ट्रंप की धमकियों के खिलाफ भारत कैसे खड़ा हो सकता है – जानिए 7 विकल्प

डोनाल्ड ट्रंप का भारत के खिलाफ टैरिफ और दबाव की नीति, केवल अमेरिका की व्यापारिक प्राथमिकताओं का प्रतिबिंब नहीं है, बल्कि एकतरफा दबाव की राजनीति का हिस्सा है। भारत के पास वेदनशील लेकिन मजबूत विकल्प हैं।;

Update: 2025-07-31 17:40 GMT

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 25 प्रतिशत आयात शुल्क और "अतिरिक्त पैनेल्टी" को भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के संदर्भ में एक अस्थायी झटका माना जा रहा है। ट्रंप ने बाद में पुष्टि की कि व्यापार वार्ता अब भी जारी है, जिससे उम्मीद की किरण बनी हुई है। अगर ट्रंप के “प्लस पेनल्टी” को उनके द्वारा पहले ब्रिक्स देशों को दी गई 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ की धमकी माना जाए तो भारत पर कुल टैरिफ 35 प्रतिशत हो जाएगा — जो अभी तक औसतन 3.3 प्रतिशत था। यह दर बांग्लादेश के बराबर (35%), पाकिस्तान (29%) और श्रीलंका (30%) से अधिक है, लेकिन यूके (10%), जापान और दक्षिण कोरिया (15%), इंडोनेशिया (19%) और वियतनाम (20%) से काफी अधिक है।

भारत के निर्यात इस टैरिफ के कारण प्रभावित हो सकते हैं, लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि भारत आगामी व्यापार वार्ताओं में कैसा रुख अपनाता है। अगला दौर 25 अगस्त से प्रस्तावित है। भारत के पास अमेरिका के आर्थिक और सैन्य प्रभाव तथा ट्रंप की अनिश्चितता को देखते हुए कोई विकल्प नहीं बचता सिवाय बातचीत के। लेकिन भारत के पास एकतरफा अमेरिकी नीतियों का जवाब देने और अपनी संप्रभुता बनाए रखने के कई उपाय हैं, खासकर तब जब ट्रंप उसे रूसी तेल और हथियार खरीदने की सजा देने पर आमादा हैं।

भारत के पास 7 रणनीतिक विकल्प

1. टैरिफ और गैर-टैरिफ दीवारों को तोड़ना

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने चेताया था कि भारत ने 2014 के बाद व्यापार पर दीवारें खड़ी कर दी हैं। 1991 की व्यापार उदारीकरण नीति को दोहराने की जरूरत है। 1992-2019 के बीच निर्यात वृद्धि 11% तक पहुंच गई थी जबकि GDP 6.5% तक बढ़ी। लेकिन FY13-FY25 में निर्यात वृद्धि गिरकर 5.4% और GDP 6.1% तक सीमित हो गई है। भारत को ट्रंप के दबाव के बावजूद अपने टैरिफ और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCOs) जैसे गैर-टैरिफ अवरोध खत्म करने चाहिए। साथ ही WTO द्वारा दिए गए ‘विशेष और भेदभावपूर्ण उपचार’ (SDT) के अधिकार का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए।

2. WTO आधारित वैश्विक नियमों की रक्षा

ट्रंप की मनमानी और ‘डीलमेकिंग’ का सबसे बड़ा जवाब है WTO का नियम-आधारित ढांचा। पहले कार्यकाल में ट्रंप ने WTO के विवाद समाधान तंत्र को पंगु कर दिया था। भारत को EU, BRICS, जापान, जर्मनी जैसे देशों के साथ मिलकर WTO की वापसी की लड़ाई लड़नी चाहिए।

3. चीन के साथ तकनीकी और निवेश सहयोग

चीन आज न केवल दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, बल्कि तकनीक, हरित ऊर्जा, सेमीकंडक्टर और मैन्युफैक्चरिंग में भी अग्रणी है। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण ने RCEP में शामिल होने, FDI और इंजीनियरिंग क्षेत्र में सहयोग की सलाह दी थी। चीन ने भी ट्रंप के दबाव का सामना किया है — भारत को दीर्घकालीन दृष्टिकोण अपनाना होगा।

4. डॉलर पर निर्भरता घटाने के लिए BRICS के साथ खड़ा होना

BRICS देशों ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और साझा मुद्रा पर काम शुरू किया था, लेकिन भारत ने ट्रंप की धमकी के बाद जनवरी 2025 में पीछे हटने की घोषणा कर दी। इसके विपरीत ब्राजील ने मजबूती से डटे रहने का फैसला किया। BRICS आज 37.3% वैश्विक GDP और 40% तेल उत्पादन पर नियंत्रण रखता है — इसका एकजुट होना ट्रंप के दबाव को बेअसर कर सकता है।

5. बड़े व्यापारिक समूहों से जुड़ना

भारत को RCEP के साथ-साथ CPTPP और IPEF के व्यापार स्तंभ से भी जुड़ना चाहिए। IPEF में अमेरिका सहित ऑस्ट्रेलिया, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत हो सकते हैं। इन समूहों से जुड़कर भारत अपने विकल्प और सौदेबाजी की ताकत बढ़ा सकता है।

6. पड़ोसी देशों और अफ्रीका से व्यापार विस्तार

भारत की “लुक ईस्ट” नीति और “ग्लोबल साउथ” की बातों के बावजूद उसका पड़ोस और अफ्रीकी देशों से व्यापार सहयोग सीमित रहा है। वहीं, चीन ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्रीका में अपनी पकड़ मजबूत की है। भारत को अफ्रीकी यूनियन के साथ FTA शुरू करना चाहिए और पड़ोस में आर्थिक पहल बढ़ानी चाहिए।

7. कूटनीति को पुनः परिभाषित करना

कूटनीति स्थायी मित्रों या शत्रुओं की नहीं, परिस्थिति अनुसार संबंधों को साधने की कला है। भारत ने ट्रंप के 2024 राष्ट्रपति अभियान के दौरान उन्हें नजरअंदाज किया (जब प्रधानमंत्री अमेरिका तो गए, पर ट्रंप से नहीं मिले)। अब ट्रंप पाकिस्तान में तेल परियोजना की घोषणा कर भारत पर शुल्क भी लगा रहे हैं — इसे एक कूटनीतिक चूक माना जा रहा है। भारत को संतुलित और दीर्घकालिक राजनयिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

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