बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को नहीं रास आ रही महिला रिपोर्ट, इनसाइड स्टोरी
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बांग्लादेश महिला मामले सुधार आयोग ने पिछले सप्ताह मुख्य सलाहकार मुहम्मद युनुस को अपनी रिपोर्ट सौंपी। तस्वीर: @ChiefAdviserGoB

बांग्लादेश में कट्टरपंथियों को नहीं रास आ रही महिला रिपोर्ट, इनसाइड स्टोरी

रिपोर्ट में उत्तराधिकार, विवाह, तलाक और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में लैंगिक समानता के लिए समान पारिवारिक संहिता की बात कही गई है; इस्लामवादी इसे 'सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा' मानते हैं


मुख्य सलाहकार मुहम्मद युनूस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अब इस्लामी कट्टरपंथी समूहों के साथ गहरे टकराव में आ गई है। पहले जिन कट्टरपंथी संगठनों ने युनूस का समर्थन किया था, वे अब महिला आयोग की रिपोर्ट का विरोध कर रहे हैं, जिसे नोबेल पुरस्कार विजेता युनूस ने गठित किया था।

इस रिपोर्ट में विरासत, विवाह, तलाक और राजनीतिक प्रतिनिधित्व जैसे मामलों में पुरुषों और महिलाओं की समानता सुनिश्चित करने के लिए एकसमान पारिवारिक संहिता (Uniform Family Code) लागू करने की सिफारिश की गई है। पर इस्लामी समूह इसे “देश की सामाजिक संरचना के लिए खतरा” मानते हैं।

नोबेल विजेता युनूस ने सोशल मीडिया पर आयोग की कुछ प्रमुख सिफारिशें साझा कीं, जिसे इस्लामिक समूहों ने “पश्चिमी विचारधारा पर आधारित रिपोर्ट का समर्थन” माना।

फिर सक्रिय हुए कट्टरपंथी इस्लामी समूह

बांग्लादेश एक मुस्लिम-बहुल राष्ट्र है, लेकिन 1971 में पाकिस्तान से आज़ादी की लड़ाई धर्मनिरपेक्ष बंगाली राष्ट्रवाद के आधार पर लड़ी गई थी। हालांकि, बाद में जनरल ज़ियाउर रहमान और एचएम इर्शाद जैसे सैन्य तानाशाहों के शासन में यह धर्मनिरपेक्षता कमजोर पड़ गई, और इर्शाद ने इस्लाम को राज्य धर्म घोषित कर दिया।पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासनकाल में दबाए गए कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पिछले साल अगस्त में फिर सक्रिय हो गए, जब देशव्यापी आंदोलन के दौरान हसीना को देश छोड़ना पड़ा।

युनूस सरकार अब तक इन कट्टरपंथियों को नियंत्रित करने के लिए राजनीतिक दलों को चुनाव से रोकने की रणनीति के तहत उनका समर्थन करती रही है। पर अब इन संगठनों ने उन महिलाओं पर हमला शुरू कर दिया है जो फुटबॉल खेलती हैं, बुर्का या हिजाब नहीं पहनतीं, या अन्य “गैर-इस्लामी” समझे जाने वाले व्यवहार करती हैं।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व का विरोध

अब ये समूह महिला आयोग की रिपोर्ट को रद्द कराने के लिए एकजुट हो गए हैं, खासकर उस सिफारिश का, जिसमें संसद में महिलाओं के लिए 300 आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया है। फिलहाल 300 नियमित सीटों के अलावा 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।

एक महिला आयोग सदस्य ने कहा, “इसका मकसद देश की आधी आबादी का संसद में बराबर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।”

नोबेल विजेता, पर कट्टरपंथियों की आंखों की किरकिरी

मुहम्मद युनूस को माइक्रोक्रेडिट की अवधारणा के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्होंने इसे सामाजिक परिवर्तन के लिए लैंगिक समानता का साधन बताया था। लेकिन कट्टरपंथी इस्लामी अक्सर उन्हें “सूदखोर” कहते हैं और सूद आधारित कर्ज को गैर-इस्लामी मानते हैं।

अब वे महिला आयोग की रिपोर्ट को “परंपरागत सामाजिक मूल्यों को अस्थिर करने वाला” कहकर विरोध कर रहे हैं।

"पश्चिमी विचारधारा" का आरोप

हिफाज़त-ए-इस्लाम, जो कि कौमी मदरसों का एक शक्तिशाली मंच है, ने महिला मामलों पर बनी सुधार आयोग को रद्द करने की मांग की है। इसके वरिष्ठ नेता अज़ीज़ुल हक इस्लामाबादी ने एएफपी को बताया, “महिलाओं के खिलाफ भेदभाव खत्म करने की सिफारिश इस्लामी व्यवस्था के खिलाफ है। लैंगिक समानता की अवधारणा पश्चिमी विचारधारा है, जो हमारे मुस्लिम राष्ट्र के अनुकूल नहीं है।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आयोग ने मुस्लिम पारिवारिक कानून को हटाकर एकसमान पारिवारिक संहिता की सिफारिश की है, “जो किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है।”

जमात-ए-इस्लामी का विरोध

बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने भी सिफारिशों को तुरंत रद्द करने की मांग की है। जमात के महासचिव मियां गुलाम परवार ने बयान जारी कर कहा, “पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता सुनिश्चित करने की सिफारिश इस्लामी विचारधारा को विकृत करने का एक दुष्प्रयास है।”

गौरतलब है कि जमात ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया था और अब भी शरिया कानून से चलने वाले इस्लामी राज्य की मांग करता है।पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने जमात को संविधान के मूल भावना के खिलाफ होने के आधार पर प्रतिबंधित कर दिया था। लेकिन युनूस ने सत्ता में आने के बाद इस प्रतिबंध को हटाकर जमात की राजनीतिक मान्यता बहाल कर दी।

अब ऐसा लगता है कि जमात और हिफाज़त जैसे संगठन युनूस से नाराज़ हो रहे हैं, जो महिला आयोग की सिफारिशों का समर्थन करते दिख रहे हैं। युनूस की पहली प्रतिक्रिया थी: “दुनिया भर की महिलाएं हमारी ओर देख रही हैं।” पर इस्लामी समूहों का मानना है कि “युनूस पश्चिम को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं।”

महिलाओं के अधिकारों की पैरवी

आयोग की प्रमुख शिरीन परवीन हक ने कहा कि वे पीछे नहीं हटेंगी। “हमने जो सिफारिशें दी हैं, वे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सबसे उपयुक्त हैं और हम उस पर कायम रहेंगे,” उन्होंने कहा। हालांकि इस्लामी ब्लॉगर्स ने उन्हें “अहंकारी इस्लाम विरोधी” कहकर निशाना बनाया।हक ने जवाब दिया, “उन्हें जो कहना है कहने दें।”लैंगिक समानता के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने आयोग की रिपोर्ट को “क्रांतिकारी” बताया है। प्रमुख वकील तानिया आमिर ने कहा, “बंगाली समाज में महिला सशक्तिकरण की एक लंबी परंपरा रही है, जिसे धार्मिक कट्टरपंथी खत्म नहीं कर सकते।”

वेश्यावृत्ति को पेशे के रूप में मान्यता

महिला आयोग की एक महत्वपूर्ण सिफारिश यह भी है कि वेश्यावृत्ति को एक वैध पेशा माना जाए और इसमें काम करने वालों को सुरक्षा दी जाए। इस्लामी समूह इसे “अनैतिकता को वैधता देने का प्रयास” बता रहे हैं, लेकिन यौनकर्मियों ने इसका स्वागत किया है। दौलतदिया की एक वयस्क यौनकर्मी नसीमा रहमतुल्लाह ने कहा, “हम भी सेवा प्रदाता हैं। हम हर समाज में रहे हैं, लेकिन क्योंकि हमारा काम गैरकानूनी है, हम शोषण का शिकार होते हैं। अब यह बदलना चाहिए।”

राजनीतिक दलों की चुप्पी

बांग्लादेश की दो प्रमुख पार्टियां — अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी — ने रिपोर्ट पर औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। दोनों का कहना है कि वे विस्तृत रिपोर्ट का अध्ययन कर रही हैं और पार्टी स्तर पर चर्चा के बाद ही प्रतिक्रिया देंगी।

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