जीडीपी बढ़ी लेकिन नौकरियां घटीं, विनिर्माण क्षेत्र बना सबसे बड़ा संकट
भारत में रोजगार संकट गहराता जा रहा है। विनिर्माण क्षेत्र औपचारिक और अनौपचारिक दोनों स्तरों पर नौकरियाँ खो रहा है, जिससे असुरक्षित और बिना वेतन वाले काम बढ़े हैं।;
भारत तेजी से नौकरियाँ खो रहा है सिर्फ औपचारिक (Formal) क्षेत्र में ही नहीं बल्कि अनौपचारिक (Informal) क्षेत्र में भी। और इस संकट के पीछे सबसे बड़ा कारण फिर से विनिर्माण (Manufacturing) क्षेत्र बनकर सामने आया है। यह स्थिति तब है जब महामारी के बाद FY22 से FY25 के बीच जीडीपी की औसत वृद्धि दर 8.2% और FY26 की पहली तिमाही में 7.8% (स्थिर कीमतों पर) रही है।
हाल ही में जारी चार आधिकारिक रोजगार रिपोर्टों में से तीन ने इस सच्चाई को साफ तौर पर सामने रखा है। इनमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब अनौपचारिक विनिर्माण क्षेत्र (छोटे गैर-पंजीकृत प्रतिष्ठान) में भी नौकरियाँ घट रही हैं, जबकि प्रतिष्ठानों की कुल संख्या बढ़ी है।
अनौपचारिक विनिर्माण में गिरावट
Quarterly Bulletin on Unincorporated Sector Enterprises (QBUSE) ने दिखाया कि FY26 की पहली तिमाही में गैर-कृषि अनौपचारिक प्रतिष्ठानों की संख्या 1% बढ़ी, लेकिन विनिर्माण प्रतिष्ठानों का हिस्सा 28% से घटकर 26% रह गया।
मुख्य निष्कर्ष
कुल कामगारों की संख्या 2% घटी।
मालिक खुद अधिक काम करने लगे (58.3% से 60.2%)।
हायर किए गए कामगारों का हिस्सा 26.8% से घटकर 24.3% रह गया।
बिना वेतन वाले परिवारजन (Unpaid family workers) बढ़कर 15.4% हो गए।
ग्रामीण कामगारों की संख्या 59.7 मिलियन से बढ़कर 62.5 मिलियन हो गई।
महिलाओं की हिस्सेदारी 28% से ज्यादा रही।
इसका नतीजा यह निकला कि असुरक्षित नौकरियां बढ़ गईं। काम करने वाले मालिक और बिना वेतन वाले पारिवारिक सदस्य अब कुल कार्यबल का 75.6% हैं। खासतौर पर विनिर्माण में सबसे ज्यादा गिरावट आई है, जहाँ नौकरीपेशा कामगारों की जगह मालिकों और परिवार के श्रम पर निर्भरता बढ़ी है।
संगठित विनिर्माण में ‘अनौपचारिकीकरण’
Annual Survey of Industries (ASI) 2023-24, जारी 27 अगस्त को, दिखाता है कि संगठित विनिर्माण में GVA वृद्धि 11.9% और कामगारों की संख्या 5.6% बढ़ी। लेकिन वास्तविक वेतन वृद्धि मात्र 0.1% रही। ठेका कामगारों का हिस्सा बढ़कर 42% हो गया। इससे साफ है कि संगठित क्षेत्र में भी असुरक्षित नौकरियाँ बढ़ रही हैं। यह स्थिति तब है जब सरकार ने 2019 में कॉर्पोरेट टैक्स में भारी कटौती और कई प्रोत्साहन योजनाएं शुरू कीं जैसे प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना (PMRPY), आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (ABRY) और हाल ही में शुरू Employment Linked Incentive (ELI) योजना।
EPFO डेटा, विनिर्माण सबसे प्रभावित
20 अगस्त को जारी EPFO आंकड़े दिखाते हैं कि नए ईपीएफ सब्सक्राइबर FY23 में 11.5 मिलियन से घटकर FY25 में 11.39 मिलियन रह गए।FY19 के 13.9 मिलियन से काफी कम। कुल नेट पेरोल भी FY23 के 13.9 मिलियन से घटकर FY25 में 12.98 मिलियन रह गया। विशेष रूप से 35 साल से ऊपर के कामगारों में, विनिर्माण (इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल और इंजीनियरिंग प्रोडक्ट्स) सबसे ज्यादा नौकरियाँ खोने वाला क्षेत्र साबित हुआ।
तिमाही PLFS: विनिर्माण हिस्सेदारी छिपी हुई
FY26 की पहली Quarterly PLFS रिपोर्ट (18 अगस्त) ने कृषि, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में वर्गीकरण किया, लेकिन विनिर्माण की अलग हिस्सेदारी नहीं बताई। द्वितीयक क्षेत्र (निर्माण + बिजली + विनिर्माण) की हिस्सेदारी 26.6% रही। कृषि 39.5% और तृतीयक (सेवाएं) 33.9%। नियमित वेतन/सैलरी” वाले औपचारिक रोजगार सिर्फ 25.5% हैं, जबकि 54.4% स्वरोजगार और 20.1% आकस्मिक मजदूरी है।बिना वेतन वाले पारिवारिक कामगार 14.1%। यह वर्गीकरण इस सवाल को जन्म देता है कि क्या विनिर्माण में गिरावट को जानबूझकर छिपाया जा रहा है?
गंभीर चेतावनी
स्पष्ट है कि विनिर्माण में न तो औपचारिक और न ही अनौपचारिक क्षेत्र पर्याप्त नौकरियाँ पैदा कर पा रहा है। यह स्थिति 12वीं पंचवर्षीय योजना (2013) की उस चेतावनी को याद दिलाती है जब 2004-05 से 2009-10 के बीच विनिर्माण में 50 लाख नौकरियाँ खो गई थीं। असल समस्या यह है कि विनिर्माण अधिक पूंजी और तकनीक-आधारित हो गया है, लेकिन इस पर कोई ठोस अध्ययन नहीं हुआ है। अब जबकि अनौपचारिक विनिर्माण भी नौकरियाँ खो रहा है, नीति-निर्माताओं को सिर्फ कॉर्पोरेट्स को कैश देने के बजाय असली कारणों की गहन पड़ताल करनी होगी।