जब निष्पक्षता होगी तब आरक्षण होगा खत्म, क्या राहुल ने अपनी सरकारों को घेरा
अमेरिका में राहुल गांधी ने जाति आरक्षण पर सवाल किया गया। उस सवाल के जवाब में कहा कि जब माहौल निष्पक्ष होगा। यहीं पर उन्होंने कई सवालों को भी जन्म दे दिया।
Rahul Gandhi on Caste Reservation: यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सॉस के बाद नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की परिचर्चा में शामिल हुए। उनसे कई तरह के सवाल किए गए मसलन क्या भारत में आम चुनाव निष्पक्ष हुए थे। इस सवाल पर उनका जवाब था कि चुनावी पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में संपन्न हुए थे। अगर निष्पक्ष चुनाव हुआ होता तो बीजेपी शायद उतनी भी सीट नहीं हासिल करती जो इस समय उसके पास है। यहां बता दें कि इससे पहले इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने कहा कि था कि उन्हें भी तकनीक की थोड़ी बहुत बेहतर समझ है और वो दोबारा कहना चाहेंगे कि ईवीएम को हैक किया जा सकता है। हालांकि इन सबके बीच राहुल गांधी ने कहा कि यहां मौजूद कई लोग शायद व्यवसाय चलाते हों। कल्पना कीजिए कि एक दिन आपका वित्त विभाग आपके पास आता है और कहता है, 'आपके सभी बैंक खाते अगले आदेश तक सील या बंद कर दिए गए हैं।' आपको समझ में नहीं आएगा कि क्या करना है।
इस डर को उन्हें कई साल लग गए, स्कॉर्पियो और पैसा लगा, लेकिन आज वो डर खत्म हो गया।मैं इसे संसद में देखता हूं। मैं प्रधानमंत्री को सामने देखता हूं, और मैं आपको बता सकता हूं कि श्री मोदी का विचार - 56 इंच का सीना, भगवान से सीधा संबंध - वह सब खत्म हो गया है। यह अब इतिहास है. उसे इसका एहसास है. भारत को इसका एहसास है. सरकार में उनके सहयोगियों को इसका एहसास है। उनकी सरकार के तीन-चार वरिष्ठ मंत्रियों को भी इसका एहसास है।
जाति आरक्षण के बारे में बात करते हुए राहुल गांधी कुछ तथ्य भी पेश करते हैं जैसे अगर आप भारत सरकार को देखें और इसे चलाने वाले 70 नौकरशाहों, भारत सरकार के सचिवों की जांच करें, तो ये वे लोग हैं जो लगभग सभी वित्तीय निर्णय लेते हैं।अगर आप दलितों, आदिवासियों और ओबीसी को जोड़ दें, तो वे आबादी का 73 प्रतिशत हिस्सा बनते हैं। लेकिन उन 70 लोगों में से एक आदिवासी, तीन दलित और तीन ओबीसी और शायद एक अल्पसंख्यक है। इसलिए, भारत सरकार में 90 प्रतिशत लोगों के पास 10 प्रतिशत से भी कम पदों तक पहुंच है जो यह निर्धारित करते हैं कि वित्त और धन कैसे खर्च किया जाएगा।
जब आप वास्तव में वित्तीय संख्याओं को देखते हैं, तो आदिवासियों को 100 रुपये में से दस पैसे मिलते हैं, दलितों को 100 में से पाँच रुपये मिलते हैं, और ओबीसी को भी इतनी ही राशि मिलती है। असलियत यह है कि उन्हें भागीदारी नहीं मिल रही है। समस्या यह है कि भारत का 90 प्रतिशत हिस्सा भागीदारी करने में सक्षम नहीं है।भारत के हर एक बिजनेस लीडर की सूची देखें। मैंने ऐसा किया है। मुझे आदिवासी नाम दिखाओ, मुझे दलित नाम दिखाओ, और मुझे ओबीसी नाम दिखाओ। मुझे लगता है कि शीर्ष 200 व्यापारिक नेताओं में से एक ओबीसी है। ओबीसी भारत का 50 प्रतिशत है। हम समस्या की जड़ को संबोधित नहीं कर रहे हैं। अभी यही मुद्दा है।
आरक्षण एकमात्र साधन नहीं है; अन्य साधन भी हैं, लेकिन हमें आरक्षण को खत्म करने के बारे में तभी सोचना चाहिए जब भारत एक निष्पक्ष जगह बन जाए। और भारत अभी एक निष्पक्ष जगह नहीं है।उच्च जातियों के कई लोग हैं जो कहते हैं, 'देखो, हमने क्या गलत किया है? हमें क्यों दंडित किया जा रहा है?' आप सत्ता के विकेंद्रीकरण के बारे में सोचते हैं। आप हमारे देश के शासन में कई और लोगों को शामिल करने के बारे में सोचते हैं।सच कहूँ तो, पूरे सम्मान के साथ, मुझे नहीं लगता कि आप में से कोई भी कभी अंबानी या अडानी बनने वाला है। और इसके लिए एक कारण है, आप नहीं बन सकते, क्योंकि वे दरवाजे बंद हैं। इसलिए, सामान्य जाति के लोगों का जवाब उन दरवाजों को खोलना है।
अब राहुल गांधी जब इस तरह से सवाल उठाते हैं तो केंद्र की मोदी सरकार भी सवाल करती है कि जो लोग पीएमओ से केंद्र के दफ्तरों में ज्वाइंट सेक्रेटरी पर नौकरी कर रहे हैं आखिर उनका चयन कब हुआ था। कांग्रेस को आरोप लगाने के पहले अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। हालांकि सियासत के जानकार कहते हैं चुनावी लड़ाई में पब्लिक वर्तमान में क्या कुछ हो रहा है। इतिहास में क्या कुछ हुआ उसके आधार पर आप धारणा बना सकते हैं। लेकिन अगर मौजूदा समय में अगर सत्तासीन सरकार की नीति जनमत के खिलाफ तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। राहुल गांधी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं लिहाजा वो जाति आरक्षण, जाति जनगणना की बात करते हैं, ये बात अलग है कि देश में सबसे लंबे और अधिक समय तक कांग्रेस का ही राज रहा है।