
पुतिन-ट्रंप की अलास्का बैठक: क्यों है यह अहम? प्रो. स्वरण सिंह का विश्लेषण
ट्रंप और पुतिन की यह मुलाकात एक डिप्लोमैटिक शोर के साथ शुरू हुई, लेकिन ठोस प्रगति के बिना समाप्त हुई। युद्ध विराम की उम्मीद फिलहाल अधूरी रह गई है और अगले दौर की वार्ता की दिशा अभी भी अनिश्चित है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बहुप्रतीक्षित बैठक अलास्का में गर्मजोशी से तो संपन्न हुई। लेकिन किसी ठोस समझौते के बिना समाप्त हुई। बैठक में यूक्रेन की अनुपस्थिति और संघर्ष विराम की घोषणा न होने ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस पूरी वार्ता और भविष्य की संभावनाओं पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने विस्तार से चर्चा की।
कम समय, कम परिणाम
यह बैठक 6–7 घंटे तक चलने की उम्मीद थी, सिर्फ तीन घंटे में खत्म हो गई। ट्रंप ने पुतिन को रेड कार्पेट स्वागत दिया, अपनी लिमोज़ीन में बैठाया और मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं की बॉडी लैंग्वेज सकारात्मक दिखी। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के वारंट के चलते यात्रा सीमित होने के बाद पुतिन के लिए अमेरिका की धरती पर यह उपस्थिति महत्वपूर्ण थी। इससे उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि में बदलाव की संभावना बनी है।
यूक्रेन पर कोई समझौता नहीं
हालांकि, माहौल सौहार्दपूर्ण रहा, लेकिन यूक्रेन युद्ध पर कोई ठोस फैसला नहीं हुआ। ट्रंप ने खुद कहा कि कोई सौदा नहीं हुआ है जब तक कि वह औपचारिक न हो। फिर भी, दोनों नेताओं ने बातचीत जारी रखने की इच्छा जताई।
संघर्ष विराम की घोषणा क्यों नहीं हुई?
प्रो. स्वर्ण सिंह के अनुसार, यह बैठक एक शुरुआती कोशिश थी — भविष्य की रूपरेखा बनाने की दिशा में पहला कदम। ट्रंप की पिछली बैठकों की तुलना में यह बैठक अपेक्षाकृत अधिक सकारात्मक रही, परंतु रूस और अमेरिका के दृष्टिकोणों में बड़ा अंतर अभी भी कायम है। पुतिन ने फिर से नाटो विस्तार और यूक्रेन की संभावित सदस्यता को संघर्ष की मुख्य वजह बताया। उधर, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने एक वीडियो संदेश में कहा कि कीव शांति के लिए तैयार है, लेकिन रूस की मंशा पर संदेह जताया।
बैठक से हल निकलेगा?
ट्रंप यूक्रेन और यूरोपीय नेताओं को शामिल कर त्रिपक्षीय वार्ता की ओर बढ़ना चाहते हैं, जबकि पुतिन ने संकेत दिया कि वह अमेरिका के साथ द्विपक्षीय बातचीत को तरजीह देंगे। यह अलग-अलग रुख भविष्य की बातचीत को जटिल बना सकता है। पुतिन का मानना है कि यूरोप या यूक्रेन को ‘समझौतों’ में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। वह जानते हैं कि अमेरिका के साथ अकेले वार्ता करने में उन्हें बेहतर शर्तें मिल सकती हैं।
क्षेत्रीय विवाद सबसे जटिल मुद्दा
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की किसी भी क्षेत्र को छोड़ने से इनकार कर चुके हैं। यूक्रेन का संविधान केवल संसद को सीमाएं बदलने की अनुमति देता है। दूसरी तरफ रूस 2014 में कब्जाए गए क्रीमिया और डोनबास के बड़े हिस्सों को छोड़ने को तैयार नहीं दिखता। रूस ने डोनेत्स्क और लुहान्स्क को "स्वतंत्र गणराज्य" घोषित किया है। ट्रंप ने ‘टेरिटोरियल स्वैप’ (क्षेत्रीय अदला-बदली) का संकेत दिया, लेकिन इसकी स्पष्टता अभी नहीं है। यूरोपीय देशों ने ऐसी संभावना को नकारा नहीं है, पर यह ज़रूरी बताया कि यूक्रेन इसमें शामिल हो।
प्रेस से दूरी: कुछ छिपाने की कोशिश?
दोनों नेताओं ने प्रेस के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया — जो यह दर्शाता है कि बातचीत बेहद संवेदनशील चरण में है। यह भी आशंका है कि दोनों पक्ष मौके को भुनाने के लिए ज़मीन पर हमले तेज़ कर सकते हैं। युद्ध के साढ़े तीन साल बाद रूस और यूक्रेन दोनों ही थके हुए हैं, लेकिन पीछे हटने को तैयार नहीं। अलास्का की यह बैठक सिर्फ बातचीत का एक चैनल खोलती है, समाधान की कोई गारंटी नहीं देती।