एक्सक्लूसिव : क्या भारत रूस से कच्चे तेल का आयात बंद कर रहा है ? आरटीआई के आंकड़े समझें
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एक्सक्लूसिव : क्या भारत रूस से कच्चे तेल का आयात बंद कर रहा है ? आरटीआई के आंकड़े समझें

आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि अगस्त में एचपीसीएल का रूसी तेल आयात शून्य पर था, जबकि भारतीय रिफाइनरियां महीनों तक रियायती कच्चे तेल से लाभ कमाती रहीं; क्या इस कदम के पीछे ट्रम्प का दबाव है?


USA, India And Russia : ऐसा प्रतीत होता है कि भारत ने व्यावहारिक रूप से रूस से कच्चे तेल की खरीद लगभग बंद कर दी है। यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लगातार बढ़ते दबाव और उनके इस आरोप के बाद सामने आया है कि रूस को भारत से मिलने वाली तेल बिक्री की रकम यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में खर्च की जा रही है।

आरटीआई (सूचना का अधिकार) कानून के तहत The Federal द्वारा की गई एक पूछताछ से इस दिशा में ठोस संकेत मिले हैं। हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल), जो भारत की प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों में से एक है ने आरटीआई के जवाब में बताया कि अगस्त 2025 में उसने रूस से एक भी बैरल कच्चा तेल आयात नहीं किया।

आरटीआई जवाब ने खोला संकेत

The Federal ने जनवरी 2022 से सितंबर 2025 तक रूस से हुए भारतीय कच्चे तेल आयात का मासिक ब्योरा मांगा था। इस पर एचपीसीएल ने डेटा साझा किया, लेकिन अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियाँ इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOCL), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (BPCL) और ओएनजीसी की मैंगलोर रिफाइनरी (MRPL) ने गोपनीयता का हवाला देते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया।
एचपीसीएल के अनुसार, कंपनी ने अप्रैल 2022 से जुलाई 2025 तक लगातार रूसी तेल खरीदा था। फरवरी 2025 में न्यूनतम आयात 131 हज़ार मीट्रिक टन रहा जबकि अक्टूबर 2024 में यह 11.46 लाख टन के शिखर पर पहुंचा था। हालांकि, अगस्त 2022 और अक्टूबर 2022 में भी शून्य आयात दर्ज हुआ था।
आरटीआई जवाब के अनुसार, अगस्त 2025 में भी एचपीसीएल का रूस से आयात ‘शून्य’ रहा जो वही समय था, जब अमेरिका ने भारत पर दंडात्मक आयात शुल्क (punitive tariffs) लगाने की शुरुआत की। उसी अवधि में ट्रंप ने मोदी सरकार पर "भारी भारतीय आयात शुल्क" और रूस से तेल खरीदने के आरोप लगाते हुए निशाना साधा था।

रूसी तेल पर निर्भरता कैसे बढ़ी और घटी

आरटीआई डेटा के मुताबिक, जनवरी से मार्च 2022 के बीच जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तब एचपीसीएल ने रूस से कोई तेल नहीं खरीदा था। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे रूसी तेल पर निर्भरता बढ़ती गई।
2022 के मध्य से रूसी तेल की कीमत ब्रेंट बेंचमार्क की तुलना में 20 से 30 डॉलर प्रति बैरल कम हो गई थी। इसका कारण इसका भारी और उच्च-सल्फर मिश्रण था, जो एचपीसीएल की रिफाइनरियों के लिए तकनीकी रूप से उपयुक्त था। परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2023-24 में एचपीसीएल के कुल तेल प्रसंस्करण में रूस से आने वाला तेल लगभग 13% हिस्सेदारी तक पहुँच गया।
एचपीसीएल ने हालांकि स्पष्ट किया कि उसे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) से रूस से आयात पर कोई सीधा निर्देश या रोक संबंधी सूचना नहीं मिली थी। कंपनी ने सामान्य प्रोक्योरमेंट नॉर्म्स (खरीद नियमों) के अनुसार ही आयात किया।

गोपनीयता की दीवार

हालांकि एचपीसीएल का यह खुलासा महत्वपूर्ण है, परन्तु यह सीमित दायरे में है क्योंकि अन्य सरकारी कंपनियाँ जानकारी साझा करने से बच रही हैं। IOCL ने RTI की धारा 8(1)(d) का हवाला देते हुए सूचना देने से इनकार किया, यह कहते हुए कि यह “तीसरे पक्ष के वाणिज्यिक विश्वास” (commercial confidence) से जुड़ी जानकारी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक IOCL रूस से तेल लगभग 1.5 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर खरीदता है।
बीपीसीएल और एमआरपीएल ने वित्त वर्ष 2024-25 की तीसरी तिमाही में अपने कुल कच्चे तेल का 35 से 40 प्रतिशत रूस से खरीदा था। वहीं, निजी क्षेत्र की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ जो आरटीआई के दायरे में नहीं आती ने अपनी जामनगर रिफाइनरी में बड़े पैमाने पर रूसी तेल प्रोसेस किया और उससे बने पेट्रोलियम उत्पादों को पश्चिमी देशों को ऊँचे दाम पर निर्यात किया। अनुमान है कि इस रणनीति से कंपनी का EBITDA लगभग 2 प्रतिशत बढ़ा।

भारत के कच्चे तेल आयात का पैटर्न
भारत अपनी कुल कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने 230 मिलियन टन से अधिक कच्चा तेल खरीदा था, जिनमें प्रमुख आपूर्तिकर्ता रूस, इराक और सऊदी अरब रहे। हालांकि सरकारी रिपोर्टें केवल कुल आयात मात्रा बताती हैं, स्रोत देशों का विवरण नहीं देतीं।
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) जो मंत्रालय की प्रमुख विश्लेषण इकाई है ने The Federal की RTI अर्जी को 11 सितंबर 2025 को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह “वाणिज्यिक रूप से गोपनीय जानकारी” है।

सस्ते रूसी तेल से भारत को हुआ बड़ा फायदा

पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण यूरोपीय बाज़ारों ने रूसी तेल से दूरी बना ली थी। उस स्थिति में भारत एक बड़ा खरीदार बनकर उभरा। कम कीमत पर तेल खरीदने से भारत को हर साल 10 से 15 अरब डॉलर तक की बचत हुई।
हालाँकि, अब ट्रंप प्रशासन की नई नीति के तहत भारत की रूसी तेल खरीद को “युद्ध वित्तपोषण” का रूप देकर राजनीतिक दबाव बनाया जा रहा है।
पूर्व अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने मई 2024 में कहा था कि “भारत ने रूसी तेल इसलिए खरीदा क्योंकि हम चाहते थे कि कोई खरीदे, ताकि वैश्विक ऊर्जा संकट से बचा जा सके।”

वर्तमान स्थिति आयात में ठहराव और असमंजस
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जुलाई–अगस्त 2025 में सरकारी रिफाइनरियों एचपीसीएल, आईओसीएल और बीपीसीएल ने रूसी कच्चे तेल की spot खरीद अस्थायी रूप से रोक दी थी, लेकिन सितंबर में सीमित स्तर पर फिर से शुरू कर दी। एचपीसीएल के चेयरमैन विकास कौशल ने हाल में कहा “हमें न तो खरीदने का आदेश मिला, न ही रोकने का।”

कप्लर (Kpler) के स्वतंत्र आंकड़े
स्वतंत्र ऊर्जा विश्लेषण कंपनी Kpler के अनुसार, भारत ने अपनी कुल जरूरत का लगभग 40 प्रतिशत तेल रूस से खरीदा, जो मात्रा के लिहाज से इराक और सऊदी अरब से कहीं अधिक है। अक्टूबर 2023 से मध्य-अक्टूबर 2025 तक भारत के कुल मासिक आयात का औसत 4.26 मिलियन टन रहा, जिसमें से 1.735 मिलियन टन रूस से आया यानी करीब 41 प्रतिशत हिस्सा।
2024 के जून में यह अनुपात 47.8% तक पहुंचा था। हालांकि अब यह घटकर 37–41% के बीच स्थिर हो गया है।
आरटीआई डेटा, स्वतंत्र व्यापार विश्लेषण और अमेरिकी दबाव तीनों संकेत दे रहे हैं कि भारत ने अगस्त 2025 में रूसी तेल की खरीद लगभग रोक दी थी। आधिकारिक रूप से न तो रोक लगाई गई है, न ही अनुमति दी गई है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर अमेरिका की नीति और शुल्क कार्रवाई ने भारत के रूसी तेल व्यापार को धीमा कर दिया है।


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