखाधड़ी के लंबे इतिहास का हिस्सा है.
भारत-पाक तनाव
सिंधु नदी संधि (1960), विश्व बैंक के मध्यस्थता से बनी थी. इसके तहत पश्चिमी नदियां (Indus, Jhelum, Chenab) पाकिस्तान को और पूर्वी नदियां (Ravi, Beas, Sutlej) भारत को दी गईं. भारत को Jhelum और Chenab में उनकी सहायक धाराओं पर जल विद्युत परियोजनाएं बनाने की अनुमति थी, जैसे कि किशनगंगा और रतले. भारत ने पहले भी जुलाई 2023 में PCA के एक फैसले को इसी आधार पर अस्वीकार किया था. पाकिस्तान ने इस निलंबन को “युद्ध का कार्य” बताते हुए कड़ा विरोध किया है और कहा है कि वह इस कदम के खिलाफ PCA या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में चुनौती देगा.