COP 30: जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में क्या हुआ, क्या नहीं?
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COP 30: जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में क्या हुआ, क्या नहीं?

इस COP को कई लोग “आदिवासी लोगों का COP” कह रहे थे, लेकिन कई आदिवासी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।


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लगभग दो सप्ताह चली बातचीत के बाद इस वर्ष का संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (COP30) शनिवार को एक ऐसे समझौते के साथ समाप्त हुआ, जिसे कुछ ने “कमजोर” कहा, जबकि कुछ देशों ने इसे “आगे बढ़ने का कदम” बताया। सम्मेलन में हुए अंतिम समझौते में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए गरीब और संवेदनशील देशों को अधिक धन उपलब्ध कराने की सहमति बनी, लेकिन तेल, गैस और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधनों से दूर जाने की कोई स्पष्ट योजना शामिल नहीं की गई।

वैज्ञानिकों और जलवायु कार्यकर्ताओं का कहना है कि सम्मेलन ने दुनिया की वास्तविक जरूरतों के अनुरूप काम नहीं किया। कई देशों को भी वह हासिल नहीं हुआ, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। कार्यक्रम के दौरान तो सम्मेलन स्थल में आग लगने की घटना भी सामने आई। इसके बावजूद कुछ क्षेत्रों में प्रगति हुई है और उम्मीद है कि अगले साल देशों के बीच और ठोस परिणाम सामने आएंगे।

पिछले एक दशक से दुनिया के देश चरम मौसम, समुद्र स्तर में वृद्धि और जलवायु संकट के प्रभावों से निपटने के उपाय तय करने में लगे हैं। इस वर्ष, देशों को अपनी-अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं की समीक्षा कर परिणाम प्रस्तुत करने थे, लेकिन अधिकांश देशों के प्रयास मानकों पर खरे नहीं उतरे और कुछ देशों ने योजनाएं जमा ही नहीं कीं। सम्मेलन की मेजबानी कर रहे ब्राज़ील ने कोशिश की कि देश कठिन मुद्दों जैसे जलवायु से जुड़े व्यापार नियम, वित्तीय सहायता, राष्ट्रीय जलवायु योजनाएं और उनकी पारदर्शिता पर सहमत हों। 80 से अधिक देश जीवाश्म ईंधन को अगले कुछ दशकों में चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के लिए एक विस्तृत गाइड लाना चाहते थे। इसके अलावा वनों की कटाई, लैंगिक समानता और खेती से संबंधित मुद्दे भी एजेंडे पर थे।

कमजोर समझौते पर बनी सहमति

सम्मेलन में देश इस बात पर सहमत हुए कि वे जलवायु अनुकूलन के लिए गरीब देशों को दिए जाने वाले फंड को तीन गुना बढ़ाएंगे, लेकिन यह लक्ष्य पाने में पांच साल का समय लगेगा। कुछ छोटे द्वीप देशों ने इसे सकारात्मक कदम बताया।

हालांकि, अंतिम दस्तावेज़ में जीवाश्म ईंधनों से बाहर निकलने की कोई रोडमैप शामिल नहीं की गई, जिससे कई देश असंतुष्ट रहे। COP30 के अध्यक्ष आंद्रे कोर्रेआ दो लागो ने कहा कि ब्राज़ील स्वयं के लिए एक रोडमैप तैयार करेगा। हालांकि सभी देश इससे सहमत नहीं हुए हैं, पर समर्थक देश अगले वर्ष विशेष रूप से फॉसिल फ्यूल फेज-आउट पर चर्चा करेंगे। यह सम्मेलन के आधिकारिक निर्णय जितना प्रभावी नहीं होगा।

प्रतिक्रियाएं

एलायंस ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स की चेयरपर्सन इलाना सेड ने कहा कि हमने जितना सोचा था, उससे बेहतर परिणाम मिले। लेकिन कई देशों ने गहरी निराशा जताई। अंतिम बैठक में देशों के बीच जीवाश्म ईंधन योजना को लेकर तीखी बहसें हुईं। पनामा के वार्ताकार जुआन कार्लोस मोंटेरे गोमेज़ ने कहा कि सच कहूं तो COP और संयुक्त राष्ट्र की यह प्रणाली आपके लिए काम नहीं कर रही। कभी नहीं की। और आज यह आपको ऐतिहासिक स्तर पर निराश कर रही है।

सिएरा लियोन के पर्यावरण मंत्री जिवोह अब्दुलई ने कहा कि COP30 ने अफ्रीका की हर मांग पूरी नहीं की, लेकिन प्रगति जरूर हुई है। यह एक शुरुआत है, अंत नहीं। उन्होंने कहा कि असली सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह समझौता कितनी जल्दी जमीन पर वास्तविक परियोजनाओं में तब्दील होता है।

अमेज़न वर्षावन की पृष्ठभूमि में चली बातचीत

सम्मेलन के दौरान प्रतिभागियों को अमेज़न की तेज गर्मी, भारी नमी और लगातार बारिश का अनुभव करना पड़ा। आयोजकों का उद्देश्य था कि देश जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभावों को महसूस करें और साहसिक कदम उठाएं। लेकिन आलोचकों का कहना है कि अंतिम समझौता दिखाता है कि वैश्विक सहयोग पाना कितना कठिन है—खासकर जब सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब, आदिवासी, महिलाएं और बच्चे हों। ग्रीनपीस के जैस्पर इन्वेंटर ने कहा कि सम्मेलन की शुरुआत बड़े उत्साह से हुई, लेकिन अंत निराशाजनक रहा।

इस COP को कई लोग “आदिवासी लोगों का COP” कह रहे थे, लेकिन कई आदिवासी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आदिवासी समूहों ने दो बार सम्मेलन के दौरान प्रदर्शन कर अधिक भागीदारी की मांग उठाई। ब्राज़ील की तेरेना जनजाति की प्रतिनिधि टैली टेरेना ने कहा कि वह खुश हैं। क्योंकि पहली बार दस्तावेज़ में आदिवासी अधिकारों का उल्लेख शामिल हुआ है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया थोड़ी अराजक दिखती है, लेकिन हमें अच्छा लगता है कि देश प्रतिक्रिया दे रहे हैं—यही बहुपक्षीय व्यवस्था का तरीका है।

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