नीतीश कैबिनेट में किसकी कितनी हिस्सेदारी, बदला जातीय संतुलन और सत्ता का पूरा गणित
नीतीश कुमार कैबिनेट 2025 में जातीय संतुलन बड़ा मुद्दा रहा। मुस्लिम-यादव समीकरण कमजोर पड़ा, जबकि अगड़ी जातियां और मध्य OBC नए शक्ति केंद्र बनकर उभरे।
नीतीश कुमार ने 10वीं बार बिहार के सीएम के तौर पर शपथ ली और उनके साथ ही 26 वो चेहरे सामने आए जो राज्य की दशा और दिशा बदलने में मदद करेंगे। यहां हम आपको मंत्रिमंडल के बारे में बताएंगे कि किस धड़े से कितने मंत्री बने और और उनका सामाजिक आधार क्या है। नीतीश मंत्रिमंडल में बीजेपी कोटे से 14 मंत्री, जेडीयू कोटे से 8, एलजेपी-आर से 2, राष्ट्रीय लोकमोर्चा से 1 और हिंदुस्तानी अवामी मोर्चे से एक मंत्री को शामिल किया गया है। इस मंत्रिमंडल की खास बात यह है कि राष्ट्रीय लोकमोर्चा के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा दीपक प्रकाश(बता दें कि ये अभी सदन का हिस्सा नहीं हैं) और हम के मुखिया जीतन राम मांझी के बेटे संतोष सुमन को मंत्री बनाया गया है।
आप अक्सर यह सुनते होंगे कि देश से जाति है कि जाती नहीं। हालांकि सियासी दल बड़ी खूबसूरती से इसे सामाजिक न्याय का नाम देते हैं। यहां आपको बताएंगे कि 2025 में नीतीश मंत्रिमंडल में किस जाति से कितने मंत्रियों को प्रदेश की हुकुमत में भागीदारी का मौका मिला है। बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली नई एनडीए सरकार ने कैबिनेट गठन में जातीय संतुलन को प्राथमिकता दी है। विभिन्न समुदायों को प्रतिनिधित्व देने के मकसद से मंत्रिमंडल में अगड़ी जाति, ओबीसी-ईबीसी, वैश्य, दलित और मुस्लिम समुदायों को हिस्सेदारी दी गई है।
अगड़ी जाति को मिली हिस्सेदारी
नीतीश कैबिनेट में अगड़ी जाति से कुल 8 मंत्री जिनमें 2 भूमिहार, 4 राजपूत,1 ब्राह्मण, 1 कायस्थ समाज से हैं। बीजेपी ने अपने कोर वोट बैंक को साधते हुए अगड़ी जाति से 5 मंत्री शामिल किए हैं। इसमें विजय कुमार सिन्हा (भूमिहार) को उपमुख्यमंत्री, मंगल पांडेय (ब्राह्मण),संजय सिंह ‘टाइगर’ (राजपूत),श्रेयसी सिंह (राजपूत), नितिन नबीन (कायस्थ) शामिल हैं।
जेडीयू ने अगड़ी जातियों से 2 मंत्री बनाए हैं। विजय कुमार चौधरी (भूमिहार), लेशी सिंह (राजपूत) हैं। एलजेपी (राम विलास) ने संजय कुमार सिंह (राजपूत) को मंत्री बनाया है।
ओबीसी-ईबीसी और वैश्य समुदाय को सबसे बड़ी हिस्सेदारी
एनडीए की नई सरकार में कुल 13 मंत्री ओबीसी, ईबीसी और वैश्य समुदाय से लिए गए हैं। यह सभी समुदायों में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व है।
बीजेपी—8 मंत्री
जेडीयू—4 मंत्री
आरएलएम—1 मंत्री
मुख्य समुदाय और चेहरे
कुर्मी समुदाय: स्वयं नीतीश कुमार मुख्यमंत्री
कोइरी समुदाय: सम्राट चौधरी, उपमुख्यमंत्री
यादव समुदाय
बीजेपी ने रामकृपाल यादव को और जेडीयू ने विजेंद्र यादव को कैबिनेट में शामिल किया है।
निषाद समुदाय
बीजेपी ने रमा निषाद,जेडीयू ने मदन सहनी को मंत्री पद से नवाजा।
वैश्य समुदाय
बीजेपी से डॉ. दिलीप जायसवाल और अरुण शंकर प्रसाद। इसके अलावा, बीजेपी ने अलग-अलग समूहों से सुरेंद्र मेहता (धानुक), डॉ. प्रमोद कुमार चंद्रवंशी (कहार), नारायण प्रसाद (तेली) को भी मंत्री बनाया है। जेडीयू ने कोइरी समाज से दीपक प्रकाश (उपेंद्र कुशवाहा के बेटे) को भी मंत्रिमंडल में स्थान दिया है।
दलित और मुस्लिम समुदाय को जगह
नई सरकार में 5 दलित मंत्री शामिल किए गए हैं।
बीजेपी से लखेंद्र पासवान, सुनील कुमार, जेडीयू से अशोक चौधरी, एलजेपी (राम विलास) से संजय कुमार पासवान,हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा)संतोष कुमार सुमन (जीतनराम मांझी के बेटे) हैं। इन दलित मंत्रियों में 2 दुसाध, 1 मुसहर, 1 पासी,1 रविदासी समाज से हैं।
कैबिनेट में महिलाओं की भागीदारी 11 फीसद
मुस्लिम समुदाय
मुसलमानों को प्रतिनिधित्व देने के लिए जेडीयू ने ज़मा खान को मंत्री बनाया है। नीतीश कुमार की यह कैबिनेट सामाजिक प्रतिनिधित्व, जातीय समीकरण और राजनीतिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। अगड़ी जातियां—8 मंत्री, ओबीसी-ईबीसी-वैश्य—13 मंत्री, दलित—5 मंत्री, मुस्लिम—1 मंत्री। इस तरह से एनडीए सरकार ने बिहार के विविध सामाजिक समूहों को समायोजित करते हुए एक संतुलित मंत्रिमंडल बनाने की कोशिश की है।
बिहार चुनाव 2025 ने जातीय प्रतिनिधित्व के मानचित्र को पूरी तरह बदल दिया है। इस बार कई पारंपरिक समीकरण कमजोर पड़े, जबकि कई जातीय समूह नई राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे हैं। चुनाव परिणाम बताते हैं कि राज्य की राजनीति एक नए सामाजिक पुनर्संतुलन से गुज़र रही है।
विधायकों की जातिगत स्थिति: किसे कितनी सीटें मिलीं
बिहार विधानसभा में इस बार चुने गए विधायकों की जातियों का वितरण इस तरह है।
दलित: 36
राजपूत: 32
यादव: 28
वैश्य: 26
कुर्मी: 25
कुशवाहा: 23
भूमिहार: 23
ब्राह्मण: 14
अति पिछड़ा वर्ग (EBC): 13
मुस्लिम: 11
कायस्थ: 2
यह आंकड़ा साफ दर्शाता है कि विपक्ष, सत्ता और प्रमुख सामाजिक समूहों के बीच एक नई शक्ति संरचना तैयार हो रही है।
MY समीकरण को सबसे बड़ा झटका
बिहार की राजनीति में दशकों से प्रभावी रहा मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण इस बार कमजोर पड़ गया। यादव सीटें 55 (2020) से घटकर 28 (2025) रह गईं। मुस्लिम सीटें 14 से घटकर 11 पर आ गईं। लगातार तीन चुनावों में पहली बार यादव समुदाय के प्रतिनिधित्व में इतनी बड़ी गिरावट दर्ज की गई। यह नतीजे स्पष्ट संकेत देते हैं कि RJD के पारंपरिक वोट बैंक में भारी बिखराव हुआ है और मतदाता अब एकमुश्त किसी एक दल के साथ नहीं खड़े हैं।यह बदलाव बताता है कि MY समीकरण की पकड़ ढीली पड़ी है और मतदाता वैकल्पिक जातीय गठबंधनों की ओर बढ़े हैं।
सामान्य वर्ग की मजबूत वापसी
इस चुनाव में सामान्य वर्ग (General Category) ने शानदार प्रदर्शन किया है।
राजपूत—सबसे बड़ा उभार
2020: 18 विधायक
2025: 32 विधायक
राजपूत विधायक संख्या में यह तेज़ उछाल बताता है कि समुदाय ने इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई।
भूमिहार—स्थिर और मजबूत उपस्थिति
2020: 17
2025: 23
भूमिहार समुदाय ने भी प्रभावशाली उपस्थिति बरकरार रखी है।
ब्राह्मण और कायस्थ
ब्राह्मण: 12 से बढ़कर 14
कायस्थ: 3 से घटकर 2
हालांकि ब्राह्मणों की मामूली बढ़त और कायस्थों की गिरावट दिखती है, लेकिन राजपूत और भूमिहार के उछाल ने सामान्य वर्ग को राजनीतिक प्रभाव के शीर्ष समूहों में पहुंचा दिया है।
मध्य OBC (कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य): राजनीति के नए शक्ति केंद्र
2025 का चुनाव मध्य ओबीसी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ। यह वर्ग इस चुनाव का सबसे बड़ा उभरता हुआ राजनीतिक समूह बनकर सामने आया।
कुर्मी: 10 से बढ़कर 25
कुशवाहा: 16 से बढ़कर 23
वैश्य: 22 से बढ़कर 26
इन तीनों जातियों ने न सिर्फ अपनी प्रतिनिधित्व क्षमता दोगुनी की है, बल्कि यह भी दिखाया है कि बिहार की राजनीति में अब मध्य OBC का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है।टिकट वितरण, चुनावी रणनीति और गठजोड़—सबमें इन समुदायों का महत्व पहले से कहीं अधिक हो गया है।
दलित और EBC: प्रतिनिधित्व में गिरावट और बिखराव
दलित
2020: 38
2025: 36
दलित प्रतिनिधित्व में हल्की गिरावट दर्ज की गई, जो उनके वोटों के खंडित होने का संकेत देती है। यह स्थिरता दर्शाती है कि दलित समुदाय किसी एक पार्टी के ठोस आधार के रूप में नहीं रहा।
अति पिछड़ा वर्ग (EBC)
2020: 21
2025: 13
ईबीसी प्रतिनिधित्व में भारी गिरावट इस बात का संकेत है कि इस वर्ग का वोट कई दलों के बीच बंट गया। कई क्षेत्रों में ईबीसी नेताओं की हार भी इसी बिखराव का नतीजा है।
ST सीटों में 4 गुना उछाल
हालांकि दलित और ईबीसी में गिरावट रही, लेकिन एसटी सीटों में उल्लेखनीय बढ़त ने एक नया संतुलन पैदा किया है।
बिहार में एक नई सामाजिक-राजनीतिक पटकथा
इन चुनाव परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में पारंपरिक MY समीकरण कमजोर हो चुका है, सामान्य वर्ग और मध्य OBC नए शक्ति केंद्र बनकर उभरे हैं,दलित और EBC मतदाता अब किसी एक दल के साथ सुरक्षित नहीं रहे। राज्य की राजनीति जातीय पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है। यह चुनाव बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को नए ढंग से परिभाषित करता है और आने वाले वर्षों में नए समीकरणों को जन्म देगा।