
सीरिया : सियासी भूचाल के बीच सामने आया अबू मोहम्मद अल-जुलानी, जो बना तख्ता पलट का चेहरा
अबू मोहम्मद अल जुलानी ने जहाँ पहले सीरिया में ISIS का दामन थाम अल असद की सत्ता के खिलाफ आतंक मचाया, फिर ISIS का साथ छोड़ अपना ही संगठन HTS का गठन किया. सीरिया में एक एक कर जिलों/शहरों पर अपना कब्ज़ा कर प्रशासन का काम करते हुए खुद को राजनेता की तरह दिखाया.
Syria Unrest : सीरिया, जो पिछले 13 सालों से युद्ध की आग में जल रहा था, अब एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। हाल के घटनाक्रम में बशर अल-असद की सरकार का पतन हो गया है, और अबू मोहम्मद अल-जुलानी एक नई ताकत के रूप में उभरकर सामने आया है। जुलानी, जिसका अतीत कट्टरपंथी और आतंकवादी गुटों से जुड़ा रहा है, अब खुद को एक राजनीतिक नेता और सीरिया के भविष्य के संभावित रक्षक के तौर पर पेश कर रहा है।
अबू अल मोहम्मद जुलानी के जीवन पर गौर किया जाए तो न केवल उसने सीरिया में 50 साल पुराने राज को ख़त्म करने में कामयाबी हासिल की है, बल्कि खुद को भी एक आतंकवादी या कट्टरपंथ की छवि से बाहर निकाल कर एक राजनितिक या कहें तो प्रशासक की छवि में तब्दील करने में सफलता भी हासिल की है।
जानते हैं जुलानी के बारे में।
दमिश्क पर कब्जा: असद सरकार का अंत
रविवार की सुबह दमिश्क में एक ऐतिहासिक बदलाव हुआ। अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नेतृत्व में हयात तहरीर अल-शाम (HTS) ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया। यह वही जुलानी हैं, जिसने अलेप्पो, हमा और होम्स जैसे बड़े शहरों पर पहले ही कब्जा कर लिया था। बशर अल-असद की 50 साल पुरानी सत्ता अब खत्म हो गई है, और सीरिया एक नए राजनीतिक अध्याय की ओर बढ़ रहा है।
कौन हैं अबू मोहम्मद अल-जुलानी?
अबू मोहम्मद अल-जुलानी का असली नाम अहमद हुसैन अल-शारा है। उसका जन्म 1982 में दमिश्क के एक सुन्नी परिवार में हुआ। शुरुआती जीवन में ही जुलानी ने सीरिया की राजनीति और धर्म के गहरे प्रभाव को महसूस किया। इराक युद्ध के दौरान उसने अमेरिकी सेना के खिलाफ विद्रोह में भाग लिया और अल-कायदा के साथ जुड़ गए।
2003 में इराक में गिरफ्तार होने के बाद, उसे "कैम्प बुका" नामक एक जेल में बंद किया गया। यह जेल आतंकवादी संगठनों के नेताओं के लिए एक विचारधारा का गढ़ बन चुका था। यहां जुलानी ने अल-कायदा के नेताओं के साथ संपर्क बनाए और अपनी रणनीतिक सोच को धार दी।
अल-कायदा ISIS से अलगाव और HTS का गठन
2011 में सीरिया में बगावत शुरू होने के बाद, जुलानी ने अपने गुट "अल-नुसरा फ्रंट" की स्थापना की, जो अल-कायदा का सीरियाई धड़ा था। लेकिन 2013 में उसने अल-कायदा से दूरी बना ली और 2017 में अपने संगठन को "हयात तहरीर अल-शाम" (HTS) का नाम दिया। इस कदम का मकसद था—HTS को एक आतंकी संगठन से एक राजनीतिक ताकत में बदलना।
असद सरकार का पतन: कैसे बदला खेल?
सीरिया में असद सरकार की सेना लंबे समय से कमजोर पड़ रही थी। रूस और ईरान के समर्थन के बावजूद, उनकी सेना विद्रोही गुटों के सामने टिक नहीं पाई। जुलानी ने इस कमजोरी का फायदा उठाया और सैन्य के साथ-साथ राजनीतिक रणनीति भी अपनाई।
उसने विद्रोही इलाकों में प्रशासनिक ढांचा खड़ा किया, स्कूल और अस्पताल खोले, और स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल किया। जुलानी ने खुद को कट्टरपंथी नेता के बजाय एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में पेश किया।
जुलानी का बदला चेहरा: नेता या कट्टरपंथी?
हाल के वर्षों में जुलानी ने खुद को एक प्रगतिशील नेता के रूप में पेश करने की कोशिश की है। उन्होंने अपने संगठन से कट्टरपंथी विचारधारा वाले सदस्यों को बाहर किया और पश्चिमी देशों के साथ संवाद के संकेत दिए। हालांकि, अमेरिका ने HTS को अभी भी एक आतंकी संगठन माना हुआ है, और जुलानी के सिर पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम है। इसके बावजूद, उनके समर्थक उन्हें सीरिया का भविष्य मान रहे हैं।
सीरिया का भविष्य: एक अनिश्चित राह
जुलानी की नई छवि ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी असमंजस में डाल दिया है। रूस और ईरान के लिए, जुलानी एक चुनौती हैं, जबकि पश्चिमी देश उसके साथ बातचीत के रास्ते तलाश सकते हैं। सीरिया में सत्ता का यह बदलाव सिर्फ एक नई शुरुआत है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जुलानी अपनी छवि को और मजबूत कर पाता है, या उसके खिलाफ विरोध फिर से भड़क उठेगा। सीरिया की जंग तो खत्म होती दिख रही है, लेकिन सियासी संघर्ष अभी जारी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि जुलानी सीरिया को एक नई दिशा दे पाता है या यह बदलाव सिर्फ एक और संघर्ष का आगाज होगा।
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