गाज़ा में अल जज़ीरा के 5 पत्रकार मारे गए, इजरायल बोला-प्रेस बैज आतंकवाद का कवच नहीं
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गाज़ा में अल जज़ीरा के 5 पत्रकार मारे गए, इजरायल बोला-प्रेस बैज आतंकवाद का कवच नहीं

गाज़ा में इजरायली हमले में अल जज़ीरा के अनस अल-शरीफ़ समेत पांच पत्रकार मारे गए। अल जज़ीरा ने इसे प्रेस स्वतंत्रता पर हमला बताया। लेकिन इजरायल का कहना है कि प्रेस बैज आतंकवाद का कवच नहीं हो सकता।


गाज़ा सिटी में रविवार को इजरायली हवाई हमले में अल जज़ीरा के जाने-माने संवाददाता अनस अल-शरीफ़ समेत पांच पत्रकार मारे गए। यह हमला पत्रकारों के लिए बनाए गए एक टेंट पर हुआ। इजरायली सेना ने हमले की पुष्टि करते हुए दावा किया कि अनस अल-शरीफ़ हमास के सदस्य थे, जो पत्रकार का रूप धारण कर रॉकेट हमलों के लिए ज़िम्मेदार एक आतंकी सेल का नेतृत्व कर रहे थे।

अल जज़ीरा ने इन हत्याओं की निंदा करते हुए इसे “स्वतंत्र रिपोर्टिंग को दबाने के लिए की गई लक्षित हत्या” बताया। गाज़ा में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की पहुंच पहले से ही बेहद सीमित है, और यह हमला नेटवर्क के लिए युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक के सबसे घातक घटनाक्रमों में से एक है। प्रेस स्वतंत्रता संगठनों के अनुसार, इस संघर्ष में अब तक 200 से अधिक मीडिया कर्मी मारे जा चुके हैं।

हमले में मारे गए पत्रकार

अल जज़ीरा ने पुष्टि की कि हमले में मारे गए पांच पत्रकारों में संवाददाता अनस अल-शरीफ़, रिपोर्टर मोहम्मद कुरैकेह और कैमरा ऑपरेटर इब्राहिम ज़ाहेर, मोहम्मद नौफल और मोअमन अलीवा शामिल हैं। ये सभी अल-शिफा मेडिकल कॉम्प्लेक्स के सामने एक टेंट में शरण लिए हुए थे, जो लंबे समय से मीडिया टीमों के लिए इस्तेमाल होता रहा है। 28 वर्षीय अल-शरीफ़ अरबी भाषा में संघर्ष की रिपोर्टिंग करने वाले सबसे पहचाने जाने वाले चेहरों में से एक थे और उत्तरी गाज़ा से उनके फ्रंटलाइन रिपोर्ट्स के लिए मशहूर थे। मौत से कुछ घंटे पहले उन्होंने X (पूर्व में ट्विटर) पर पास के इजरायली हमलों का वीडियो साझा किया था।

'प्रेस बैज आतंकवाद का कवच नहीं'

इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) ने बयान में अनस अल-शरीफ़ को “हमास आतंकी” बताया, जिसने पत्रकारिता को ढाल बनाया। IDF का कहना है कि गाज़ा से प्राप्त खुफिया दस्तावेज़ जैसे सदस्य सूचियां, प्रशिक्षण रिकॉर्ड और वेतन दस्तावेज़ उनके हमास से जुड़ाव का प्रमाण हैं। IDF के अनुसार, अल-शरीफ़ उस सेल का नेतृत्व कर रहे थे जिसने इजरायली नागरिकों और सैनिकों पर रॉकेट हमले किए। सेना ने कहा, “प्रेस बैज आतंकवाद से बचाव का कवच नहीं है।” इजरायल ने अल जज़ीरा पर हमास सदस्यों को अपने रिपोर्टिंग स्टाफ में शामिल करने का आरोप लगाया। वहीं, अल जज़ीरा का कहना है कि ये आरोप राजनीतिक मकसद से लगाए जाते हैं ताकि उनके पत्रकारों पर हमलों को सही ठहराया जा सके।

अल जज़ीरा की प्रतिक्रिया और जवाबदेही की मांग

अल जज़ीरा ने इस हमले को स्पष्ट और सुनियोजित हमला करार दिया, जो प्रेस स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। नेटवर्क का कहना है कि इजरायल ने उनके पत्रकारों को निशाना बनाने की योजना बनाई थी, खासकर इजरायली अधिकारियों के बार-बार उकसाने वाले बयानों के बाद। मारे गए पत्रकार गाज़ा में बचे हुए अंतिम स्वतंत्र आवाज़ों में से थे, जो जमीनी हालात की बिना सेंसर रिपोर्टिंग कर रहे थे। नेटवर्क ने चेतावनी दी कि यह हमला “सच को ख़ामोश” करने के अभियान का हिस्सा है। अल जज़ीरा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तत्काल कार्रवाई करने और इजरायल पर मीडिया कर्मियों को निशाना बनाने से रोकने के लिए दबाव डालने की अपील की।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों की प्रतिक्रिया

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) ने इन मौतों को चौंकाने वाला बताया और कहा कि पत्रकारों को बिना सार्वजनिक सबूत के आतंकवादी करार देना प्रेस स्वतंत्रता के प्रति गंभीर सवाल खड़े करता है। CPJ की क्षेत्रीय निदेशक सारा कुदाह ने कहा, “पत्रकार नागरिक होते हैं और उन्हें कभी निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।” रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) ने बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद से गाज़ा में 200 से अधिक पत्रकार मारे गए हैं, जिससे यह हाल के दशकों का सबसे घातक संघर्ष बन गया है। दोनों संगठनों ने इस हमले की स्वतंत्र जांच की मांग की।

इजरायल-अल जज़ीरा के रिश्तों में तनाव

इजरायल और अल जज़ीरा के बीच वर्षों से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। इजरायली सरकार ने नेटवर्क को देश में काम करने से रोक दिया है, उस पर उकसाने का आरोप लगाया है और दफ्तरों पर छापे मारे हैं। गाज़ा युद्ध ने इस तनाव को और बढ़ा दिया है। कतर आधारित यह नेटवर्क अक्सर इजरायली सैन्य अभियानों के आधिकारिक बयान पर सवाल उठाता है। आलोचकों का कहना है कि हमास के राजनीतिक नेतृत्व को कतर में शरण देने से इजरायल का अविश्वास और गहरा होता है, जबकि समर्थकों का मानना है कि यह नेटवर्क गाज़ा से ग्राउंड कवरेज देने वाले गिने-चुने स्रोतों में से है।

गाज़ा में मीडिया पर संकट

गाज़ा में विदेशी पत्रकारों की पहुंच लगभग पूरी तरह बंद होने के कारण, वैश्विक मीडिया को स्थानीय पत्रकारों पर निर्भर रहना पड़ता है। ये पत्रकार लगातार बमबारी के बीच बेहद खतरनाक हालात में रिपोर्टिंग करते हैं, बिना उस सुरक्षा के जो विदेशी पत्रकारों को मिलती है। अल-शरीफ़ जैसे प्रमुख पत्रकारों की मौत से स्वतंत्र रिपोर्टिंग और भी घट जाती है।

नेतन्याहू का बचाव और सैन्य अभियान का विस्तार

हमले से पहले प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने विदेशी मीडिया से कहा कि इजरायल को हमास के ठिकानों को खत्म करना होगा। उन्होंने गाज़ा सिटी के अलावा केंद्रीय शरणार्थी शिविरों और मुवासी में भी सैन्य अभियान जारी रखने की बात कही। नेतन्याहू ने नागरिकों के लिए सेफ ज़ोन का वादा किया, हालांकि पहले भी ऐसे क्षेत्रों पर बमबारी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि और विदेशी पत्रकारों को सैन्य निगरानी में गाज़ा लाया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक और वैश्विक प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने नेतन्याहू की घोषणा के बाद आपात बैठक बुलाई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अमेरिका ने इजरायल के हमास के खिलाफ कार्रवाई के अधिकार” का बचाव किया, जबकि चीन ने गाज़ा की जनता के “सामूहिक दंड” की निंदा की और रूस ने “लापरवाह युद्ध विस्तार के खिलाफ चेतावनी दी।

मानवीय संकट और मौतों का आंकड़ा

गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, युद्ध शुरू होने के बाद से 61,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं, जिनमें लगभग आधी महिलाएं और बच्चे हैं। युद्ध ने गाज़ा की अधिकांश आबादी को विस्थापित कर दिया है और कई इलाकों को अकाल की कगार पर ला खड़ा किया है। मंत्रालय का कहना है कि जून से अब तक 100 बच्चों और 117 वयस्कों की मौत कुपोषण से जुड़ी वजहों से हो चुकी है।

न्याय की मांग

फ़िलिस्तीनी अधिकारी, प्रेस स्वतंत्रता समर्थक और मानवीय संगठन इस हमले की जांच युद्ध अपराध के रूप में कराने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह पत्रकारों को चुप कराने के व्यापक पैटर्न का हिस्सा है। अल जज़ीरा ने कहा कि मारे गए पत्रकार गाज़ा की प्रेस की हिम्मत और मजबूती का प्रतीक थे। नेटवर्क ने चेतावनी दी कि अगर स्वतंत्र गवाह न रहे तो मानवीय संकट दुनिया की नज़रों से ओझल हो जाएगा और जिम्मेदार लोग और भी बेखौफ हो जाएंगे।

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