जरूरत पड़ी तो अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम सऊदी अरब को दे सकता है पाकिस्तान,  रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बहुत बड़ा बयान
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यह पहली सार्वजनिक घोषणा थी कि पाकिस्तान ने सऊदी अरब को अपने परमाणु सुरक्षा छत्र के तहत रखा है

जरूरत पड़ी तो अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम सऊदी अरब को दे सकता है पाकिस्तान, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बहुत बड़ा बयान

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने बुधवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के साथ यह समझौता पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर की मौजूदगी में हस्ताक्षरित किया


पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने एक बयान में कहा कि उनकी देश की परमाणु क्षमता “ज़रूरत पड़ने पर” सऊदी अरब के लिए उपलब्ध कराई जा सकती है, यह नई रक्षा संधि के तहत है।

आसिफ ने Geo TV से बातचीत में कहा, “मैं पाकिस्तान की परमाणु क्षमता के बारे में एक बात स्पष्ट कर दूँ: यह क्षमता बहुत पहले स्थापित की गई थी जब हमने परीक्षण किए थे। तब से हमारी सेनाएँ युद्धभूमि के लिए प्रशिक्षित हैं।”

उन्होंने कहा, “जो हमारे पास है और जिन क्षमताओं का हम मालिक हैं, उन्हें इस समझौते के अनुसार सऊदी अरब के लिए उपलब्ध कराया जाएगा।”

यह पहली सार्वजनिक घोषणा थी कि पाकिस्तान ने सऊदी अरब को अपने परमाणु सुरक्षा छत्र के तहत रखा है।

साझा रक्षा और हमले का प्रत्युत्तर

आसिफ ने कहा, “यदि पाकिस्तान या सऊदी अरब पर कहीं से भी हमला होता है, तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा और हम साथ मिलकर प्रतिक्रिया देंगे। हमने किसी देश का नाम नहीं लिया है, जिसका हमला स्वतः प्रतिक्रिया को प्रेरित करेगा। सऊदी अरब ने भी ऐसा कोई नाम नहीं लिया है।”

“यह एक छत्र (अम्ब्रेला) व्यवस्था है जो दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे को प्रदान की गई है: यदि किसी पक्ष पर हमला होता है—किसी भी तरफ़ से—तो इसे संयुक्त रूप से बचाया जाएगा और उस आक्रामकता का जवाब दिया जाएगा।”

भारत की प्रतिक्रिया

नई दिल्ली में, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “भारत और सऊदी अरब के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, जो पिछले कुछ वर्षों में और गहरी हुई है। हमें उम्मीद है कि हमारी रणनीतिक साझेदारी पारस्परिक हित और संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखेगी।”

भारत ने पाकिस्तान-सऊदी अरब रक्षा समझौते के प्रभावों का अध्ययन शुरू किया है।

पाकिस्तान-सऊदी अरब रक्षा साझेदारी का इतिहास

पाकिस्तान और सऊदी अरब की रक्षा साझेदारी कई दशकों पुरानी है।

अमेरिका सुरक्षा ढाँचे को प्रदान करता है, लेकिन कई मामलों में पाकिस्तान ने सैन्य विशेषज्ञता और कर्मियों का योगदान दिया है।

सऊदी अरब ने पहली बार 1967 में पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौता किया और 1982 में इसे द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग समझौते के तहत अपग्रेड किया।

एक समय पर, 15,000-20,000 पाकिस्तानी सैनिक सऊदी अरब में तैनात थे।

सूत्रों के अनुसार, नई संधि मौजूदा समझौतों को औपचारिक रूप देती है, विशेष रूप से पाकिस्तान के सऊदी अरब समर्थन को लेकर।

क्षेत्रीय और वैश्विक संदर्भ

यह समझौता अमेरिका के क्षेत्र से सुरक्षा प्रदाता के रूप में पीछे हटने और दोहा में इज़राइल के हमले के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। इज़राइल ने क्षेत्रीय देशों जैसे ईरान, लेबनान, सीरिया और क़तर पर आक्रमण किया है, जिसने पश्चिम एशिया में चिंता बढ़ाई है।

पाकिस्तान-सऊदी अरब संधि को इज़राइल के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा को औपचारिक रूप देने की दिशा में कदम माना जा रहा है।

भारत इस समझौते में भारत के संभावित प्रभाव और चुनौती को भी ध्यान में रख रही है।

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