दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण: पाकिस्तान–बांग्लादेश करीब, हाशिये पर भारत
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दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण: पाकिस्तान–बांग्लादेश करीब, हाशिये पर भारत

भारत और बांग्लादेश के रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं, लेकिन हसीना का दौर सबसे स्थिर माना जाता है। अब तेजी से बदलते भू-राजनीतिक हालात एक नए क्षेत्रीय समीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं, जहां बांग्लादेश–पाकिस्तान सहयोग, और उसके पीछे चीन व तुर्किये का समर्थन, दक्षिण एशिया की शक्ति संरचना को नए रूप में ढाल सकता है।


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भारत फिलहाल बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को प्रत्यर्पित करने की संभावना नहीं रखता, लेकिन ढाका के भीतर बदलते राजनीतिक समीकरण दक्षिण एशिया के रणनीतिक परिदृश्य को तेजी से प्रभावित कर रहे हैं। पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के संबंध जिस गति से मजबूत हो रहे हैं, उससे भारत–बांग्लादेश संबंधों में पहले जैसी गर्माहट अब कम होती दिख रही है। द फेडरल के वर्ल्डली-वाइज कार्यक्रम में केएस दक्षिणा मूर्ति ने बताया कि ढाका–इस्लामाबाद की बढ़ती निकटता और इसके साथ चीन व तुर्किये की गहरी होती मौजूदगी, आने वाले समय में भारत के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी कर सकती हैं।

नई कूटनीतिक जमावट

पिछले वर्ष अगस्त में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंध 1971 के बाद पहली बार इतने तेजी से मजबूत हुए हैं। इसके समानांतर भारत और बांग्लादेश के बीच कभी मजबूत रहा साझेदारी का रिश्ता अब कमजोर होता नजर आ रहा है—राजनीतिक संदेशों और व्यापारिक फैसलों में इसका साफ संकेत मिलता है। साथ ही चीन–पाकिस्तान के “ऑल-वेदर” रिश्ते अब बांग्लादेश के व्यापार, रक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों तक फैल चुके हैं। तुर्किये भी पाकिस्तान के साथ गहरी साझेदारी के बाद अब बांग्लादेश में अपनी सक्रियता तेजी से बढ़ा रहा है।


चीन–पाकिस्तान–बांग्लादेश–तुर्किये

भारत की रणनीतिक चिंताओं का एक बड़ा कारण यह संभावित चार-देशीय ढीला गठजोड़ है—पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन और तुर्किये। इन देशों में से केवल पाकिस्तान ही भारत के प्रति खुला विरोध रखता है, लेकिन बाकी तीन देशों की “तटस्थ” स्थिति किसी भी संकट के दौरान आसानी से बदल सकती है। मई 2025 के भारत–पाकिस्तान संघर्ष ने इस जोखिम को उजागर किया। उस दौरान चीन और तुर्किये दोनों ने पाकिस्तान को सैन्य उपकरण और तकनीकी सहायता खुले तौर पर प्रदान की, जो भारत के हितों के विरुद्ध थी।

क्या शेख हसीना की वापसी से स्थिति सुधरेगी?

एक बड़ा सवाल यह है कि क्या शेख हसीना की ढाका वापसी से भारत–बांग्लादेश संबंधों में आई ठंडक खत्म हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे तनाव कुछ हद तक कम तो होगा, लेकिन बड़े भू-राजनीतिक रुझान शायद न बदलें। इसका कारण यह है कि हसीना को सत्ता से हटाने वाला आंदोलन दक्षिणपंथी इस्लामी समूहों के नेतृत्व में था, जिनमें से अधिकांश भारत-विरोधी माने जाते हैं। इनमें जमात-ए-इस्लामी, नेशनल सिटिज़न्स पार्टी और बीएनपी के कुछ गुट शामिल हैं—जिनका 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम के प्रति भी नकारात्मक रुख रहा था।

ढाका–इस्लामाबाद सहयोग का विस्तार

पिछले एक वर्ष में दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ कम से कम तीन बार मिल चुके हैं। अक्टूबर में बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने पाकिस्तान के राजदूत इमरान हैदर से मुलाकात की, जिसमें दोनों देशों ने वर्षों से बंद पड़े जॉइंट इकोनॉमिक कमीशन को पुनर्जीवित करने पर सहमति जताई। अगस्त में पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री इशाक डार की ढाका यात्रा के दौरान राजनयिक व आधिकारिक पासपोर्ट धारकों के लिए वीज़ा-फ्री यात्रा का समझौता हुआ। पाकिस्तान ने 500 छात्रवृत्तियाँ देने और बांग्लादेशी वरिष्ठ नौकरशाहों को प्रशिक्षण देने की भी घोषणा की—जो ढाका की प्रशासनिक संरचना पर लंबा प्रभाव डाल सकती है।

संस्कृति, व्यापार और रक्षा क्षेत्र में बढ़ता पाकिस्तान प्रभाव

पाकिस्तानी कलाकार तल्हा अंजुम, अली आज़मत और इमाय भाई ढाका में बड़े दर्शक वर्ग के सामने प्रदर्शन कर चुके हैं। हसीना के हटने के बाद पांच महीनों में दोनों देशों के बीच व्यापार 27% बढ़ गया। 1971 के बाद पहली बार पाकिस्तान के व्यापारी जहाज चटगांव बंदरगाह पहुंचे। रक्षा सहयोग भी तेज़ी से बढ़ रहा है। इस वर्ष दोनों देशों के रक्षा नेतृत्व ने संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण और हथियार कारोबार पर चर्चा की। बांग्लादेश अपने “फोर्सेस गोल 2030” के तहत पाकिस्तान–चीन के संयुक्त JF-17 लड़ाकू विमान पर विचार कर रहा है।

भारत–बांग्लादेश संबंधों में तेज़ गिरावट

इसी दौरान भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में ठंडापन स्पष्ट दिखा। भारत ने अगस्त में बांग्लादेश से जूट आयात सीमित कर दिया। बांग्लादेश की जूट कमाई 13 मिलियन डॉलर से घटकर 3.5 मिलियन डॉलर रह गई। जवाब में ढाका ने कई मार्गों से भारत से धागे (यार्न) का आयात रोक दिया। हसीना सरकार के दौरान हस्ताक्षरित एक बड़ा बिजली समझौता अब जांच के दायरे में है।

दक्षिण एशिया के लिए संकेत

भारत और बांग्लादेश के रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं, लेकिन हसीना का दौर सबसे स्थिर माना जाता है। अब तेजी से बदलते भू-राजनीतिक हालात एक नए क्षेत्रीय समीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं, जहां बांग्लादेश–पाकिस्तान सहयोग, और उसके पीछे चीन व तुर्किये का समर्थन, दक्षिण एशिया की शक्ति संरचना को नए रूप में ढाल सकता है। यह परिदृश्य भारत के लिए अनुकूल नहीं है। ऐसे में नई दिल्ली को अपने पड़ोसी देशों के प्रति रणनीति में बड़े बदलाव की जरूरत पड़ सकती है।

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