Khalistani leader jagmit singh
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केएस दक्षिणा मूर्ति ने कहा,खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह की हार भारत-कनाडा संबंधों में नया अध्याय खोलेगी

खालिस्तान पार्टी की चुनावी हार भारत-कनाडा रिश्तों का नया अध्याय खोलेगी

कनाडा के चुनाव में जगमीत सिंह की पराजय से खालिस्तानी विचारधारा को बड़ा झटका लगा है। क्या भारत-कनाडा के तनावपूर्ण रिश्ते अब सुधर सकते हैं?


The Federal की निष्ठा पीएस ने अंतरराष्ट्रीय मामलों पर करीबी नजर रखने वाले The Federal के मैनेजिंग एडिटर केएस दक्षिणा मूर्ति से बातचीत की। इस चर्चा में खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह की राजनीतिक हार, इसके भारत-कनाडा संबंधों पर प्रभाव और कनाडा में नई नेतृत्व व्यवस्था के संभावित बदलावों पर बातचीत हुई।

प्रश्न: जगमीत सिंह की हार कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के लिए क्या मायने रखती है?

यह एक बड़ा झटका है।

जगमीत सिंह, जिन्होंने खुले तौर पर खालिस्तान का समर्थन किया, एक भावुक भाषण में अपनी हार स्वीकार कर चुके हैं। उनकी पार्टी, न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP), 25 सीटों से घटकर केवल 4 सीटों पर सिमट गई है — जिससे वह संसद में आधिकारिक दर्जा खो बैठी, जिसके लिए कम से कम 12 सीटें जरूरी होती हैं।

यह हार महत्वपूर्ण है क्योंकि आधिकारिक दर्जा खोने से संसदीय विशेषाधिकार भी समाप्त हो जाते हैं।

सिंह ने कनाडा की मुख्यधारा राजनीति में खालिस्तान के मुद्दों को उभारा था, जिससे भारत-कनाडा रिश्ते तनावपूर्ण हुए थे।

उनकी हार के साथ, खालिस्तानी सक्रियता को गंभीर झटका लगा है।

भारत के लिए यह अच्छी खबर है।


प्रश्न: क्या सिंह की हार यह दिखाती है कि कनाडाई नागरिक विभाजनकारी राजनीति से थक चुके हैं?

ऐसा प्रतीत होता है।

हालांकि अभी पूरे नतीजों का विश्लेषण जल्दबाज़ी होगा, लेकिन दो प्रमुख कारक सामने आए हैं।

पहला, कनाडा में एंटी-ट्रंप भावना बढ़ रही है। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा के प्रति अपमानजनक बयानों और टैरिफ जैसी नीतियों ने मतदाताओं को लिबरल पार्टी की ओर मोड़ा, जिससे मार्क कार्नी को लाभ हुआ।

दूसरा, विभाजनकारी राजनीति ने कनाडा में भारतीय समुदायों के बीच तनाव बढ़ाया — खासकर हिंदुओं और खालिस्तानी समर्थक समूहों के बीच।

इस आंतरिक तनाव ने भी मतदाताओं को NDP से विमुख किया।

प्रश्न: क्या भारत इस बदलाव का उपयोग कनाडा से संबंध सुधारने में कर सकता है?

बिलकुल।

भारत को एक राजनयिक अवसर मिला है।

खालिस्तानी ताकतों की हार से एक बड़ा अवरोध दूर हो गया है।

अब भारत को आक्रामक रुख अपनाने की जरूरत नहीं है; परिस्थितियां अधिक अनुकूल हो गई हैं।

अगर भारत पहल करता है, तो वह विश्वास बहाली कर सकता है और उस रिश्ते को पुनर्जीवित कर सकता है, जो हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद से तनावपूर्ण रहा है।

प्रश्न: क्या मार्क कार्नी के नेतृत्व में कनाडा की विदेश नीति में बड़ा बदलाव आएगा?

हाँ।

मार्क कार्नी ने एक स्पष्ट और मजबूत नेतृत्व दिखाया है।

जस्टिन ट्रूडो के विपरीत, उन्होंने ट्रंप के सामने मजबूती से अपनी बात रखी, जिससे उन्हें मतदाताओं का सम्मान मिला।

भारत के मामले में, कार्नी हमेशा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के पक्ष में रहे हैं।

हालांकि उन्होंने खालिस्तान मुद्दे पर सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन उनकी सरकार की नई दिशा भारत-कनाडा संबंधों के लिए नई शुरुआत की संभावना लेकर आई है।

भारत का कनाडा के साथ बड़ा प्रवासी समुदाय और शैक्षणिक सहयोग है — इन सबको देखते हुए कार्नी का नेतृत्व व्यावहारिक और संतुलित रिश्तों की ओर इशारा करता है।

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