जीएसटी में कटौती के बावजूद क्यों नहीं चढ़ रहे हैं भारतीय शेयर बाज़ार?

भारतीय शेयर बाज़ार जीएसटी कटौती और शानदार जीडीपी आंकड़ों के बावजूद सुस्त बने हुए हैं। विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली और वैश्विक अनिश्चितताओं ने निवेशकों की भावनाओं को दबा दिया है।;

Update: 2025-09-07 07:17 GMT
विशेषज्ञों का कहना है कि डर और आशंका निवेशकों की भावनाओं को दबा रही है

लगातार दूसरे हफ्ते भारतीय शेयर बाज़ार उभरते बाज़ारों (EM) की तुलना में कमज़ोर प्रदर्शन कर रहे हैं। निफ्टी 25,000 अंक के नीचे सिमटा हुआ है। सेंसेक्स में भी हाल लगभग वैसा ही है। 12 महीने के आधार पर MSCI इंडिया इंडेक्स 10% गिरा है, जबकि MSCI EM इंडेक्स ने डॉलर रिटर्न के लिहाज से 18% का लाभ दिया है।

सबसे अहम बात यह है कि यह तब हो रहा है जब कई पॉजिटिव संकेत मौजूद हैं—जैसे पहली तिमाही का जीडीपी 7.8% और जीएसटी दरों में कटौती। फिर निवेशक क्यों उत्साहित नहीं हो रहे?

विशेषज्ञों का कहना है—“डर और आशंका” निवेशकों की भावनाओं को दबा रही है।

जीएसटी कटौती का असर क्यों फीका पड़ा?

जीएसटी दरों में बदलाव के बाद शुरुआती तौर पर बाज़ार ने पॉजिटिव प्रतिक्रिया दी, लेकिन जल्द ही मुनाफ़ावसूली शुरू हो गई।

सुदीप शाह (हेड, टेक्निकल रिसर्च एंड डेरिवेटिव्स, SBI सिक्योरिटीज) ने कहा, “जीएसटी नई दरों की घोषणा के बाद बाज़ार ने पॉजिटिव शुरुआत की, लेकिन जल्दी ही यह ‘सेल ऑन न्यूज़’ रिएक्शन बन गया। असल फोकस अब भी अमेरिका-भारत व्यापार समझौते पर है, जो अधर में लटका हुआ है।”

सिद्धार्थ भामरे (हेड ऑफ रिसर्च, असित सी. मेहता) का मानना है, “जीएसटी दरों में कटौती अच्छा कदम है, लेकिन इसका असर तभी होगा जब खपत का चक्र शुरू हो। खपत तभी बढ़ेगी जब बड़े पैमाने पर पूंजीगत निवेश (कैपेक्स) हो। बड़े कैपेक्स प्रोजेक्ट ही रोज़गार और उद्योग को गति देकर आय में सुधार ला सकते हैं।”

विनोद नायर (हेड ऑफ रिसर्च, जियोजीत इन्वेस्टमेंट्स) ने जोड़ा, “घरेलू विकास से जुड़े सेक्टर जीएसटी राहत, स्थिर खपत और सरकारी खर्च से लाभान्वित हो सकते हैं। लेकिन वैश्विक व्यापार वार्ता की अनिश्चितता जोखिम उठाने की क्षमता को रोक रही है।”

टैरिफ और वैश्विक चिंता

सितंबर का दूसरा हफ्ता, जो परंपरागत रूप से इक्विटी बाज़ारों के लिए कमज़ोर माना जाता है, निवेशकों के लिए अमेरिकी टैरिफ (50% हेडलाइन, 35% प्रभावी) को लेकर और चिंताजनक हो गया है।

मार्केट वेटरन अजय बग्गा के अनुसार, “भारी FPI आउटफ्लो, निराशाजनक कॉर्पोरेट नतीजे और ट्रंप के 50% दंडात्मक टैरिफ ने भारतीय बाज़ारों को लगातार दूसरे महीने निगेटिव बनाया। हां, अप्रैल-जून की जीडीपी 7.8% आने से थोड़ी राहत है, लेकिन सितंबर आमतौर पर ग्लोबल मार्केट्स का कमजोर महीना होता है।”

रुपया नई गिरावट पर

जीडीपी और जीएसटी राहत के बावजूद रुपये की कमजोरी निवेशकों की चिंता बढ़ा रही है। रुपया डॉलर के मुकाबले इस हफ्ते नए निचले स्तर पर पहुंच गया।

शाह (SBI सिक्योरिटीज) ने कहा, “पिछले दो दिनों में कैश सेगमेंट में भारी बिकवाली और रुपये की गिरावट ने बाज़ार की निगेटिव मोमेंटम को और तेज किया।”

लगातार दूसरे हफ्ते रुपये में गिरावट दर्ज की गई। मुद्रा बाज़ार विशेषज्ञों के मुताबिक, यह गिरावट पूंजी बहिर्वाह और अमेरिका-भारत व्यापार सौदे की अनिश्चितता से प्रेरित रही।

एफआईआई की बिकवाली और वैल्यूएशन प्रीमियम

लगातार एफआईआई की बिकवाली भारतीय बाज़ार की सबसे बड़ी चिंता है। जुलाई और अगस्त में मिलाकर लगभग 50,000 करोड़ रुपये का बहिर्वाह हुआ। 2025 में अब तक FIIs ने 15.3 अरब डॉलर निकाले हैं, जबकि पूरे 2024 में सिर्फ 0.8 अरब डॉलर का आउटफ्लो हुआ था।

नीलिश शाह (MD, कोटक महिंद्रा AMC) के अनुसार, इसके पीछे कई कारण हैं, एफपीआई ने भारत में बहुत मुनाफ़ा कमाया है, जिससे भारत में अलोकेशन अनुपात से ज़्यादा हो गया है। शॉर्ट-टर्म वैल्यूएशन चिंताओं के चलते भी बिकवाली हो रही है।

चीन और हांगकांग जैसे बाज़ार भारत की तुलना में आधी वैल्यूएशन पर ट्रेड कर रहे हैं, जिससे ग्लोबल एफआईआई फ्लो का रुख वहां की ओर है।

अब रणनीति क्या हो?

विनोद नायर (जियोजीत इन्वेस्टमेंट्स) का सुझाव है, “इस माहौल में मल्टी-एसेट इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजी अपनाना सही रहेगा। निवेशकों को अमेरिकी जॉब्स रिपोर्ट, नॉनफार्म पेरोल, बेरोज़गारी और महंगाई डेटा, और यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) की दरों के फैसले पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए। ये आने वाले दिनों में फेड रेट कट की उम्मीदों को दिशा देंगे।”

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