CEA वी अनंथ नागेश्वरन का बड़ा बयान, बोले- भारत नहीं तलाश रहा डॉलर का विकल्प
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने देश की मजबूत आर्थिक स्थिति पर कहा कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7.8% जीडीपी वृद्धि दर्ज की गई है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चल रही उन खबरों को खारिज कर दिया कि भारत डॉलर का विकल्प लाने की कोशिश कर रहा है.;
भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथ नागेश्वरन ने साफ कहा है कि भारत अमेरिकी डॉलर का कोई विकल्प नहीं तलाश रहा है. उन्होंने बताया कि भारत अपनी आर्थिक मजबूती पर ध्यान दे रहा है और किसी भी ऐसे वैश्विक प्रयास का भारत हिस्सा नहीं है, जिसका मकसद डॉलर को हटाना हो.
AIMA द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य आर्थिक सलाहकार से जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में किसी मुद्रा पर विचार कर रहा है, तो उन्होंने कहा, "नहीं, बिल्कुल नहीं. भारत किसी भी ऐसे प्रयास का हिस्सा नहीं है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने देश की मजबूत आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 7.8% जीडीपी वृद्धि दर्ज की गई है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चल रही उन खबरों को खारिज कर दिया जिनमें दावा किया गया था कि भारत डॉलर का विकल्प लाने की कोशिश कर रहा है. यह बयान उस समय आया है जब ब्रिक्स जैसे मंचों पर डॉलर-निर्भरता कम करने (de-dollarisation) की चर्चाएँ चल रही हैं, लेकिन भारत इस मामले में सावधानीपूर्ण रुख अपना रहा है. नागेश्वरन का यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर नए टैरिफ लगाए हैं और ट्रंप बार-बार कहते रहे हैं कि डॉलर की चुनौती देने की किसी भी कोशिश को वे बर्दाश्त नहीं करेंगे.
CEA नागेश्वरन ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है और इस साल की पहली तिमाही में जीडीपी 7.8% बढ़ी है. उन्होंने यह भी बताया कि भारत जहाँ संभव हो, व्यापार को स्थानीय मुद्राओं में करना पसंद करता है, लेकिन इससे डॉलर की अहमियत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ से भारत की जीडीपी पर थोड़ा असर पड़ सकता है, लेकिन यह प्रभाव अस्थायी होगा. उनके मुताबिक, भारत की जीडीपी की ग्रोथ रेट वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3% से 6.8% के बीच रह सकती है.
हाल के वर्षों में कई जानकारों का मत रहा है कि अमेरिकी करेंसी डॉलर के अलावा दुनिया में एक और करेंसी को रिजर्व करेंसी का स्टेट मिलना चाहिए जिससे अमेरिकी डॉलर के दबदबे को चुनौती दी जा सके. नॉस्ट्रो अकाउंट पर भी डॉलर का कंट्रोल है. कच्चे तेल से लेकर दूसरे कमोडिटी खरीदने से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार को भरने के लिए सभी देश डॉलर खरीदते हैं साथ द्विपक्षीय ट्रेड के लिए भी डॉलर का इस्तेमाल किया जाता है. 1920 तक पाउंड स्टर्लिंग में रिजर्व करेंसी हुआ करता था लेकिन डॉलर ने उसकी जगह ले ली.