पन्नू पर US इतना मेहरबान क्यों, भारतीय नागरिक के प्रत्यर्पण का क्या है मतलब
खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू मामले में भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता को अमेरिका ने प्रत्यर्पण के जरिए अपने यहां लाया है.
Gurpatwant Singh Pannun Case: अमेरिका एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक स्तर पर दुनिया के मुल्कों से सहयोग की उम्मीद करता है.लेकिन उसका नजरिया भेदभाव से भरा भी नजर आता है. चाहे मामला हरदीप सिंह निज्जर का हो या खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू का हो. अमेरिका ने आरोप लगाया है कि अमेरिकी नागरिक पन्नू को मारने के लिए एक भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता और रॉ के अधिकारी ने षड़यंत्र रचा था. अब उन्हें प्रत्यर्पण के जरिए अमेरिका लाया गया है.
एक साल पहले चेक गणराज्य में हुई थी गिरफ्तारी
बता दें कि अमेरिकी एजेंसियों के अनुरोध पर निखिल गुप्ता की गिरफ्तारी एक साल पहले चेक गणराज्य में हुई थी. प्रत्यर्पण के बाद निखिल को फेडरल मेट्रोपोलिटन डिटेंशन सेंटर में रखा गया जहां से अदालत में पेश किया जाएगा. अभियोग लगाने वाली एजेंसी के मुताबिक पन्नू को मारने के लिए निखिल गुप्ता ने सुपारी किलर को 15 हजार डॉलर अदा किए थे. गुप्ता का प्रत्यर्पण इस वजह से भी खास है क्योंकि अमेरिकी एनएसए जेक सुलीवन आईसीईटी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए आज भारत आ रहे है. इस बात की संभावना है कि वो एनएसए अजित डोभाल के सामने इस मुद्दे को उठा सकते हैं. हालांकि यहां बता दें भारत ने अमेरिकी एजेंसी के आरोपों को पूरी तरह से नकार दिया है.
भारत पहले ही कर चुका है इनकार
भारत ने ऐसे किसी मामले में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है और आरोपों की जांच शुरू की है।गुप्ता ने अपने वकील के माध्यम से आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि उन पर "अनुचित आरोप" लगाए गए हैं.वाशिंगटन पोस्ट ने कहा कि गुप्ता की वकील रोहिणी मूसा ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट को एक याचिका में लिखा है कि उनके मुवक्किल पर अनुचित तरीके से मुकदमा चलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि "रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो याचिकाकर्ता को कथित पीड़ित की हत्या की कथित साजिश से जोड़ता हो.
क्या कहते हैं जानकार
विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं कि अमेरिका की नीति में अनैतिक होने को खराब नहीं माना जाता है. अमेरिकी हमेशा इस ताक में रहते हैं कि कैसे और किस तरह से दुनिया के मुल्कों से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जा सकता है. वो किसी भी देश को मदद तो करते हैं लेकिन उसकी पूरी कीमत भी वसूल करते हैं. अमेरिका के फैसले मौसम की तरह होते हैं जब मन किया उससे पीछे हट गए या किसी पर जरूरत से कुछ अधिक ही मेहरबान हो गए. अभी आपने देखा होगा कि यूक्रेन को वो मदद कर रहा है लेकिन रूस की कीमत पर. ठीक वैसे ही अमेरिका यह कोशिश करता है कि कंट्रोलिंग अथॉरिटी उसके पास हो. उदाहरण के लिए कनाडा के सरे में जब खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या होती है तो उसका कनाडा या भारत से क्या लेना देना. लेकिन वो संदेश देता है कि दुनिया में कहीं कुछ भी हो रहा हो उससे अमेरिकी हित प्रभावित होते हैं और वो आवाज उठाता रहेगा. यह बात अलग हो कि उसके कदम अनैतिक ही क्यों ना हों.