IndusInd Bank के शेयर डूबने की इनसाइड स्टोरी,बैंक से चूक या गेम प्लान?

इंडसइंड बैंक में अंदरखाने चल क्या रहा है? इसके शेयर क्यों डूबे? इसके टॉप मैनेजमेंट लेवल पर क्या हलचल मची है? क्या जो हो रहा है, वो सोचा-समझा गेम प्लान है?;

Update: 2025-03-13 10:46 GMT

इंडसइंड बैंक के वित्तीय खुलासों ने बैंकिंग सेक्टर में हलचल मचा दी है। बैंक ने स्वीकार किया कि उसके विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव सौदों में “मार्क-टू-मार्केट” यानी MTM कैलकुलेशन में एक गलती हुई, जिससे बैंक के नेटवर्थ में 1,577 करोड़ रुपये की गिरावट आई है।

इस खुलासे के बाद बैंक के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों के बीच चिंता बढ़ गई। बैंक का दावा है कि ये सिर्फ़ एक अकाउंटिंग एरर था, लेकिन जो घटनाक्रम सामने आए हैं, वे इस कहानी को कहीं ज़्यादा पेचीदा बनाते हैं।

गलती या सुनियोजित खेल?

इंडसइंड बैंक का कहना है कि ये गलती उसके मार्क-टू-मार्केट मॉडल में ग़लत कैलकुलेशन के कारण हुई। मार्क-टू-मार्केट एक ऐसा तरीका है, जिसमें किसी वित्तीय संपत्ति के मूल्य को उसके मौजूदा बाज़ार मूल्य के अनुसार अपडेट किया जाता है। 

बैंक के मुताबिक, ग़लत कैलकुलेशन के कारण फॉरेक्स डेरिवेटिव सौदों का वास्तविक असर उसकी बैलेंस शीट में सही ढंग से नहीं दिखाया गया। हालांकि, सवाल ये उठता है कि इतनी बड़ी गलती क्या वाकई अनजाने में हुई थी, या फिर यह एक सुनियोजित गेम था?

इस खुलासे के तुरंत बाद इंडसइंड बैंक के शेयरों में तेज़ गिरावट आ गई और उसके शेयर 22% तक लुढ़क गए। बाज़ार पूंजीकरण में 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई।

खुदरा निवेशकों के लिए ये एक बड़ा झटका था, क्योंकि बैंक की शेयर वैल्यू एक साल में अपने उच्चतम स्तर से काफ़ी नीचे आ चुकी है। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या बैंक के टॉप लेवल के अधिकारियों को पहले से अंदाज़ा था कि ये गिरावट आने वाली है?

टॉप मैनेजमेंट को पता था?

हर स्टॉक का हिसाब-किताब रखने वाला एक प्लेटफॉर्म है, ट्रेंडीलाइन। उसके डेटा के मुताबिक, इंडसइंड बैंक के सीईओ सुमंत कथपालिया और डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने पिछले एक साल में अपनी लगभग पूरी हिस्सेदारी बेच दी थी। 

सुमंत कथपालिया ने जून 2023 से जून 2024 के बीच अपने लगभग सभी शेयर 1,437 रुपये प्रति शेयर की औसत कीमत पर बेच दिए, जिससे उन्हें 118 करोड़ रुपये की रकम हासिल हुई। वहीं, अरुण खुराना ने 1,451 रुपये प्रति शेयर की औसत कीमत पर अपने शेयर बेचकर 70 करोड़ रुपये की रकम जुटाई।

ये बिकवाली किसी एक दिन में नहीं हुई, बल्कि पूरे एक साल में कई चरणों में खुले बाज़ार में की गई।

विदेशी संस्थागत निवेश ने हाथ खींचे

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक और दिलचस्प पैटर्न देखने को मिला। मार्च 2024 से दिसंबर 2024 के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों यानी FIIs ने लगातार इंडसइंड बैंक से अपनी हिस्सेदारी कम की।

मार्च 2024 में FIIs की हिस्सेदारी 40.3 परसेंट थी, जो दिसंबर 2024 तक घटकर 24.7 परसेंट रह गई। इसका मतलब यह है कि विदेशी निवेशकों ने बैंक के भविष्य को लेकर भरोसा खो दिया और धीरे-धीरे बाहर निकल गए।

दूसरी ओर, घरेलू संस्थागत निवेशकों यानी DIIs ने बिल्कुल उलट रुख अपनाया। मार्च 2024 में DIIs की हिस्सेदारी 28.6 परसेंट थी, जो दिसंबर 2024 तक बढ़कर 42.8 परसेंट हो गई। इसका सीधा मतलब यह है कि जब FIIs इंडसइंड बैंक में अपना पैसा निकाल रहे थे, तब DIIs बड़े पैमाने पर इसे खरीद रहे थे।

CFO के इस्तीफे का रहस्य

इस दौरान एक और बड़ा घटनाक्रम हुआ—इंडसइंड बैंक के चीफ फाइनेंशनल ऑफिसर गोविंद जैन ने जनवरी 2025 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। ये इस्तीफ़ा ठीक उस समय दिया गया जब वित्तीय वर्ष 2024-25 के तीसरे क्वार्टर के वित्तीय नतीजे जारी होने वाले थे। CFO का अचानक जाना इस बात को और पुख़्ता करता है कि बैंक के टॉप मैनेजमेंट को पहले से पता था कि बाज़ार में नेगेरिव रिएक्शंस आने वाले हैं।

अब बड़ा सवाल ये है कि क्या SEBI और रिज़र्व बैंक इस मामले की गहराई से जाँच करेंगे? अगर DIIs ने खुदरा निवेशकों के पैसे से एक ऐसे बैंक के शेयर खरीदे, जिसमें खुद बैंक के शीर्ष अधिकारी और विदेशी निवेशक भरोसा नहीं जता रहे थे, तो ये निवेश प्रबंधन की गंभीर चूक कही जाएगी। 

SEBI को ये पूछना चाहिए कि क्या DIIs को इस बात की जानकारी थी कि बैंक के टॉप मैनेजमेंट के लोग लगातार अपनी हिस्सेदारी बेच रहे थे? क्या उन्होंने CFO के इस्तीफ़े को लेकर कोई सवाल उठाया? या फिर वे आंख मूंदकर इस स्टॉक में निवेश करते रहे?

सोची-समझी 'गलती'?

बैंक ने सफ़ाई दी है कि उसने अपनी बैलेंस शीट में इस अकाउंटिंग एरर को ठीक कर लिया है और आगे से ऐसी ग़लतियों को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। लेकिन असली सवाल ये नहीं है कि ग़लती सुधारी गई या नहीं, बल्कि ये है कि यह ग़लती हुई ही क्यों? 

अगर यह सचमुच एक एकाउंटिंग एरर था, तो फिर इसे इतनी देर तक क्यों नहीं सुधारा गया? अगर बैंक को पहले से इस गड़बड़ी की जानकारी थी, तो फिर क्या ये इनवेस्टर्स  को गुमराह करने की कोशिश थी?

इंडसइंड बैंक का ये मामला सिर्फ़ एक अकाउंटिंग एरर नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी अंदरूनी गतिविधियाँ इसे और संदिग्ध बनाती हैं। जब बैंक के सीईओ और डिप्टी सीईओ एक साल में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच देते हैं, जब विदेशी निवेशक बैंक से लगातार बाहर निकलते हैं, जब CFO नतीजों से ठीक पहले इस्तीफ़ा दे देता है, और जब बैंक की बैलेंस शीट में अचानक इतने बड़े संशोधन करने पड़ते हैं, तो यह साफ़ है कि कहानी सिर्फ़ वही नहीं है जो हमें दिख रही है।

सवाल यह नहीं है कि इस ग़लती का असर क्या हुआ, बल्कि सवाल यह है कि यह ग़लती हुई कैसे और किसके फ़ायदे के लिए?

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