टैरिफ को लेकर अनिश्चितता जारी: 1 अगस्त की ‘हार्ड डेडलाइन’ के बाद अमेरिका की टीम भारत दौरे पर आएगी
हालांकि भारत और अमेरिका ने कई टैरिफ लाइनों पर सहमति बना ली है, लेकिन वर्तमान में केवल वस्तुओं के लिए बाजार पहुंच से जुड़ी बातचीत कुछ संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कृषि और ऑटोमोबाइल पर अटक गई है, जो भारत में प्रमुख रूप से रोजगार देने वाले सेक्टर माने जाते हैं।;
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) के दक्षिण और मध्य एशिया मामलों के प्रमुख ब्रेंडन लिंच के नेतृत्व में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल अगस्त के मध्य में भारत का दौरा करेगा, ताकि व्यापार समझौते को आगे बढ़ाया जा सके।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुरुआत में देशों के लिए 9 जुलाई तक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने और भारी रेसिप्रोकल टैरिफ से बचने की डेडलाइन तय की थी, जिसे बाद में 1 अगस्त तक बढ़ा दिया गया। हाल ही में भारतीय वार्ताकारों ने वॉशिंगटन में बातचीत का एक और दौर पूरा किया।
हालांकि भारत और अमेरिका कई टैरिफ लाइनों पर सहमति जता चुके हैं, लेकिन कृषि और ऑटोमोबाइल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को लेकर बातचीत में गतिरोध बना हुआ है। ये दोनों सेक्टर भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करते हैं।
1 अगस्त की डेडलाइन बीतने के बाद भी बातचीत जारी रहने से यह सवाल बना हुआ है कि क्या भारत को 1 अगस्त से 26% रेसिप्रोकल टैरिफ झेलना पड़ेगा।
रविवार को अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने साफ किया कि 1 अगस्त एक "हार्ड डेडलाइन" है और उस दिन से टैरिफ लागू होंगे। उन्होंने टीवी इंटरव्यू में कहा, “यह एक सख्त डेडलाइन है, इसलिए 1 अगस्त से नए टैरिफ लागू हो जाएंगे... 1 अगस्त के बाद भी देश बातचीत जारी रख सकते हैं, लेकिन उन्हें टैरिफ चुकाने होंगे।”
गौरतलब है कि ट्रंप प्रशासन ने पहले 1 अप्रैल, फिर 9 जुलाई और अब 1 अगस्त की डेडलाइन तय की है। राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार कह चुके हैं कि भारत के साथ डील लगभग तैयार है, लेकिन अगर सहमति नहीं बनी तो भारत को 26% तक का टैरिफ चुकाना पड़ सकता है।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि भारत 2025 के अंत तक एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) करने की दिशा में काम कर रहा है, जिससे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुंच मिल सकेगी और भारत को एशिया के अन्य देशों की तुलना में टैरिफ में फायदा मिलेगा।
लुटनिक ने यह भी कहा कि लैटिन अमेरिका, कैरिबियन और अफ्रीका जैसे छोटे देशों को 10% का बेसलाइन टैरिफ झेलना होगा। उनके अनुसार, “बड़ी अर्थव्यवस्थाएं या तो अपने बाजार अमेरिका के लिए खोलेंगी या फिर एक उचित टैरिफ देंगी।”
GTRI की चेतावनी
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) और अन्य व्यापार विशेषज्ञों ने चेताया है कि ट्रंप के ये व्यापार समझौते विश्व व्यापार संगठन (WTO) के फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTAs) के मानकों को पूरा नहीं करते। WTO के मुताबिक, एफटीए में दोनों पक्षों को पारस्परिक टैरिफ कटौती करनी होती है।
GTRI का कहना है, “ट्रंप मॉडल के अंतर्गत केवल साझेदार देश अपने MFN (Most-Favoured-Nation) टैरिफ को कम करते हैं, जबकि अमेरिका कोई रेसिप्रोकल कटौती नहीं करता। ट्रंप के पास MFN टैरिफ घटाने के लिए कांग्रेस की फास्ट ट्रैक अथॉरिटी नहीं है। वे सिर्फ ‘लिबरेशन डे’ के तहत लगाए गए टैरिफ को हटाने की पेशकश कर रहे हैं, जिन्हें अप्रैल में आपातकालीन शक्तियों के तहत लागू किया गया था और जिन्हें अमेरिकी संघीय अदालत ने पहले ही अवैध करार दे दिया है। हालांकि यह मामला अभी अपील में है, लेकिन इसकी कानूनी स्थिति कमजोर है।”
भारत के लिए इन अप्रैल टैरिफों का मतलब था कि सामान्य अमेरिकी शुल्क के ऊपर 26% का अतिरिक्त शुल्क लगाना।
GTRI के अनुसार, भले ही कोई समझौता हो जाए, भारतीय निर्यातकों को अब भी कम से कम 10% अतिरिक्त शुल्क देना पड़ सकता है, जिससे यह एक संतुलित साझेदारी के बजाय दबाव में हुआ समझौता साबित होगा।