EU प्रेसिडेंट का भारत दौरा: FTA पर जगी उम्मीद! कारोबारी सहयोग बढ़ाने की कवायद
India and European Union: ईयू भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. जो भारतीय व्यापार का 12.2 प्रतिशत हिस्सा है.;
EU President India visit: यूरोपीय आयोग (EU) की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन का दो दिवसीय भारत दौरा 27 फरवरी से शुरू हो गया है. इस दौरे का मुख्य उद्देश्य भारत और यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर चर्चा को फिर से गति देना है. दोनों पक्षों के बीच इसको लेकर वार्ता 2007 में शुरू हुई थी. लेकिन 2013 में इन वार्ताओं को रोक दिया गया था. हालांकि, जून 2022 में इसे फिर से शुरू कर दिया गया था.
भारत और EU के व्यापारिक रिश्ते
ईयू भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. जो भारतीय व्यापार का 12.2 प्रतिशत हिस्सा है. यह अमेरिका (10.8 प्रतिशत) और चीन (10.5 प्रतिशत) से आगे है. इसके अलावा यूरोपीय संघ भारत के निर्यात का दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य है. जो अमेरिका के बाद आता है. वहीं, भारत यूरोपीय संघ का नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. जो 2023 में यूरोपीय संघ के कुल वस्तु व्यापार का 2.2 प्रतिशत हिस्सा बनाता है. हालांकि यह अमेरिका, चीन और ब्रिटेन से काफी पीछे है.
FTA वार्ताओं का इतिहास और वर्तमान स्थिति
भारत और यूरोपीय संघ के बीच FTA वार्ताएं 2007 में शुरू हुई थीं. लेकिन इन वार्ताओं को 2013 में स्थगित कर दिया गया था. क्योंकि किसी भी तरह की प्रगति नहीं हो रही थी. फिर 2022 में दोनों पक्षों ने इन वार्ताओं को फिर से शुरू किया. अब तक, कुल नौ दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, जिनमें से आखिरी दौर 23 से 27 सितंबर 2024 तक हुआ था. अगला दौर मार्च 2025 में ब्रसेल्स में होने की संभावना है. नौवें दौर की वार्ता में दोनों पक्षों ने कपड़ा, लकड़ी, कागज, रासायनिक उत्पाद, कीमती धातुएं, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए उत्पत्ति के नियमों पर चर्चा की. इसके अलावा बाजार पहुंच और व्यापार के अन्य पहलुओं पर भी बातचीत की गई.
विवाद और बाधाएं
FTA वार्ता में सबसे बड़ा विवादास्पद मुद्दा "कार्बन सीमा समायोजन तंत्र" (CBAM) है. इसे 2023 में मंजूरी दी गई थी और इसे 2026 से लागू करने की योजना है. यह तंत्र स्टील, सीमेंट और एल्युमीनियम जैसे उच्च-कार्बन उत्पादों पर शुल्क लगाने का प्रस्ताव करता है, ताकि 2050 तक शून्य-ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हासिल किया जा सके. भारत के लिए यह एक बड़ा मुद्दा है. क्योंकि यह भारतीय उद्योगों खासकर स्टील और सीमेंट जैसे क्षेत्रों पर आर्थिक दबाव डाल सकता है. ईयू अधिकारी चीन, दक्षिण अफ्रीका और भारत जैसे देशों को CBAM के खिलाफ मनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन भारत का मानना है कि इस तरह के नियम उसके निर्यातकों के लिए अतिरिक्त लागत और चुनौतियां पैदा करेंगे. वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बार-बार ईयू के कार्बन कर नियमों और वनों की कटाई की पहलों पर चिंता व्यक्त की है. गोयल का कहना है कि इन नियमों से भारत के निर्यात की लागत में वृद्धि हो सकती है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
भारत की प्राथमिकताएं
भारत का यह स्पष्ट रुख है कि छोटे और मझोले उद्योगों को ईयू के कार्बन लेवी से बाहर रखा जाए, साथ ही भारत भी एक समान शुल्क लगाने के विकल्प पर विचार कर सकता है. इसके अलावा भारत को उम्मीद है कि उसे यूरोपीय संघ के सेवा क्षेत्र में अधिक प्रवेश मिलेगा और कुछ श्रम-गहन उत्पादों जैसे वस्त्र और परिधानों पर शुल्क में कमी की जाएगी. भारत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि यूरोपीय संघ को भारत के विकास पथ और सामाजिक-आर्थिक जरूरतों को समझते हुए व्यापारिक समझौतों पर विचार करना चाहिए. गोयल ने यूरोपीय संघ से अपील की कि वे "कॉमन बट डिफरेंशिएटेड रिस्पॉन्सिबिलिटी" (CBDR) के सिद्धांत को लागू करते हुए भारत की स्थिरता और विकास आवश्यकताओं को ध्यान में रखें.
यूरोपीय संघ की मांग
दूसरी ओर, यूरोपीय संघ कुछ प्रमुख वस्तुओं पर भारत से शुल्क में कमी की उम्मीद करता है. इनमें व्हिस्की, शराब और कारें शामिल हैं. जो यूरोपीय संघ के लिए विशेष व्यापारिक हितों से जुड़ी हैं. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार, जबकि यूरोपीय संघ दावा करता है कि भारत का बाजार इन उत्पादों के लिए अपेक्षाकृत बंद है, आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं. 2023-2024 में यूरोपीय संघ ने भारत को 416 मिलियन डॉलर मूल्य की शराब निर्यात की और उसकी ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स निर्यात $2 बिलियन से अधिक थे.
गौरतलब है कि भारत को भेजी जाने वाली अधिकांश यूरोपीय संघ की कारें पूरी तरह से नॉक्ड-डाउन (CKD) रूप में होती हैं. जो स्थानीय असेंबली के लिए 15 प्रतिशत शुल्क आकर्षित करती हैं. कुल मिलाकर यूरोपीय संघ ने 2023-2024 में भारत को $61.5 बिलियन मूल्य का सामान निर्यात किया.
आर्थिक प्रभाव और भविष्य की दिशा
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष का यह भारत दौरा और FTA वार्ताओं के आगामी दौर का महत्व अब और भी बढ़ गया है. वैश्विक व्यापार में अमेरिकी टैरिफ के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत के लिए यूरोपीय संघ के साथ मजबूत व्यापारिक रिश्तों का निर्माण और FTA समझौते को जल्द अंतिम रूप देना जरूरी हो गया है. 27 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात को स्वीकार किया कि द्विपक्षीय व्यापार समझौते अब वैश्विक व्यापार की नई वास्तविकता बन चुके हैं और बहुपक्षीय संस्थाओं का योगदान धीरे-धीरे घट रहा है.