सुपर-रिच भारतियों का खेल, टैक्स बचाने की कला में मास्टर!
भारत में अमीर टैक्स चुकाने के मामले में सामान्य नागरिकों से अलग हैं। मित्तल का दुबई जाने का निर्णय और अंबानी जैसी घटनाएं इस तथ्य को उजागर करती हैं कि अमीर भारतीय आमतौर पर टैक्स बचाने के लिए सिस्टम का फायदा उठाते हैं, जबकि सरकार उनकी टैक्स देनदारी बढ़ाने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाती।
भारत में शायद ही किसी को यह आश्चर्यचकित करे कि ब्रिटेन में रहने वाले और स्विट्ज़रलैंड के टैक्स निवासी भारतीय मूल के अरबपति लक्ष्मी निवास मित्तल ने दुबई में पलायन करने का ऐलान किया है। यह कदम ब्रिटेन में लेबर सरकार द्वारा बुधवार (26 नवंबर) को बजट पेश करने की तैयारी के बीच आया है। दुबई कम टैक्स वाला इलाका माना जाता है। ब्रिटेन की चांसलर ऑफ़ एक्सचेकर रेचल रीव्स ने पहले ही संकेत दिया था कि अमीरों पर अधिक टैक्स लगाना उनकी एजेंडा का हिस्सा है। वहीं, कई ब्रिटिश करोड़पति सामने आए हैं और उन्होंने चांसलर को बताया कि वे अधिक टैक्स देने के लिए तैयार हैं। भारत में ऐसा कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती।
इनकम छिपाना आम बात
भारत में मित्तल के ऐलान को लोग सहजता से ले रहे हैं। इसकी वजह साफ है। पिछले कुछ हफ्तों में खबरें आई हैं कि भारत के एक और सुपर-रिच अनिल अंबानी और उनकी कंपनियों की कई संपत्तियों पर जब्ती की गई है। इसमें जमीन और इमारतें शामिल हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कथित मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य गड़बड़ियों के आरोप में कुल 8,977 करोड़ रुपये की संपत्तियों की जब्ती की है (अंतिम गणना 20 नवंबर 2025 तक)। वहीं, फरवरी 2020 में अनिल अंबानी ने ब्रिटेन की अदालत में कहा था कि उनकी नेट वर्थ शून्य है, जबकि उनके पास कारों का बेड़ा, निजी जेट और यॉट था। इसके बाद एक प्रमुख राष्ट्रीय अखबार ने रिपोर्ट की थी कि अनिल अंबानी ने ब्रिटिश अदालत को बताया, उनकी नेट वर्थ शून्य है। अगले साल “पैंडोरा पेपर्स” की जांच में यह भी सामने आया कि उनके $1.3 बिलियन की विदेशी कंपनियों की वेब है, जिसके बावजूद उनकी संपत्तियों का जिक्र नहीं हुआ।
सुपर-रिच भारतीय टैक्स देने के मामले में आमतौर पर कम उत्सुक होते हैं। समाचारपत्र हर साल यह रिपोर्ट करते हैं कि हजारों भारतीय डॉलर करोड़पति टैक्स बचाने के लिए दुबई और अन्य टैक्स हेवन्स की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन अधिकांश सुपर-रिच अपने आय को छुपाकर कम टैक्स देते हैं।
जितना अमीर, उतना कम टैक्स
2023 में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के निदेशक प्रो. राम सिंह ने यह खुलासा किया कि अमीर लोग किस तरह अपने आय को कम दिखाते हैं। उनके अध्ययन “Do the Wealthy Underreport their Income?” के कुछ मुख्य निष्कर्ष:-
1. जितना अमीर व्यक्ति या परिवार, उतनी कम आय रिपोर्ट करता है।
2. परिवार की संपत्ति में 1% वृद्धि होने पर रिपोर्ट की गई आय में 0.5% से अधिक की कमी होती है।
3. सबसे अमीर 5% परिवार की रिपोर्ट की गई आय केवल उनकी संपत्ति का 4% है।
4. सबसे अमीर 0.1% की रिपोर्ट की गई आय उनकी संपत्ति का केवल 2% है।
5. Forbes सूची के 100 परिवारों की अधिकांश पूंजी आय उनके रिपोर्टेड इनकम में शामिल नहीं होती।
6. सबसे अमीरों की टैक्स देनदारी उनकी पूंजी आय का केवल एक-दसवां है।
7. मीडिया और सिविल सोसाइटी की जांच के अंतर्गत लोग अधिक आय रिपोर्ट करते हैं।
अध्ययन में यह भी बताया गया कि भारत में अमीरों की आय कम नहीं है, बल्कि टैक्स कानून और पूंजी आय की रिपोर्टिंग प्रणाली उन्हें कम टैक्स देने का अवसर देती है।
भारत का रिग्रेसिव टैक्स सिस्टम
अधिकांश अमीर पूंजी आय से आते हैं, जो टैक्स में “अनरियलाइज़्ड” मानी जाती है। उनके पास ज़मीन, गैर-कृषि भूमि और वाणिज्यिक संपत्ति होती है, जिसे टैक्स के लिए सही तरीके से रिपोर्ट करना मुश्किल होता है। कृषि आय टैक्स मुक्त है। प्रो. सिंह कहते हैं कि भारतीय टैक्स प्रणाली अमीरों के लिए अनुकूल (रिग्रेसिव) है, जिससे उनकी टैक्स देनदारी बहुत कम रहती है।
सरकार अमीरों पर टैक्स नहीं बढ़ा रही
2015 में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वेल्थ टैक्स को हटा दिया और 1 करोड़ रुपये से अधिक आय पर 2% अतिरिक्त सरचार्ज प्रस्तावित किया था, जिसे बाद में अमीरों के विरोध के कारण वापस ले लिया गया। दिसंबर 2024 में ‘बिलियनेयर टैक्स’ की मांग पर मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंथा वी. नागेश्वरन ने चेतावनी दी कि पूंजी पर अधिक टैक्स लगाने से पूंजी बाहर चली जाएगी और उसे वापस लाना कठिन होगा।