आखिर क्या है दक्षिण चीन सागर विवाद, जानें- क्या है भारत का रुख
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आखिर क्या है दक्षिण चीन सागर विवाद, जानें- क्या है भारत का रुख

South China Sea: दुनिया में चीन एक ऐसा देश है जिसका विवाद उसके सभी पड़ोसियों से है। दक्षिण चीन सागर को लेकर वो इतना आक्रामक क्यों है, समझाने की कोशिश करेंगे।


South China Sea Dispute: दक्षिण चीन सागर, इस पर निगाह सिर्फ चीन की नहीं है, बल्कि दुनिया के दिग्गज देशों की है। किसी को संसाधन की तलाश तो किसी को अपनी सुरक्षा का डर सता रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि दुनिया एक ध्रुवीय है जिसे बहु ध्रवीय तो नहीं द्विध्रवीय बनाने की कोशिश हो रही है। चीन उनमें से एक है। अब अगर आप अपनी ताकत को बढ़ाना चाहते हैं तो आपके पास संसाधन और टैलेंट दोनों का संगम होना जरूरी है। लेकिन यहां पूरी लड़ाई संसाधन पर कब्जे की है।

चीन को लगता है कि संसाधन हासिल करने के लिए उसे आक्रामक रुख अख्तियार करना होगा और उसके लिए छल बल सबका इस्तेमाल करता है। वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को अमली जामा पहनाने के लिए वो कर्ज के जाल में जरूरमंत देशों को फंसा रहा है तो दूसरी तरह दक्षिण चीन सागर में संसाधन पर कब्जे के लिए गाहे बेगाहे शक्ति का भी इस्तेमाल करता रहा है और उसका असर तनाव में दिख रहा है। भारत का सीधे सीधे दक्षिण चीन सागर से नाता तो नहीं है लेकिन वहां किसी तरह की हलचल हमारे हितों को प्रभावित करती है। इसे आप सामान्य तरीके से ऐसे भी समझें कि आप अपने घर में दीवार खड़ी करें और उसकी वजह से पड़ोसी के घर में हवा पानी बंद हो जाए। यानी कि आप विवाद करना नहीं चाह रहे लेकिन उसकी वजह भी बन रह हैं।

भारत का क्या है रुख
लाओस के वियनतियाने में 11वें आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस फोरम में बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि दक्षिण चीन सागर में समुद्री गतिविधि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप होना चाहिए। यही नहीं उन देशों के वैध अधिकारों और हितों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालना चाहिए जो इन विचार-विमर्शों में शामिल नहीं हैं। भारत का मानना ​​है कि वैश्विक समस्याओं का वास्तविक, दीर्घकालिक समाधान तभी प्राप्त किया जा सकता है जब राष्ट्र रचनात्मक रूप से जुड़ें एक-दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान करें और सहयोग की भावना से साझा लक्ष्यों की दिशा में काम करें।"

दक्षिण चीन सागर पर विवाद

दक्षिण चीन सागर एक अर्ध-संलग्न जल चैनल है, जिसके पश्चिम में वियतनाम, पूर्व में फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई दारुस्सलाम, दक्षिण में इंडोनेशिया और मलेशिया तथा उत्तर में चीन और ताइवान स्थित हैं। यह हिंद महासागर और पूर्वोत्तर एशिया के बीच प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शिपिंग मार्ग पर स्थित है, जिसमें कोरिया, चीन, रूस और जापान के बंदरगाह शामिल हैं, और चाइना पावर की एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण चीन सागर से सालाना लगभग 5.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का माल गुजरता है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने के समृद्ध क्षेत्र भी हैं और दुनिया के आधे से अधिक मछली पकड़ने वाले जहाज इसी क्षेत्र में चलते हैं। इसके लिए आस-पास के देशों ने सदियों से इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए संघर्ष किया है। लेकिन हाल के वर्षों में तनाव बढ़ गया है। समुद्र में द्वीपों और अलग अलग इलाकों जैसे पैरासेल्स और स्प्रैटली पर दावा किया है। बड़े पैमाने पर निर्जन, पैरासेल्स और स्प्रैटली के आसपास प्राकृतिक संसाधनों का भंडार हो सकता है।

चीन का दावा

दक्षिण चीन सागर के आस-पास के सभी देशों में से चीन कथित तौर पर इस क्षेत्र के सबसे बड़े हिस्से पर संप्रभुता का दावा करता है और इसे अपनी तथाकथित नौ-डैश लाइन द्वारा सीमांकित करता है। 1947 में बीजिंग ने अपने दावों का विवरण देते हुए एक नक्शा जारी किया और जोर देकर कहा कि इस क्षेत्र पर उसका अधिकार सदियों पहले से है जब पैरासेल और स्प्रैटली द्वीप श्रृंखलाओं को चीनी राष्ट्र का अभिन्न अंग माना जाता था। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, चीनी मानचित्रों पर दिखाई देने वाली नौ-डैश लाइन जो दक्षिण चीन सागर के लगभग पूरे हिस्से को घेरती है, उसमें कोई निर्देशांक शामिल नहीं है।ताइवान इन दावों को दोहराता है और कहता है कि दक्षिण चीन सागर के द्वीप चीन गणराज्य के क्षेत्र का हिस्सा हैं।

चीन के दावे पर विवाद

वियतनाम बीजिंग के बयान पर विवाद करता है और कहता है कि चीन ने 1940 के दशक से पहले कभी भी द्वीपों पर संप्रभुता का दावा नहीं किया था। वियतनाम के अनुसार, पैरासेल और स्प्रैटली दोनों पर 17वीं शताब्दी से ही उसका सक्रिय शासन रहा है। इसका यह भी दावा है कि इसके पास इसे साबित करने के लिए दस्तावेज़ हैं।फिलीपींस भी इस क्षेत्र का एक और प्रमुख दावेदार है। फिलीपींस अपने दावे के मुख्य आधार के रूप में स्प्रैटली द्वीप समूह से अपनी भौगोलिक निकटता का हवाला देता है। फिलीपींस स्कारबोरो शोल पर भी दावा करता है, जिसे चीन अपना क्षेत्र कहता है।

अब, दक्षिण चीन सागर में आचार संहिता (COC) पर छह देशों - फिलीपींस, चीन, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया और ब्रुनेई - के बीच चर्चा हो रही है, जो समुद्री सीमा विवाद के पक्षकार हैं। बर्मा, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, सिंगापुर और थाईलैंड, जो अन्य सदस्य देशों - ब्रुनेई दारुस्सलाम, मलेशिया, फिलीपींस और वियतनाम के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) का भी हिस्सा हैं।

दुनिया की हिस्सेदारी

दक्षिण चीन सागर पर सीओसी भारत और अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देशों को प्रभावित करेगी। चीन के दावों से समुद्री संचार लाइनों (एसएलओसी) को खतरा है, जो महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग हैं जो व्यापार और नौसेना बलों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाते हैं। इस इलाके में अपने राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने नेविगेशन संचालन की स्वतंत्रता का संचालन करके और दक्षिण पूर्व एशियाई भागीदारों के लिए समर्थन को मजबूत करके चीन के मुखर क्षेत्रीय दावों और भूमि पुनर्ग्रहण प्रयासों को चुनौती दी है। चीन की मौजूदगी का मुकाबला करने के लिए जापान ने फिलीपींस और वियतनाम को उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमता में सुधार करने के लिए सैन्य जहाज और उपकरण भी बेचे हैं।

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