रूस जा सकते हैं एनएसए अजीत डोभाल, मध्यस्थता की चर्चा के बीच बड़ी खबर
एनएसए अजीत डोभाल को रूस भेजने का फैसला कथित तौर पर 27 अगस्त को पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच हुई टेलीफोन पर बातचीत के दौरान लिया गया था।
Ajit Doval News: रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने के लिए जहां सभी की निगाहें भारत पर टिकी हैं, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल दोनों युद्धरत देशों के बीच शांति समझौता कराने और दो साल से चल रहे युद्ध को समाप्त करने में मदद के लिए चर्चा में भाग लेने के लिए इस सप्ताह मास्को का दौरा कर सकते हैं।भारत द्वारा अपने एनएसए को रूस भेजने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पिछले माह यूक्रेन यात्रा तथा राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की से मुलाकात और उसके बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वार्ता के बाद लिया गया है।यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब कुछ दिन पहले ही पुतिन ने युद्ध समाप्त करने के लिए नए सिरे से बातचीत का प्रस्ताव रखा था और चाहा था कि भारत, ब्राजील और चीन मध्यस्थ की भूमिका निभाएं।
मोदी ने पुतिन से की बात
रिपोर्टों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने 27 अगस्त को पुतिन से फोन पर बात करते हुए कहा था कि वे डोभाल को रूस भेजेंगे।रूसी दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि फोन पर बातचीत के दौरान मोदी ने पुतिन को यूक्रेन की अपनी यात्रा के बारे में जानकारी दी तथा कूटनीति के माध्यम से संघर्ष को सुलझाने पर अपनी सरकार के जोर को दोहराया।कथित तौर पर इस फोन कॉल के दौरान ही शांति वार्ता के लिए डोभाल को मास्को भेजने का निर्णय लिया गया था।
भारत का संवाद और कूटनीति पर जोर
मोदी की यूक्रेन यात्रा के बाद विदेश मंत्रालय ने युद्ध पर सरकार का रुख व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत "किसी भी व्यवहार्य और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान या प्रारूप का समर्थन करेगा जो शांति बहाल कर सके।"ज़ेलेंस्की के साथ बैठक के बाद मोदी ने कूटनीति और बातचीत के माध्यम से संघर्ष को समाप्त करने के भारत सरकार के सुझाव को दोहराया था और साथ ही इस बात पर जोर दिया था कि "यह युद्ध का युग नहीं है"।शनिवार (7 सितंबर) को इटली के प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी ने भी कहा कि भारत और चीन दोनों रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता में प्रमुख मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार भारत के लिए बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी दुनिया के नेताओं से मिले और उनके साथ गर्मजोशी वाले रिश्ते कायम किए उसका असर साफ तौर पर नजर आ रहा है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंध कभी एक जैसे नहीं होते। हर एक देश की आर्थिक आवश्यकता होती है। वैश्विक संबंधों में आर्थिक संबंधों की प्रधानता होती है। जाहिर सी बात जिस किसी मुल्क को दुनिया में कोई बड़ा बाजार नजर आता है तो उसकी दिलचस्पी बढ़ जाती है।
अगर बात भारत की करें तो हम ना सिर्फ बड़ा बाजार है बल्कि अलग अलग क्षेत्रों में तरक्की दिखाई है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि दुनिया का कमजोर मुल्क हो ताकतवर वो भारत को सिरे से खारिज नहीं कर सकता। अब पुतिन ने जिस तरह से यूक्रेन संकट से बाहर निकलने के लिए मध्यस्थ के तौर पर भारत का नाम सुझाया है वो किसी बड़ी कामयाबी से कम नहीं है।