
कभी ईरान का परमाणु 'भाई' पाकिस्तान, अब क्यों बना मूक दर्शक?
current policy of Pakistan: हाल ही में कुछ ईरानी नेताओं के बयान में पाकिस्तान को इजरायल को जवाबी हमले में शामिल करने की बात सामने आई. लेकिन पाक ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया.
Pakistan Iran relations: ईरान और इजरायल के बीच जंग के बादल गहराते जा रहे हैं. एक तरफ इजरायली हमले, दूसरी तरफ अमेरिकी हस्तक्षेप की धमकी और तीसरी तरफ चुपचाप खड़ा है पाकिस्तान. भारत का यह पड़ोसी मुल्क कभी खुद को 'ईरान का परमाणु भाई' कहता था. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान अब भी ईरान को परमाणु ताक़त बनने में मदद करेगा या अंतरराष्ट्रीय दबाव में उसकी ‘भाईचारे की नीति’ बदल चुकी है?
पाकिस्तान का गुप्त सहयोग
पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु शक्ति हासिल की थी. वहीं ईरान, आधिकारिक तौर पर तो नाभिकीय तकनीक केवल शांतिपूर्ण लक्ष्य के लिए चाहता था. लेकिन इस पर हथियार विकसित करने के संदेह लंबे समय से रहे. हालांकि, दोनों मुस्लिम राष्ट्र हैं और अतीत में रणनीतिक सहयोग रहा है. लेकिन पाकिस्तान ईरान को स्पष्ट तौर पर परमाणु हथियार देने से बचता रहा।
लेकिन अतीत में अंडर-द-टेबल सहयोग जरूर रहा. साल 1980–90 के दशक में एक्यू खान नेटवर्क ने ईरान को सेंट्रीफ्यूज तकनीक, ब्लूप्रिंट और पुर्ज़े गुप्त रूप से मुहैया कराए थे. इन्हीं तकनीकों ने ईरान के नतांज प्लांट को तेजी से डेवलप किया. ख़ास बात यह है कि सेंट्रीफ्यूज डिज़ाइन पाकिस्तान के काहुटा प्लांट जैसे लगते थे. हालांकि, यह सुविधाएं अभियान में बर्बाद हो गई हैं.
पाकिस्तान क्यों रुका?
1. अंतरराष्ट्रीय दबाव: जब AQ खान नेटवर्क का खुलासा हुआ, तब अमेरिका और IAEA ने आर्थिक व सैन्य प्रतिबंधों की धमकी दी.
2. रणनीतिक प्राथमिकता: पाकिस्तान का उद्देश्य भारत को कंट्रोल करना रहा, न कि ईरान को ताक़त देना.
3. सांप्रदायिक विभाजन: पाकिस्तान सुन्नी है. जबकि ईरान शिया और सऊदी के साथ दोस्ती पाकिस्तान को ईरान से दूरी बनाने पर मजबूर करती है.
4. आर्थिक–राजनयिक क़ानून: जबकि ईरान NPT का सदस्य है, पाकिस्तान नहीं. लेकिन AQ खान के खुलासे के बाद उसने अंतरराष्ट्रीय स्थिरता बनाए रखने की कोशिश की.
पाकिस्तान की मौजूदा पॉलिसी
हाल ही में इजरायल के हमलों पर पाकिस्तान ने ईरानी समर्थन का खुलकर इज़हार किया—"मुस्लिम एकता" और इजरायल की आक्रामकता पर नोटिस लेने की अपील की. लेकिन उसने परमाणु हथियार प्रदान करने या मिलिट्री मदद देने से साफ मना किया. कुछ ईरानी नेताओं के बयान में पाकिस्तान को इजरायल को जवाबी हमले में शामिल करने की बात सामने आई. लेकिन पाक ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया.
AQ खान नेटवर्क
एक्यू खान पाकिस्तान में "परमाणु बम के पिता" माने जाते हैं. उन्होंने 1970 से यूरोप से तकनीक चोरी करके पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम चलाया. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ईरान, नॉर्थ कोरिया, लीबिया को ब्लैकमार्किट में सेंट्रीफ्यूज और डिजाइन बेचकर करोड़ों डॉलर कमाए. साल 2003 में जर्मन जहाज BBC चाइना में लिबिया जाते समय इनके पुर्ज़े मिले. इसके बाद लीबिया ने अपना हथियार कार्यक्रम रद्द किया और खान ने 2004 में इस मामले को स्वीकार कर लिया. खान को गृह निगरानी में रखा गया और 2009 में रिहा किया गया.
पाकिस्तान का भविष्य?
इस पूरे इतिहास को देखते हुए यह साफ है कि पाकिस्तान अपनी परमाणु नीति को सावधानी से कंट्रोल करता रहा है—वो प्रमुख रूप से भारत विरोधी रणनीति पर केंद्रित रहा, न कि शिया बहुल ईरान को हथियार देने पर. चाहे प्रचार हो या आरोप—पाक की कूटनीति ने हमेशा खुद को वैश्विक दबाव और क्षेत्रीय संतुलन के बीच दबाया है. अब सवाल यह है कि क्या इस उभरते युद्ध में पाकिस्तान अपनी सीमाएं आगे ले जाएगा या एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय जंजीरों से खुद को बांधकर रखेगा?