ईरान-इजरायल तनाव का असर, भारतीय निर्यातकों पर भाड़ा और बीमा संकट

यूरोप के साथ भारत के लगभग 80 प्रतिशत व्यापारिक व्यापार और संयुक्त राज्य अमेरिका को शिपमेंट सहित इसके कुल निर्यात का एक तिहाई से अधिक हिस्सा लाल सागर से होकर गुजरता है। होर्मुज जलडमरूमध्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जो भारत के कच्चे तेल के आयात का दो-तिहाई हिस्सा ले जाता है।;

Update: 2025-06-17 14:48 GMT

ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते संघर्ष का असर अब वैश्विक शिपिंग और बीमा बाज़ारों पर भी साफ़ दिखाई देने लगा है। खासकर भारतीय निर्यातकों को इसकी सीधी मार झेलनी पड़ रही है। स्पॉट बीमा (Spot Insurance) की लागत बढ़ चुकी है और भविष्य में मालभाड़े (freight charges) में तेज़ वृद्धि की आशंका जताई जा रही है।

रणनीतिक शिपिंग रूट खतरे में

रेड सी (Red Sea) और हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) भारत के लिए बेहद अहम समुद्री मार्ग हैं। भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) के अनुसार, भारत के यूरोप के साथ कुल व्यापार का लगभग 80% और अमेरिका सहित अन्य देशों को कुल निर्यात का एक-तिहाई हिस्सा इन्हीं समुद्री रास्तों से होकर गुजरता है। रेड सी से 30% वैश्विक कंटेनर ट्रैफिक और 12% विश्व व्यापार गुजरता है। वहीं, हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य से भारत का दो-तिहाई कच्चा तेल और वैश्विक पेट्रोलियम तरल पदार्थों का 21% गुजरता है। इन रूटों पर खतरा बढ़ने से मालभाड़ा महंगा, ट्रांजिट टाइम लंबा और घरेलू ईंधन कीमतों पर दबाव पड़ सकता है। अगर जहाजों को मजबूरी में केप ऑफ गुड होप (Cape of Good Hope) के रास्ते भेजना पड़ा तो यात्रा में 14-20 दिन की देरी और मालभाड़े में 50% तक की बढ़ोतरी संभव है।

बीमा की मांग में उछाल

जो निर्यातक युद्ध प्रभावित इलाकों से सामान भेज रहे हैं, वे अब स्पॉट बीमा की ओर रुख कर रहे हैं। स्पॉट बीमा किसी विशेष शिपमेंट के लिए तत्काल खरीदी जाने वाली सुरक्षा है, जो सामान्य वार्षिक बीमा की तुलना में युद्धकालीन परिस्थितियों में ज्यादा उपयोगी होती है। बीमा प्लेटफॉर्म Mikargo247 के अनुसार, बीते कुछ दिनों में भारतीय निर्यातकों की तरफ से शॉर्ट-टर्म बीमा की मांग में तेजी आई है।

बीमा कैसे काम करता है?

मरीन हल बीमा: जहाज की सुरक्षा के लिए

मरीन कार्गो बीमा: शिपमेंट की सुरक्षा के लिए

हल बीमा की प्रीमियम दर 0.1% से 0.3% होती है।

कार्गो बीमा स्पॉट या सालाना लिया जा सकता है।

दावे (claims) के लिए नुकसान का सबूत, फोटो और सर्वेयर की रिपोर्ट जरूरी होती है। पूर्व यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस प्रमुख गिरीश राधाकृष्णन ने बताया कि हाल ही में कोच्चि के पास डूबे MV Princess Miral और MV Alliance जहाजों में भी कई स्तर की बीमा पालिसियां लागू थीं — जहाज और उसमें मौजूद सामान के लिए अलग-अलग बीमाकर्ता जिम्मेदार थे।

भारतीय झंडे वाले जहाजों को थोड़ी राहत

बीमा विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और चीन के झंडे वाले जहाजों को अभी कम जोखिम वाला माना जा रहा है। क्योंकि इनका युद्ध में सीधे शामिल न होना इन्हें कुछ हद तक सुरक्षा देता है। इसके चलते इनपर war-risk प्रीमियम तुलनात्मक रूप से कम है।

निर्यातकों की चिंता

FIEO अध्यक्ष एससी रल्हन के मुताबिक, जब वैश्विक व्यापार धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा था, तब यह संघर्ष फिर से संकट खड़ा कर रहा है। निर्यातक न केवल लागत बढ़ने को लेकर चिंतित हैं, बल्कि वे बीमा अनुबंधों में छिपे war exclusion क्लॉज को लेकर भी परेशान हैं — जिससे युद्ध क्षेत्रों में अलग से बीमा लेना अनिवार्य हो जाता है। लॉजिस्टिक्स और बीमा क्षेत्र के सूत्रों ने बताया कि भारत सरकार जल्द ही प्रमुख व्यापारिक संगठनों के साथ बैठक कर सकती है, ताकि स्थिति का आकलन कर राहत उपायों पर विचार किया जा सके।

जिन उद्योगों पर सबसे ज्यादा असर

- तेल और पेट्रोलियम उत्पाद

- बासमती चावल और थोक कृषि उत्पाद

- टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग गुड्स

छोटी कंपनियां अधिकतर स्पॉट बीमा पर निर्भर हैं, जबकि बड़ी कंपनियां लंबी अवधि के अनुबंधों के साथ एड-ऑन कवरेज ले रही हैं।

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