सऊदी से लड़ने एक मंच पर आए थे सात देश, ऐसे बना ताकतवर देशों का समूह G-7
आइए जानते हैं कि आखिर ग्रुप 7 के बनने की कहानी क्या है और क्यों इसे दुनिया के सात अमीर देशों ने सऊदी अरब से भिड़ने के लिए बनाया था?
G7 Summit History: इटली के फसानो सिटी को सफेद घरों और मेहराबों का शहर कहा जाता है. हालांकि, इस समय यह शहर दुनिया के सात दिग्गजों नेताओं की मौजूदगी से चर्चा में है. इसलिए इन देशों के संगठन को ग्रुप 7 नाम मिला है. ग्रुप के ये देश काफी अमीर हैं और इनके पास काफी ज्यादा पैसा और पावर है. भारत की बात करें तो वह इस ग्रुप का स्थायी सदस्य नहीं है. लेकिन पीएम मोदी इसमें हिस्सा ले रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर ग्रुप 7 के बनने की कहानी क्या है और क्यों इसे दुनिया के सात अमीर देशों ने सऊदी अरब से भिड़ने के लिए बनाया था.
भारत के शामिल होने का सिलसिला
अगर जी 7 में हिस्सा में भारतीय प्रधानमंत्रियों के शिरकत करने की बात है तो यह सिलसिला साल 2003 से शुरू होता है. अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार साल 2003 में फ्रांस में शामिल हुए और उसके बाद पीएम मनमोहन सिंह 2005, 2006, 2007, 2008, 2009 में शामिल हुए. हालांकि, अपने दूसरे कार्यकाल में दूर रहे. साल 2009 से करीब 10 साल बाद यह सिलसिला 2019 से शुरू हुआ, जब पीएम मोदी जी-7 सम्मेलन में शामिल होना शुरू हुए. अब बात करते हैं कि अपने मूल विषय की आखिर जी-7 बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
इजरायल-अरब जंग
बात 20वीं सदी के आठवें दशक यानी 1973 की है. इजरायल और अरब देशों में जंग चल रही थी. अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इजरायल को 18 हजार करोड़ रुपये की मदद का ऐलान किया. अमेरिका के इस फैसले से सबसे ज्यादा सऊदी अरब के किंग फैसल हैरान हुए. उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों को सबक सिखाने का प्लान बनाया और ओपेक के सदस्य देशों की बैठक बुला ली. उस बैठक में फैसला लिया गया कि अरब देश तेल के उत्पादन में कटौती करेंगे और उसका असर भी दिखा.
तेल की किल्लत
इस फैसले के बाद दुनिया के अलग अलग मुल्कों में तेल की भारी किल्लत हुई और तेल की कीमतों में 300 फीसद का इजाफा हो गया. इसका असर अमेरिका पर भी हुआ और इस तरह से दुनिया के 6 अमीर देश एक मंच पर आए. खुद के हितों को साधने के लिए ग्रुप ऑफ 6 बना. इसमें सबसे पहले जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका शामिल हुए. इसके बाद साल 1976 में कनाडा शामिल हुआ और जी-7 का निर्माण हुआ.
रुस का शामिल होना
इसका एक पक्ष सोवियत संघ से भी जुड़ा हुआ है. साल 1975 के दौरान शीत युद्ध का दौर चल रहा था. सोवियत संघ और अमेरिका दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे. उसी समय वॉरसा नाम का एक ग्रुप बना. लिहाजा सऊदी अरब को काउंटर करने के साथ ही सोवियत संघ के जवाब में भी इस ग्रुप का गठन हुआ. साल 1998 तक सोवियत यूनियन कई टुकड़ों में बंट चुका था और शीत युद्ध खत्म हो गया था. तब रूस को भी इसमें शामिल किया गया था. इसके बाद जी-7 को G-8 के नाम से जाना जाने लगा. हालांकि, साल 2014 में रूस के क्रिमिया में घुसपैठ करने के बाद उसे संगठन से बाहर कर दिया गया.