पन्नू से इतनी मोहब्बत क्यों, यूएस का दोहरापन या सिर्फ दबाव की राजनीति
अमेरिका अपना सार्वभौमिक अधिकार समझता है कि वो अपने हित के लिए दुनिया के किसी हिस्से में कार्रवाई कर सकता है। लेकिन बात दूसरे मुल्कों की आने पर परिभाषा बदल लेता है।
USA on Gurpatwant Singh Pannun: क्या अमेरिका आतंकवाद और अलगावाद के मुद्दे पर एक जैसा नजरिया पेश करता है। दरअसल यह सवाल गुरपतवंत सिंह पन्नू नाम के शख्स से जुड़ा। अमेरिका इसे अपना नागरिक मानता है जबकि भारत सरकार की नजर में वो खालिस्तान समर्थक है, वो भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा है। अमेरिका जब यह कहता है कि कोई भी शख्स अगर वो अमेरिका के लिए खतरा है तो उसके साथ सख्ती से वो पेश आएगा और वो उसका अधिकार भी है। लेकिन गुरपतवंत सिंह पन्नू के मुद्दे पर ऐसा लग रहा है कि अमेरिका अपनी नीति से पीछे हट रहा है। इसे आप ऐसे समझिए। भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी कहते हैं कि चाहे कोई दोस्त हो या दुश्मन अगर किसी अमेरिकी नागरिक के साथ आपराधिक कृत्य करता है तो उससे किसी तरह का समझौता नहीं है। जाहिर सी बात है कि वो विकास यादव को सीसी-1 घोषित कर भारत को धमकाने की कोशिश कर रहे हैं।
'दोस्त हो या दुश्मन कोई भी हो'
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए साक्षात्कार में एरिक गार्सेटी कहते हैं किअमेरिकी राजदूत गार्सेटी का कहना है कि इस मामले में दोनों देशों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अब तक भारतीय जांच में हुई प्रगति से संतुष्ट है, लेकिन वाशिंगटन तभी संतुष्ट होगा जब जवाबदेही सुनिश्चित होगी। एरिक गार्सेटी कहते हैं कि अमेरिकी अधिकारी मामले में भारत की जांच में हुई प्रगति से संतुष्ट हैं, वाशिंगटन अंततः तभी संतुष्ट होगा जब जवाबदेही हासिल होगी।
गार्सेटी ने कहा कि अमेरिका किसी भी तरह से आपराधिक गतिविधि पर समझौता नहीं कर सकता, चाहे वह दुश्मन की ओर से हो या करीबी दोस्त की ओर से। उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि क्या अमेरिका यादव के प्रत्यर्पण का प्रयास करेगा, क्योंकि उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण केवल उसके गिरफ्तार होने के बाद ही हो सकता है। भारत और अमेरिका के लिए इस मामले को सही तरीके से न लेना बहुत कुछ दांव पर लगा है। कनाडा में खालिस्तान अलगाववादियों को मिली छूट और अमेरिकी धरती से उनके द्वारा दी जाने वाली धमकियों के बारे में पूछे जाने पर, गार्सेटी ने कहा कि अमेरिका वास्तविक खतरों को गंभीरता से लेता है।
भारत के साथ मजबूत आतंकवाद विरोधी सहयोग का हवाला देते हुए, मुंबई हमलों के आरोपी तहव्वुर राणा का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत और अमेरिका ने उसके खिलाफ एक एयरटाइट प्रत्यर्पण मामला बनाया है। हमने शुरू से ही दो बातें कही हैं। इस तरह का व्यवहार किसी भी देश से दूसरे देश के लिए अस्वीकार्य है। निश्चित रूप से अमेरिकियों के रूप में हमारे लिए अस्वीकार्य है। यह एक लाल रेखा है, जो दुश्मन या सबसे करीबी दोस्त से आ रही है। यह हमारी पहली जिम्मेदारी है, चाहे वे कोई भी हों या कुछ भी कहें, कि एक सीमा तय की जाए कि भाड़े पर हत्या करना गैरकानूनी है, जैसा कि हर देश में है।
अमेरिका का दोहरापन
विदेशी मामलों के जानकार कहते हैं कि एरिक गार्सेटी की बातों में आप विरोधाभास देख सकते हैं। उन्हें इराक पर हमला करने में कुछ गलत नजर नहीं आता। ओसामा बिन लादेन के खात्मे के नाम पर अफगानिस्तान को तहस नहस करने में कुछ खामी नजर नहीं आती। सीरिया में अमेरिका अपने हस्तक्षेप को जायज ठहराता है। जैसे देहाती कहावत है कि जिसकी लाठी उसकी भैेंस। अगर आप अमेरिका के इतिहास को देखें तो उसे दूसरे मुल्कों का कान ऐंठना अच्छा लगता है। अमेरिका अभी भी इस भ्रम में जी रहा है कि आज का भारत 1950 वाला भारत है। लेकिन जिस तरह से भारत अपनी सीमा रेखा का निर्धारण कर रहा है अपनी आवश्यकता को प्राथमिकता देते हुए दूसरे मुल्कों से संबंध बना रहा है, खासतौर से ऐसे देश जिनकी अमेरिका से ट्यूनिंग अच्छी है उसकी वजह से अमेरिका प्रशासन परेशान है और वो भारत पर बेजा दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।