
'बलूचिस्तान के लिए डेथ संटेंस है CPEC', नायला कादरी बलूच ने क्यों कही ये बात
बलूचों की निर्वासित सरकार की मुखिया नायला कादरी बलूच कहती हैं कि सीपेक उनके लोगों के लिए डेथ संटेस की तरह है।
वैसे तो बलूचिस्तान की पहचान पाकिस्तान के एक सूबे के तौर पर होती है। लेकिन बलूची लोगों की धारणा है वो एक आजाद मुल्क हैं। पाकिस्तान ने अवैध तौर पर कब्जा कर रखा है। बलूची लोगों का कहना है कि जब भारत की आजादी और बंटवारे के बाद उनका 227 दिन तक स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा। लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन हुक्मारानों के मन में खोट पैदा हुआ और उनकी आजादी छीन ली गई। पिछले 78 सालों से पाक सेना का जुल्म जारी है, इस्लामाबाद उन्हें हिकारत की नजर से देखता है। लेकिम पिछले कुछ दशकों से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा के नाम पर कुछ अलग तरह का खेल चल रहा है। इस विषय बलूचों की निर्वासित सरकार की मुखिया नायला कादरी बलोच का मानना है कि सीपेक सही मायने में बलूचिस्तान के लिए डेथ संटेंस की तरह है।
नाएला कादरी बलोच बलूचिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम की एक संघर्षशील नेता हैं, जो अपने जीवन के हर पल को इस सपने को साकार करने में समर्पित कर रही हैं। वे लंबे समय से बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्षरत हैं और उनका मानना है कि बलूचिस्तान, जो कभी एक स्वतंत्र राष्ट्र था, अब पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। नाएला पाकिस्तान सरकार पर बलूच जनता के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन, संसाधनों की लूट, और नरसंहार के गंभीर आरोप लगाती हैं।
निर्वासित बलोच सरकार की स्थापना
आज़ाद बलूचिस्तान के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए डॉ. नाएला कादरी बलोच ने निर्वासित बलोच सरकार की स्थापना की। वे स्वयं इस सरकार की प्रधानमंत्री हैं। 21 मार्च 2022 को यह सरकार यूरोप में गठित की गई थी, हालांकि सुरक्षा कारणों से सटीक स्थान गोपनीय रखा गया है। वर्तमान में, नाएला कनाडा में निवास कर रही हैं।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन और भारत से अपील
नाएला कादरी ने बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने हेतु कई देशों का दौरा किया है। वे विशेष रूप से भारत से समर्थन की अपील करती रही हैं और उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संयुक्त राष्ट्र (UN) में बलूचिस्तान के मुद्दे को उठाने का अनुरोध किया है। उनका कहना है कि यदि भारत बलूचिस्तान का समर्थन करता है, तो स्वतंत्र बलूचिस्तान भविष्य में भारत का समर्थन करेगा। वे भारत और बलूचिस्तान के बीच समानताओं को भी उजागर करती हैं, जैसे कि दोनों को धर्म के नाम पर कुचला गया। हालांकि, भारत सरकार ने अब तक निर्वासित बलूच सरकार को मान्यता नहीं दी है।
भारत में यात्रा और बलूचिस्तान की स्थिति
नाएला कादरी बलोच लगातार भारत का दौरा करती रही हैं। वे 2016 में भारत आई थीं, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 15 अगस्त के भाषण में बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया था। इसके बाद वे 2023 और 2024 में भी भारत आईं। भारत में उन्होंने बलूचिस्तान की भयावह स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि वहाँ की जनता अत्याचारों का सामना कर रही है। उनका कहना है कि पाकिस्तानी सेना बलूच घरों को जलाकर उन्हें उनकी भूमि से विस्थापित कर रही है, और युवा बलूच पुरुषों को पकड़कर उनके अंगों की तस्करी की जा रही है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पर आपत्ति
नाएला कादरी बलोच चीन के CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) को बलूचिस्तान के लिए "मौत की सजा" मानती हैं। वे इसे एक सैन्य परियोजना कहती हैं, जिसका उद्देश्य बलूच लोगों की जमीन छीनकर वहाँ चीनी और पाकिस्तानी बस्तियाँ बसाना है। उनका मानना है कि किसी भी बाहरी शक्ति को बलूच बंदरगाहों और संसाधनों को हड़पने का अधिकार नहीं है।
कौन हैं नाएला कादरी बलोच
नाएला कादरी बलोच का जन्म 18 जुलाई 1965 को बलूचिस्तान में हुआ था। शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और उनके सामाजिक उत्थान के लिए कार्य करना शुरू किया। बलूचिस्तान की कबीलाई संस्कृति में महिलाओं के अधिकारों की अनदेखी की जाती है और यह क्षेत्र लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है।
बलूचिस्तान की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को बनाए रखना नाएला कादरी की प्राथमिकताओं में से एक है। वे मानती हैं कि अपनी संस्कृति को संरक्षित रखना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी भाषा, कला और परंपराओं से जुड़ी रहें। उन्होंने न केवल महिलाओं के अधिकारों की वकालत की, बल्कि बलूच समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए भी संघर्ष किया। उनका उद्देश्य बलूच महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के समान अवसर दिलाना था।
डॉ. नाएला कादरी बलोच का जीवन बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और उसके लोगों के अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक है। उनका निरंतर प्रयास बलूच जनता को न्याय दिलाने और उनकी सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने की दिशा में है।