रूस के करीब जाने के लिए US ने ही किया मजबूर, अब भारत को दे रहा नसीहत
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रूस के करीब जाने के लिए US ने ही किया मजबूर, अब भारत को दे रहा नसीहत

भारत रूस में बढ़ती मजबूती को देख अमेरिका परेशान हो गया है. वो एक तरह से भारत की ताकत की सराहना तो कर रहा है साथ ही चेतावनी देता भी नजर आ रहा है.


India Russia America Relation: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस क्या हो आए और पुतिन से गले क्या मिल लिए..अमेरिका के पेट में दर्द उठ गया उसे इतनी मिर्ची लग गई कि वह भारत को पाठ पढ़ाने लगा कि उसे क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए. युद्ध और संकट के समय भारत का कौन साथ देगा.अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार यानी एनएसए जेक सुलिवन और फिर बाद में भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी दोस्ती, दुश्मनी, युद्ध पर भारत को लेक्चर देने और धमकी देने लगे.

सुलिवन-गारसेटी ने क्या कहा था
जेक सुलिवन का कहना है कि हमने भारत सहित दुनिया के हर देश को स्पष्ट कर दिया है कि रूस को दीर्घकालिक, विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखना अच्छा नहीं है.रूस चीन के करीब होता जा रहा है.वास्तव में यह चीन का जूनियर पार्टनर बन रहा है और इस तरह रूस किसी भी दिन भारत के बजाय चीन का पक्ष ले लेगा तो वहींअमेरिकी राजदूत गार्सेटी ने कहा कि अब दुनिया आपस में जुड़ी हुई है.अब कोई युद्ध दूर नहीं है, इसलिए हमें न सिर्फ शांति के लिए खड़ा होना होगा बल्कि अशांति पैदा करने वाले देशों पर कार्रवाई भी करनी होगी यह ऐसी बात है जिसे अमेरिका और भारत को मिलकर समझना होगा. हम दोनों के लिए यह याद रखना जरूरी है कि हम इस रिश्ते में जैसा निवेश करेंगे, वैसा ही परिणाम हमें मिलेगा नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच रिश्ते काफी गहरे और मजबूत हैं लेकिन यह इतने भी मजबूत नहीं है कि इसे हल्के में ले लिया जाए

1950 के दशक को याद करे अमेरिका
भारत को किससे दोस्ती करनी चाहिए या भारत किसके साथ दोस्ती रखे अब ये अमेरिका बता रहा है. रूस के साथ भागीदारी अमेरिका ने अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए गहरी की है लेकिन ये रणनीतिक भागीदारी केवल अमेरिका से नहीं है. भारत की यह रणनीतिक भागीदारी फ्रांस के साथ है, ब्रिटेन के साथ है, सऊदी अरब के साथ है.ऑस्टेलिया के साथ है और रूस के साथ तो उस समय से है जब अमेरिका और पश्चिम के देशों ने भारत को हथियार देने से मना कर दिया था.

1950 के दशक में भारत ने जब तुमसे हथियार खरीदना चाहा मुंह फेर लिया.1947 में भारत जब आजाद हुआ तब भी वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश था आज भी है.तुम तब भी लोकतंत्र के सबसे बड़े चैंपियन बनते थे लेकिन उस समय तुमने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जरूरतों को न तो समझा ...और न ही उसकी मदद और परवाह की...यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान भारत का दुश्मन है...उसे दशकों तक अपना हथियार...पैसा देते रहे...यही नहीं 1971 के युद्ध में तुमने तो खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था. जंग में पाकिस्तान को हारता देख तुमने अपना युद्धपोत भारत की तरफ रवाना कर दिया....यह तो रूस था जो भारत की सुरक्षा के लिए अपनी पनडुब्बियां समुद्र में उतार दीं और बोला कि इस लाइन से आगे बढ़े तो तुम्हारी खैर नहीं

भारत को पता कौन मित्र और कौन दुश्मन
भारत को अच्छे से पता है कि उसका दोस्त कौन है और दुश्मन कौन है...मुसीबत में कौन उसका साथ दे सकता है...एक नहीं पांच-पांच जंगें 1948, 1962, 1965, 1971 और 1999 लड़कर...भारत यह जान चुका है कि मुसीबत में कौन साथ दे सकता है और भरोसा पर किस पर किया जा सकता है... ये सभी युद्ध ...हालात जैसे भी रहे हों...भारत अपने दम पर लड़ा.तुम्हारा एनएसए कहता है कि रूस के साथ भागीदारी भारत के लिए अच्छी नहीं है तो यह जान लो कि रूस के साथ यह भागीदारी तुम्हारे चलते ही आगे बढ़ी और मजबूत हुई.

आजादी के बाद के दशकों में तुमने भारत के लिए ऐसे हालात बना दिए कि भारत को रूस के पास जाने के अलावा कोई और चारा नहीं था.पाकिस्तान और चीन से हमारी दुश्मनी है इनसे लड़ने के लिए हमें हथियार चाहिए थे उस वक्त तो तुमने हथियार देने से मना कर दियापाकिस्तान और उसके सैनिक तनाशाहों को हथियार और पैसा देकर भारत के खिलाफ मजबूत करते रहे जब चीन ने तुम्हारी नाक में दम करना शुरू किया तो तुम्हें भारत की जरूरत महसूस होने लगी. भारत के साथ रणनीतिक भागीदारी बढ़ाने लगे तो आज भी भारत को तुम्हारी उतनी जरूरत नहीं जितनी की तुम्हारी भारत से है.

अमेरिका पर क्यों नहीं होता भरोसा
जहां तक बात दोस्ती और भरोसे की है तो तुम पर भरोसा तो किया ही नहीं जा सकता. दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख देश ही तुम पर भरोसा करेगा.दगा देना और आगे कर के पीछे से भाग जाना तुम्हारी पुरानी आदत है. फिलिस्तीन समर्थक छात्रों के धरना-प्रदर्शन से ही तुम डर गए उस इजरायल को हथियारों की शिपमेंट रोक दी.जिसके साथ तुम जीने -मरने की कसमें खाते हो जंग के बीच उसका हाथ छोड़ दिया अफगानिस्तान को स्वर्ग बनाने आए थेउसकी क्या हालत कर दी अपने हितों के लिए तुमने इराक, लीबिया, सीरिया और मध्य पूर्व में बम बरसाए.

यूक्रेन को नाटो सदस्य बनाने का झांसा देकर उसे युद्ध की आग में झोंक रखा है. यूक्रेन की अगर इतनी चिंता है तो रूस से लड़ने के लिए अपने सैनिक क्यों नहीं भेज देते लेकिन नहीं. सैनिक नहीं भेजेंगे उसकी पूरी बर्बादी तक हथियार और पैसा भेजते रहेंगे.सारी लड़ाई नाटो सदस्यता पर हुई है तो यूक्रेन को सदस्य बना क्यों नहीं लेते.बीते कई साल से जेलेंस्की सदस्यता के लिए गिड़गिड़ा रहा है लेकिन सदस्यता देने के बजाय तुम अभी भी उसे खाली दिलासा दे रहे हो.भारत का हित किसके साथ है.उसे अच्छी तरह से पता है. क्या सही है और क्या गलत भारत अब इसमें नहीं पड़ता. भारत देखता है कि उसका हित किसमें है.आज का भारत पहले अपना हित देखता है.फिर फैसले करता है और रणनीति बनाता है. एक बात और जियोपॉलिटिक्स में हमेशा वही नहीं होता जो दिखता है.यहां दो और दो चार नहीं दो और दो बाइस ग्यारह, पांच, चार कुछ भी हो सकते हैं.

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