भारत की FTA रणनीति, बाज़ार खोलने या आत्मनिर्भरता छोड़ने की तैयारी?

यूके के साथ FTA में भारत ने शुल्क, सरकारी खरीद और दवा नीति पर बड़ा झुकाव दिखाया है। यह ट्रेंड भविष्य में अमेरिका और EU के साथ भी दिख सकता है।;

Update: 2025-07-27 04:20 GMT
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ब्रिटिश समकक्ष कीर स्टारमर के साथ लंदन में चाय का आनंद लेते हुए। ब्रिटेन के साथ भारत का व्यापार समझौता संभवतः अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ बड़े मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के लिए एक आदर्श उदाहरण है। X/@narendramodi

India UK Free Trade Agreement:  भारत यह भले ही स्वीकार न करे, लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत को टैरिफ किंग कहे जाने और प्रतिस्पर्धी शुल्क धमकियों ने भारत को कई मोर्चों पर झुकने को मजबूर कर दिया है। हाल ही में यूके के साथ हस्ताक्षरित मुक्त व्यापार समझौता (FTA) इस बात की पुष्टि करता है कि भारत अब अपने घरेलू उद्योगों को मिली शुल्क सुरक्षा को लगातार खत्म कर रहा है।  इसकी शुरुआत फरवरी 2025 के बजट से हुई थी।

इस समझौते में भारत ने सरकारी खरीद और जनता के लिए सस्ती दवाओं के क्षेत्र में भी अपनी पारंपरिक सुरक्षा नीति को कमजोर किया है। यह FTA संभवतः अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के साथ आगामी बड़े व्यापार समझौतों के लिए रूपरेखा (टेम्पलेट) बनेगा।

तीन प्रमुख क्षेत्र जहां भारत ने यूके के सामने झुकाव दिखाया

बड़े पैमाने पर शुल्क में रियायतें

सरकारी खरीद में यूके कंपनियों को प्रवेश

जनहित में अनिवार्य लाइसेंसिंग की जगह स्वैच्छिक लाइसेंसिंग को तरजीह

शुल्क और व्यापार नियमों में ढील

भारत ने यूके से आयात होने वाले 90% वस्तुओं पर औसत शुल्क 15% से घटाकर 3% कर दिया है। इनमें व्हिस्की (पहले 150%) और वाहन (110% तक) जैसे उच्च शुल्क वाले उत्पाद भी शामिल हैं। सेवा क्षेत्रों में भी आयात नियमों में ढील दी गई है। इसके विपरीत, यूके ने भारत से आयात होने वाली 99% वस्तुओं पर शुल्क शून्य कर दिया है इनमें से कई पहले से ही शून्य शुल्क पर थीं।

हालांकि, WTO का विशेष और भेदभावपूर्ण व्यवहार (SDT) विकासशील देशों को अधिक छूट देने की अनुमति देता है, भारत ने 2014 से आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत टैरिफ दीवारें खड़ी करना शुरू किया था, जिसने 1991 के उदारीकरण के उलट रुख दिखाया।2023–24 में भारत ने चीन, वियतनाम और दक्षिण कोरिया से आयात पर गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCCs) और एंटी-डंपिंग ड्यूटी भी लागू की थी।

ट्रंप की धमकियों की प्रतिक्रिया

भारत में प्रोटेक्शनिस्ट नीति से पीछे हटने की शुरुआत ट्रंप की धमकियों के बाद हुई। फरवरी 2025 के बजट में, भारत ने हार्ले-डेविडसन, टेस्ला और एप्पल जैसे अमेरिकी ब्रांडों को लाभ देने हेतु मोटरसाइकिल, कार, स्मार्टफोन पार्ट्स और औद्योगिक आयात पर शुल्क कम किया। FTA के तुरंत बाद वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने घोषणा की कि भारत अब टैरिफ किंग नहीं रहा।

‘मेक इन इंडिया’ में विदेशी प्रवेश

भारत ने अब यूके की कंपनियों को सरकारी खरीद प्रणाली में समान अधिकार दे दिए हैं, जो पहले केवल घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित थी। यूके कंपनियों को क्लास II स्थानीय आपूर्तिकर्ता का दर्जा मिलेगा, यानी 20% घरेलू सामग्री रखने वाली यूके कंपनियां भी भारत में सरकारी टेंडर में भाग ले सकेंगी। जहां सरकार GDP का 20% खर्च करती है।यूके सरकार ने खुद कहा कि उसकी कंपनियों को भारत की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत विशेष दर्जा मिलेगा। हालांकि भारतीय कंपनियाँ भी यूके की NHS (नेशनल हेल्थ सर्विस) जैसी संस्थाओं के टेंडर में भाग लेंगी, लेकिन समझौते से पहले भी उन्हें कुछ हद तक यह अनुमति प्राप्त थी।

2024 में UAE के साथ हुआ FTA पहला ऐसा समझौता था जिसमें विदेशी कंपनियों को सरकारी खरीद में भाग लेने दिया गया था, लेकिन यूके के साथ हुआ समझौता कहीं अधिक व्यापक और प्रभावशाली है।

दवाओं की सुलभता पर समझौता

भारत ने 2024 में EFTA (स्विट्जरलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, लिकटेंस्टीन) के साथ हुए समझौते में जन-हित में दवाओं की सुलभता के मुद्दे पर पहली बार नरम रुख अपनाया। पेटेंट प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया, जिससे पेटेंट धारकों को ज्यादा अधिकार और पारदर्शिता कम हो गई। इसके बाद, 2024 के पेटेंट नियमों में बदलाव लाकर इसे भारत की आधिकारिक नीति बना दिया गया।

अनिवार्य लाइसेंसिंग की जगह स्वैच्छिक प्रणाली

2003 में भारत ने सार्वजनिक हित में अनिवार्य लाइसेंसिंग का प्रावधान लाया था। इसके तहत सस्ती कैंसर दवा सोराफेनीब 2012 में Bayer की महंगी Nexavar दवा के विकल्प के रूप में बनी थी। अब UK के साथ FTA में इस नीति को कमजोर किया गया है। स्वैच्छिक लाइसेंसिंग को प्राथमिकता दी गई है। यह नीति यह मानती है कि दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने का सर्वोत्तम तरीका स्वैच्छिक व्यवस्था है।बड़े फार्मा ब्रांड जिनका मुनाफा पेटेंट से चलता है, उनके इस तंत्र को स्वेच्छा से अपनाने की संभावना कम ही है।

इमिग्रेशन और कार्बन टैक्स पर भ्रम

यूके ने FTA में इमिग्रेशन पर बहुत सीमित रियायतें दी हैं। एकमात्र बड़ी छूट यह है कि 1,800 भारतीय योग शिक्षक, संगीतकार और शेफ को अस्थायी वीज़ा मिलेगा। स्थायी निवास या नया वीज़ा रूट नहीं दिया गया है। इसके अलावा, भारतीय कर्मचारियों को यूके में तीन वर्षों तक सोशल सिक्योरिटी अंशदान से छूट मिलेगी।

वहीं, कार्बन टैक्स (CBAM) के मुद्दे को FTA में पूरी तरह अनदेखा किया गया है — जो 2026 से यूके लागू करने जा रहा है। भारत ने 2023 में इसका जवाब देने की योजना बनाई थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

आगे क्या?

1970–80 के दशक का संरक्षणवाद भारत के लिए विफल नीति रहा है। उदारीकरण (1991) के बाद भारत की निर्यात वृद्धि दर औसतन 11% रही, जबकि उससे पहले यह 4.5% थी। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी इस पर ज़ोर दिया कि खुला व्यापार भारत की ताकत रहा है।अब जबकि भारत ने टैरिफ और गैर-टैरिफ दीवारें गिरानी शुरू की हैं, यह ट्रेंड अमेरिका और EU के साथ होने वाले समझौतों में भी दिखाई देगा। अमेरिका के साथ ट्रंप की अगली धमकियाँ इस रुख को और तेज़ कर सकती हैं।

हालाँकि, स्वास्थ्य, सरकारी खरीद और पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं पर भारत को अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत है — वरना यह व्यापार आज़ादी के बदले जनहित की क़ीमत पर हो सकता है।

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