
1 मिलियन डॉलर की 'ब्लड मनी' पर टिक गई है निमिषा की ज़िंदगी
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में हत्या के मामले में 16 जुलाई को फांसी दी जा सकती है। भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह अपनी सीमा तक प्रयास कर चुकी है।
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में हत्या के आरोप में 16 जुलाई को फांसी दिए जाने की संभावना के बीच, भारत सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह इस मामले में जो भी अत्यधिक संभव है, वह कर रही है।भारत सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ को बताया कि यमन की संवेदनशील स्थिति और वहां के हालात को देखते हुए भारत सरकार की भूमिका सीमित है। उन्होंने कहा,
एक बिंदु तक ही भारत सरकार जा सकती है, और हम उस बिंदु तक पहुंच चुके हैं।
क्या है मामला?
नर्स निमिषा प्रिया पर आरोप है कि उन्होंने 2018 में अपने यमनी बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या की थी। उन्हें यमन की अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई है, जिसे यमन के राष्ट्रपति ने हाल ही में बरकरार रखा।
'ब्लड मनी' से बच सकती है फांसी
यमन की शरिया कानून व्यवस्था के तहत, यदि किसी हत्या के मामले में आरोपी पीड़ित परिवार को 'ब्लड मनी' (रक्त-पैसा) देता है और वे उसे माफ कर देते हैं, तो सज़ा से राहत मिल सकती है।रिपोर्ट्स के अनुसार, निमिषा प्रिया के परिवार ने पीड़ित के परिजनों को 1 मिलियन डॉलर (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) की राशि देने की पेशकश की है। अगर यह पेशकश स्वीकार हो जाती है, तो निमिषा की फांसी टल सकती है।
कौन कर रहा है प्रयास?
'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' के कार्यकर्ता बाबू जॉन ने जानकारी दी कि निमिषा के परिवार की ओर से सैमुअल जेरोम, जो पावर ऑफ अटॉर्नी धारक हैं, यमन की राजधानी सना में मौजूद हैं और पीड़ित परिवार से वार्ता कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका
निमिषा प्रिया के परिवार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर भारत सरकार से उच्च स्तर पर हस्तक्षेप करने की मांग की गई थी। इस पर जवाब देते हुए भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि यमन जैसे राष्ट्र की संवेदनशील परिस्थितियों में सीमित हस्तक्षेप संभव है, और सरकार पहले ही अपनी सीमा तक प्रयास कर चुकी है।"
अब सभी की निगाहें 16 जुलाई पर टिकी हैं, जिस दिन निमिषा प्रिया की फांसी की तारीख तय है। यदि तब तक पीड़ित परिवार 'ब्लड मनी' स्वीकार कर क्षमा पत्र देता है, तो उनकी जान बच सकती है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता, तो भारत एक और नागरिक को विदेशी जमीन पर मौत की सज़ा होते देखेगा।भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह राजनयिक और मानवीय प्रयासों की सीमा तक पहुँच चुकी है, लेकिन अब अंतिम फैसला यमन के कानून और पीड़ित परिवार के निर्णय पर निर्भर है।