90.58 रुपये का हुआ एक डॉलर, अब तक के सबसे निचले लेवल पर पहुंची भारतीय मुद्रा
यह गिरावट ऐसे समय आई है जब डॉलर इंडेक्स 7 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हुआ है। 90 के स्तर को पार करना खास तौर पर अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह 2011 में रुपये की कीमत के लगभग आधे के बराबर है।
एक अमेरिकी डॉलर के लिए अब आपको 90.58 भारतीय रुपया खर्च करना पड़ रहा है। और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। लगातार दूसरे सप्ताह रुपये में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई।
रुपये में इस गिरावट की बड़ी वजह अमेरिका के साथ व्यापार समझौते का न होना, कमजोर पूंजी प्रवाह और बढ़ता व्यापार घाटा बताया जा रहा है। सोमवार को भी रुपये में गिरावट जारी रही और यह डॉलर के मुकाबले 90.58 के अब तक के सबसे निचले स्तर पर फिसल गया।
गिरावट का दूसरा हफ्ता
यह लगातार दूसरा सप्ताह है जब रुपये ने नया रिकॉर्ड लो बनाया। इससे पहले शुक्रवार को भी रुपया 90.55 प्रति डॉलर तक गिर गया था।
जानकार बता रहे हैं कि रुपया एक बार फिर उन्हीं जाने-पहचाने दबावों से जूझ रहा है। अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में देरी, लगातार कमजोर पूंजी प्रवाह और बढ़ते व्यापार घाटे ने मुद्रा पर दबाव बना रखा है। विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये की गिरावट के पीछे और भी कई कारण हैं जिनमें कंपनियों की ओर से डॉलर की मजबूत मांग और भारतीय निर्यात पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत तक के ऊंचे टैरिफ भी शामिल हैं।
सिर्फ इस साल अब तक रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 5 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हो चुका है। इससे वह दुनिया की 31 प्रमुख मुद्राओं में तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला मुद्रा बन गया है। इससे आगे सिर्फ तुर्की की लीरा और अर्जेंटीना का पेसो हैं।
यह गिरावट ऐसे समय आई है जब डॉलर इंडेक्स 7 प्रतिशत से ज्यादा कमजोर हुआ है। 90 के स्तर को पार करना खास तौर पर अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह 2011 में रुपये की कीमत के लगभग आधे के बराबर है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह मनोवैज्ञानिक स्तर आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा पर दबाव बढ़ाता है, जिन्हें मुद्रा में लचीलापन बनाए रखने और समग्र बाजार स्थिरता के बीच संतुलन साधना होगा।
आरबीआई का हस्तक्षेप और घटती मजबूती
पिछले कुछ महीनों में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रुपये की तेज गिरावट को थामने के लिए कई बार बाजार में दखल देता रहा है। हालांकि, 88.80 के स्तर से नीचे फिसलने और 90 प्रति डॉलर का आंकड़ा पार करने के बाद से आरबीआई का समर्थन अपेक्षाकृत कमजोर दिखाई दिया है।
आरबीआई रुपये के अंतरराष्ट्रीय कारोबार में एक अहम भूमिका निभाता है, जिसमें डॉलर में निपटाए जाने वाले नॉन-डिलीवेरेबल फॉरवर्ड्स (NDFs) भी शामिल हैं। आरबीआई का यह हस्तक्षेप बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) के माध्यम से किया जाता है, और इसमें सिंगापुर, दुबई और लंदन जैसे प्रमुख ट्रेडिंग हब्स के चुनिंदा बड़े बैंकों के साथ समन्वय होता है।