
हां, हम लोगों ने समझौते का किया था उल्लंघन, 25 साल बाद नवाज ने क्यों कही ये बात
पाकिस्तान के साथ भारत हमेशा रिश्ता सुधारने की कोशिश करता है. यह बात अलग है कि दिल में कड़वाहट पाले पाकिस्तान के हुक्मरान आगे नहीं बढ़ना चाहते.
Kargil War 1999: भारत के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि दोस्त और दुश्मन बदले जा सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं. इसके जरिए वो सभी पड़ोसी मुल्कों को संदेश देने की कोशिश करते थे. लेकिन पाकिस्तान केंद्रबिंदु में हुआ करता था. पाकिस्तान के साथ भारत हमेशा से शांति का पक्षधर रहा है.यह बात दीगर है कि पाकिस्तान की नीयत नेक कभी नहीं रही. चाहे 1965 की लड़ाई, चाहे 1971 की लड़ाई या 1999 कारगिल की लड़ाई. कारगिल की लड़ाई पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने बड़ी बात कही हैंकारगिल की लड़ाई के बारे में कहा जाता है कि एक तरफ भारत के साथ पाकिस्तान लाहौर घोषणापत्र पर फरवरी 1999 में दस्तखत कर रहा था और दूसरी तरफ कारगिल में घुसपैठ की योजना पर भी काम कर रहा था.
नवाज शरीफ ने मानी गलती
नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि 1999 में भारत के साथ हमने जो समझौता किया था उसका सम्मान नहीं किया. हमने उल्लंघन किया. उन्होंने कारगिल को तत्कालीन पाक सेना के प्रमुख परवेज मुशर्रफ का दुस्साहस भी करार दिया. पीएमएल एन द्वारा पार्टी का अध्यक्ष चुने जाने के बाद नवाज शरीफ ने कहा कि 1998 में पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए. उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी साहेब आए और हम लोगों के बीच समझौता भी हुआ. 21 फरवरी1999 को हुए समझौते में कहा गया कि दोनों देश शांति और स्थायित्व के साथ रिश्ते को और मजबूत करेंगे और वो बड़ी सफलता थी. लेकिन कुछ महीनों के बाद ही पाकिस्तान की तरफ जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की खबर आई और उसका नतीजा कारगिल लड़ाई में सामने आया.
क्या कहते हैं जानकार
नवाज शरीफ ने यह बात क्यों कही. इस संबंध में जानकारों की राय अलग अलग है. इस विषय पर अतीत में भी बताया गया है कि पाकिस्तान में सरकार का मतलब सेना है. सिविलियन सरकार का मुखिया कोई भी क्यों ना हो विदेश नीति में दखल फौज का रहता है. जब भारत के साथ संबंध की बात आती है तो पाकिस्तानी फौज को 1971 के पराजय की याद आ जाती है. उन्हें ऐसा लगता है कि भारत ने धोखे से बांग्लादेश की जंग जीत ली थी. पाकिस्तान के फौजी उस गम को अभी तक भूला नहीं पाए हैं. इनके इतर पाकिस्तान की सिविलियन सरकार को लगता है कि भारत के साथ रिश्ते बेहतर कर ही वो अपनी अंदरूनी दिक्कतों को खत्म कर सकते हैं. पाकिस्तान की माली हालत किसी से छिपी नहीं है, कर्ज को चुकाने के लिए कर्ज लेने की जरूरत पड़ जाती है. आटा और तेल की कीमत आम लोगों की पहुंच से बाहर है.
यहां सवाल ये भी है कि इतने वर्षों के बाद नवाज शरीफ इस तरह की बात क्यों कर रहे हैं. आगरा में पढ़ाने वाली डॉ अनुपमा बताती हैं कि कभी कभी कुछ बोझ ऐसे होते हैं जिन्हें उतारकर फेंकना पड़ता है. नवाज शरीफ के नजरिए से अगर देखें तो सरकार के तौर पर जो उन्हें खामियाज भुगतना पड़ा वो तो अलग बात है. उनकी खुद की साख को धक्का लगा. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अगर आप के किए गए कामों की अहमियत कम हो तो वैश्विक स्तर पर खामियाजा उठाना पड़ता है. पाकिस्तान में इस समय नवाज शरीफ के भाई ही सरकार चला रहे हैं. नवाज को लगता है कि सही मायने में अगर विकास की जमीन पर उतारना है तो उन्हें भारत के साथ मिलकर चलना पड़ेगा. उन्हें यह भी पता है कि भारत में आम चुनाव के नतीजे भी आने वाले हैं और यह हो सकता है कि एनडीए एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब हो लिहाजा वो मोदी सरकार को दोस्ती का मैसेज भी भेजना चाहते हैं.