लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण और उनके परिवार की हो चुकी है मौत, जानें भाई ने अब क्यों कही ये बात?
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लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण और उनके परिवार की हो चुकी है मौत, जानें भाई ने अब क्यों कही ये बात?

साल 2009 में लिट्टे के संस्थापक नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण, उनकी पत्नी और तीन बच्चे मारे गए थे. अब जाकर प्रभाकरण के बड़े भाई वेलुपिल्लई मनोहरन ने इसकी सार्वजनिक घोषणा की है.


Velupillai Prabhakaran: साल 2009 में श्रीलंका युद्ध के आखिरी दौर में लिट्टे के संस्थापक नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण, उनकी पत्नी और तीन बच्चे मारे गए थे. अब जाकर प्रभाकरण के बड़े भाई वेलुपिल्लई मनोहरन ने पहली बार इसकी सार्वजनिक रूप से घोषणा की है. मनोहरन ने जाफना मॉनिटर पत्रिका में कहा कि वह यह बात इसलिए कह रहे हैं, ताकि तमिल समुदाय के एक वर्ग द्वारा किए गए एक बड़े घोटाले को समाप्त किया जा सके, जिसके तहत वे यह दावा करके कि प्रभाकरण और उसके परिवार के कुछ सदस्य अभी भी जीवित हैं, भोले-भाले तमिलों से पैसे ठग रहे हैं.

डेनमार्क में रहने वाले मनोहरन ने कहा कि प्रभाकरन के बड़े भाई के तौर पर मुझे लगा कि इस बकवास को खत्म करना मेरी जिम्मेदारी है. इसके अलावा ऐसी झूठी अफ़वाहें भी फैली हैं कि मेरा भाई ज़िंदा है और विदेश में रह रहा है.

फर्जी कहानी का खंडन

मनोहरन ने यह बात 18 मई को डेनमार्क के डीजीआई हुसेट कॉन्फ्रेंस सेंटर में प्रभाकरण और उसके परिवार की मृत्यु पर अपने परिवार द्वारा आयोजित प्रथम सार्वजनिक स्मरणोत्सव के कुछ दिनों बाद कही, जिसमें बड़ी संख्या में श्रीलंकाई तमिलों ने भाग लिया था. मनोहरन ने कहा कि हाल के महीनों में पश्चिम में रहने वाली एक युवा तमिल महिला ने प्रभाकरण की बेटी होने का झूठा दावा किया था, जिससे उसने प्रवासी समुदाय से लाखों डॉलर की ठगी की. उन्होंने कहा कि प्रभाकरण के बड़े भाई के तौर पर मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उसके और उसके परिवार के साथ जो हुआ, उसके बारे में सच्चाई सामने लाऊं. अगर हम नहीं बोलेंगे तो ये झूठी कहानियां हावी हो जाएंगी और हर कोई इस बकवास पर यकीन कर लेगा.

प्रभाकरण से बात

मनोहरन ने साल 1975 में श्रीलंका छोड़ दिया था. जबकि प्रभाकरण धीरे-धीरे तमिल उग्रवाद में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था. वह कभी भी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के साथ नहीं थे, जिसकी स्थापना साल 1976 में हुई थी और जो बाद में विश्व स्तर पर सबसे घातक उग्रवादी समूहों में से एक बन गया था. मनोहरन ने जाफना मॉनिटर को बताया कि साल 2008 के अंत तक वे अक्सर प्रभाकरण से टेलीफोन पर बात करते थे और आखिरी बार मई 2009 में प्रभाकरण की हत्या से कुछ महीने पहले उनसे बात हुई थी. अंतिम बातचीत को याद करते हुए मनोहरन ने कहा कि उसने (प्रभाकरण ने) कहा कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है और उसने सलाह मांगी. क्योंकि हमारे माता-पिता उसके साथ थे.

समस्या को स्वीकार

यह पूछे जाने पर कि क्या प्रभाकरण ने कभी स्वीकार किया कि एलटीटीई का युद्ध समाप्त होने वाला है, इस पर मनोहरन ने जवाब दिया कि नहीं, उन्होंने ऐसा नहीं कहा. उन्होंने कहा कि वे लड़ाई जारी रखेंगे. लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि समस्याएं बहुत बड़ी हैं. मई 2009 में स्वतंत्र तमिल ईलम के लिए सशस्त्र संघर्ष समाप्त होने के बाद से तमिलनाडु के कुछ राजनेताओं, जिनमें पी. नेदुमारन भी शामिल हैं, के साथ-साथ श्रीलंका से आए लिट्टे समर्थक तमिल समुदाय का एक वर्ग यह मानता रहा है कि प्रभाकरण संघर्ष क्षेत्र से भाग निकला है और एक दिन उभरकर सामने आएगा.

नकली बेटी

नवंबर 2023 में जब एक युवा तमिल महिला ने प्रभाकरण की बेटी होने का दावा किया और कहा कि वह तमिल राजनीतिक संघर्ष का समर्थन करती रहेगी तो स्थिति और भी खराब हो गई. इस डिजिटल दावे ने हलचल मचा दी थी. हालांकि, जल्द ही यह बात सामने आ गई कि वह महिला नकली थी और प्रभाकरण की बेटी नहीं थी, फिर भी कुछ तमिलों ने दावा करना जारी रखा कि लिट्टे प्रमुख की पत्नी और बेटी जीवित हैं. दावा करने वालों में पश्चिम में प्रभाकरण की पत्नी के कुछ रिश्तेदार भी शामिल थे. मनोहरन ने दो प्रसिद्ध तमिल प्रवासी संगठनों और पश्चिम में रहने वाले कुछ तमिलों पर धन हड़पने के लिए प्रभाकरण के परिवार के बारे में झूठ फैलाने का आरोप लगाया. इन व्यक्तियों और संगठनों ने धोखाधड़ी के लिए एक जटिल नेटवर्क तैयार किया है. वे तमिल प्रवासियों के भावनात्मक और वित्तीय समर्थन का फायदा उठाते हुए झूठा दावा करते हैं कि प्रभाकरण की बेटी थुवरगा अभी भी जीवित है. इस दावे का इस्तेमाल उन नेकनीयत समर्थकों से पैसे ऐंठने के लिए किया जाता है, जो मानते हैं कि वे प्रभाकरण के परिवार और तमिल हितों की मदद कर रहे हैं.

आसानी से कमाया जाने वाला धन

यह सब आसान पैसे कमाने का मामला है. यह झूठा दावा करके कि थुवारागा जीवित है, वे बिना किसी कड़ी मेहनत या महत्वपूर्ण काम के लाखों डॉलर कमा सकते हैं. मनोहरन ने धोखाधड़ी में शामिल एक व्यक्ति का नाम श्रीधरन बताया, जो साल 2004 में एक व्यक्ति को यह कहकर लेकर आया था कि वह श्रीलंका से है और उसे मदद की जरूरत है. मैंने उसे 25,000 क्रोनर दिए. लेकिन बाद में पता चला कि वह आदमी असल में इटली से था, तमिल ईलम से नहीं. मैंने अपने भाई प्रभाकरण को भी इस बारे में बताया.

सांसद भी भ्रष्ट

मनोहरन ने कहा कि श्रीलंका में युद्ध समाप्त होने के बाद जब उनके माता-पिता सैन्य-कब्जे वाले क्षेत्र में चले गए तो उनसे उनका संपर्क टूट गया. हमने कई तमिल राष्ट्रवादी सांसदों से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने हमारी मदद नहीं की. कुछ सांसदों ने अप्रत्यक्ष रूप से हमारे माता-पिता से संपर्क करने के लिए पैसे मांगे. मनोहरन ने किसी भी सांसद का नाम बताने से इनकार करते हुए कहा कि वे अभी भी संसद में अपनी सीटों पर काबिज हैं. अपने इंटरव्यू में मनोहरन ने तमिलों से आग्रह किया कि वे यह मानना छोड़ दें कि प्रभाकरण और उसका परिवार किसी न किसी तरह से कहीं जीवित हैं. मेरा भाई प्रभाकरण और उसका पूरा परिवार अब नहीं रहा. वे सभी शहीद हो गए. इस सच्चाई को स्वीकार करना ज़रूरी है. कृपया इन धोखेबाजों के झांसे में न आएं, जो मेरे भाई के परिवार का होने का दावा करते हैं. ये लोग अपने फ़ायदे के लिए आपकी भावनाओं और मेरे भाई की विरासत का फ़ायदा उठा रहे हैं.

भाई की सलाह

उन्होंने कहा कि अगर कोई प्रभाकरण की याद को सही मायने में सम्मान देना चाहता है तो उसे श्रीलंका में हमारे लोगों की मदद करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. युद्ध से प्रभावित कई तमिल अभी भी घोर गरीबी में जी रहे हैं और रोज़ाना संघर्ष का सामना कर रहे हैं. अपने प्रयासों और संसाधनों को इन युद्ध प्रभावित व्यक्तियों के जीवन के पुनर्निर्माण की दिशा में लगाइए. मेरे भाई की विरासत को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका हमारे तमिल समुदाय की बेहतरी के लिए काम करना है और यह सुनिश्चित करना है कि जो लोग पीड़ित हैं. वे कठिनाई में जीवन न जीएं.

नवंबर 1954 में जाफना के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे प्रभाकरण एक सरकारी अधिकारी और उनकी पत्नी के चार बच्चों में सबसे छोटे थे. उन्होंने साल 1984 में तमिलनाडु के एक हिंदू मंदिर में मधिवथानी से विवाह किया और उनके तीन बच्चे हुए. श्रीलंकाई सेना के अनुसार, प्रभाकरण 19 मई 2009 को लड़ते हुए मारा गया. उसके सबसे छोटे बेटे को पकड़ने के बाद गोली मार दी गई. बड़े बेटे की मौत लड़ाई में हुई. तमिल सूत्रों का कहना है कि पत्नी और बेटी भी सैन्य हमले में मारे गए. लेकिन उनके शव कभी नहीं मिले.

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