सूरज पर तूफान से धरती पर असर, बिजली- कम्युनिकेशन सेटेलाइट पर खतरा
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सूरज पर तूफान से धरती पर असर, बिजली- कम्युनिकेशन सेटेलाइट पर खतरा

जिस तरह से धरती पर तूफान आते हैं, ठीक वैसे ही सूरज पर भी तूफान आते हैं.इसकी वजह से कम्युनिकेशन सेटेलाइट के साथ साथ पावर ग्रिड पर भी असर पड़ता है.


Solar Storm News: धरती के अंदर हलचल होने पर उसके असर को हम जमीन पर महसूस करते हैं, किसी ज्वालामुखी में विस्फोट होने पर उसके असर को देखते हैं, समंदर के नीचे हलचल होने पर सुनामी जैसी घटना का गवाह बनते हैं. 40 के पार पारा जाने पर कहते हैं कि हे भगवान अब को बख्श दो. लेकिन जब सूरज पर खुद तूफान आ जाए तो मंजर कैसा होगा सोच के ही रुह कांप जाएगी.करीब 2 दशक के बाद सूरज पर तूफान उठा और उसका असर धरती तक महसूस हुआ. तस्मानिया से लेकर ब्रिटेन तक आसमां जगमगा उठा. लेकिन उसके असर से कम्युनिकेशन सेटेलाइट और पावर ग्रिड पर खतरा बढ़ गया है.

क्या होता है सौर तूफान
नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक 10 मई को पहले कोरोनल मास इजेक्शंस की शुरुआत हुई, इसमें प्लाज्मा और मैग्नेटिक फील्ड बाहर की तरफ फैलने लगता है. धीरे धीरे इसने अत्यधिक गंभीर रूर जियोमैग्नेटिक तूफान में बदल गया. साल 2003 में इसी तरह के सौर तूफान (जिसे हैलोवीन स्टॉर्म्स का भी नाम दिया गया) की वजह से स्वीडेन में ब्लैक आउट हो गया. दक्षिण अफ्रीका का पावर सिस्टम ठप हो गया. आने वाले दिनों में और अधिक कोरोनल मास इजेक्शन की आशंका है.

कम्युनिकेशन सेटेलाइट और पावर ग्रिड पर खतरा

इस अद्भुत नजारे को देखने के बाद सोशस मीडिया में रिएक्शंस की बाढ़ आ गई. कुछ लोगों ने बेहद सुंदर बताया तो कुछ लोगों के लिए डरावना. लेकिन आउटर वायुमंडल के अध्ययन में लगे शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि धरती की कक्षा में घूम रहे सेटेलाइट्स पर इसका असर पड़ सकता है और उसकी वजह से कम्युनिकेशन नेटवर्क प्रभावित हो सकता है. यही नहीं पावर ग्रिड के फेल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

सोलर फ्लेयर से अधिक विनाशकारी

सोलर फ्लेयर की तुलना में ये तूफान विनाशकारी होते हैं. दरअसल इसकी स्पीड लाइट से भी अधिक होती है, जैसा की हम जानते हैं कि धरती तक सूरज की किरणों के आने में महज 8 सेकेंड लगता है. सोलर स्टॉर्म्स की स्पीड एक सेकेंड में औसत 800 किमी हो सकती है. इनका जन्म एक विशालकाय सन स्पॉट क्लस्टर से होता है जो धरती की तुलना में 17 गुना अधिक बड़ा है. हर 11 साल पर सूरज पर इस तरह की एक्टविटी होती रहती है.

स्पेसक्रॉफ्ट, कबूतरों पर असर
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के प्रोफेसर मैथ्यू ओवन का कहना है कि इसका अधिक असर धरती के उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों पर नजर आता है. लेकिन इक्वेटर के करीब वाले इलाकों में असर सोलर स्टॉर्म की क्षमता पर निर्भर करेगा. सोलर स्टॉर्म से खतरा उसकी क्षमता पर आधारित होती है. वैसे तो धरती का वायुमंडल इसे पृथ्वी की सतह तक रोकने की कोशिश करता है लेकिन स्पेसक्रॉफ्ट के लिए खतरा बढ़ जाता है. यही नहीं कबूतरों और दूसरी प्रजातियों के बॉयोलोजिकल सिस्टम भी प्रभावित होते हैं. इसके साथ ही

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