हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025: भारत की विकास नीति की सच्चाई

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मौजूदा नीतियां केवल चुनिंदा अमीरों को फायदा पहुंचा रही हैं, जबकि आम नागरिक की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।

Update: 2025-11-05 16:55 GMT
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अगर आप सोच रहे हैं कि भारत 2047 तक “विकसित राष्ट्र” बन जाएगा, जहां औसत भारतीय की आमदनी और जीवन स्तर ऊंचा होगा तो यह विचार फिलहाल वास्तविकता से दूर लगता है। हाल ही में जारी हुई हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2025 यह साफ़ दिखाती है कि तेज़ जीडीपी वृद्धि का लाभ केवल कुछ अमीरों तक ही सीमित है, आम भारतीय तक नहीं पहुंच रहा।

अमीर बढ़ रहे हैं, आम आदमी पीछे

हुरुन लिस्ट में भारत के उन लोगों को शामिल किया गया है, जिनकी संपत्ति 1,000 करोड़ रुपये या उससे अधिक है। 2022 में 1,013 अमीरों की कुल संपत्ति 100 लाख करोड़ रुपये थी, जो बढ़कर 2025 में 1,683 व्यक्तियों के लिए 167 लाख करोड़ रुपये हो गई। यानी सिर्फ कुछ लोगों की संपत्ति में तेजी से इजाफा हुआ, जबकि आम भारतीय की आय इससे अछूती रही।

जीडीपी और अमीरों की संपत्ति का अंतर

यदि इन अति अमीरों की संपत्ति को भारत की जीडीपी से घटा दिया जाए तो FY25 में औसत भारतीय की आय 2.3 लाख रुपये से गिरकर 1.2 लाख रुपये हो जाती। डॉलर में देखें तो यह केवल $1,321 बनता है, जो सब-सहारन अफ्रीका की $1,516 से भी कम है।

असमानता की बढ़ती खाई

विश्व असमानता रिपोर्ट 2024 (थॉमस पिकेटी) के अनुसार, भारत में शीर्ष 0.1 प्रतिशत अमीरों की संपत्ति और आय लगातार बढ़ रही है। 1980 के दशक तक मध्य वर्ग और गरीब की आय बढ़ रही थी, लेकिन नवउदारवादी नीतियों के बाद यह रुझान उलट गया। 1991 की आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक दबाव ने अमीर और गरीब के बीच खाई को और चौड़ा कर दिया।

2014 के बाद भारत में अपनाया गया आर्थिक मॉडल कुछ चुने हुए उद्योगपतियों को बढ़ावा दे रहा है। “राष्ट्रीय चैंपियन” मॉडल के तहत निजी कॉरपोरेट्स को विशेष प्रोत्साहन, सरकारी सौदे और नीति संरक्षण मिलता है। उदाहरण के तौर पर, अडानी समूह को बिना पूर्व अनुभव के देश के प्रमुख हवाई अड्डों का संचालन सौंपा गया।

निगरानी संस्थाएं निष्क्रिय

प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) और अन्य नियामक संस्थाएं, जो इस तरह की एकाधिकार ताकतों को रोकने के लिए हैं, लंबे समय से निष्क्रिय हैं। परिणामस्वरूप, बड़े कॉरपोरेट्स बाजार में मनमानी कीमतें तय कर रहे हैं और प्रतियोगिता को दबा रहे हैं।

विकास का सपना या भ्रम?

सरकारी बयान और नीति वचनबद्धता के बावजूद, वास्तविकता यह है कि अधिकांश भारतीय अभी भी सब्सिडी, मुफ्त राशन और न्यूनतम मजदूरी पर निर्भर हैं। वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के “विकसित भारत@2047” और आत्मनिर्भर भारत के नारे केवल वचन तक सीमित नजर आते हैं।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मौजूदा नीतियां केवल चुनिंदा अमीरों को फायदा पहुंचा रही हैं, जबकि आम नागरिक की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। यदि यही रुझान जारी रहा, तो 2047 तक भारत का “विकसित राष्ट्र” बनना केवल एक कल्पना ही रहेगा।

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