जीएसटी दरों में बदलाव: राज्यों के पास मुआवजे का मजबूत मामला क्यों है?
एक थिंक टैंक के अध्ययन से पता चलता है कि एसजीएसटी वित्त वर्ष 19-वित्त वर्ष 24 के दौरान महाराष्ट्र को छोड़कर सभी राज्यों के लिए राजस्व हिस्सेदारी बनाए रखने में विफल रहा; पिछले सभी फेरबदल से नुकसान हुआ.;
By : Prasanna Mohanty
Update: 2025-08-31 01:32 GMT
GST Rates : नरेंद्र मोदी सरकार जब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में तेजी से बदलाव (slab कम करना, दरों को घटाना और दरों का तार्किक पुनर्गठन) करने की दिशा में बढ़ रही है, तो राज्यों की सबसे बड़ी चिंता राजस्व में कमी को लेकर है — और यह चिंता पूरी तरह वाजिब है। केंद्र सरकार ने अब तक इस राजस्व हानि और राज्यों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति पर चुप्पी साध रखी है। जीएसटी से होने वाली आमदनी केंद्र और राज्यों में बराबर-बराबर बाँटी जाती है।
दो परिदृश्य
एसबीआई रिसर्च का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 (FY26) में कुल राजस्व हानि लगभग 45,000 करोड़ रुपये हो सकती है और इसके बाद पूरे वित्तीय वर्षों में यह हानि लगभग 85,000 करोड़ रुपये तक पहुँच सकती है।
रिपोर्ट ने दो परिदृश्य तैयार किए हैं:
परिदृश्य 1: हानि लगभग 1.1 लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है।
परिदृश्य 2: हानि लगभग 60,000 करोड़ रुपये तक रह सकती है।
परिदृश्य 1 में यह मान लिया गया है कि 28% वाले स्लैब के 30% हिस्से को 40% वाले नए स्लैब में और 70% हिस्से को 18% स्लैब में स्थानांतरित किया जाएगा। परिदृश्य 2 में 28% स्लैब का हिस्सा 50-50 के अनुपात में 40% और 18% स्लैब में बाँटा जाएगा।
3-4 सितंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में अंतिम वस्तु-वार बदलाव तय होगा। लेकिन जीओएम (मंत्रियों का समूह) ने जीएसटी के पुनर्गठन के लिए यह सिफारिशें पहले ही मंजूर कर दी हैं:
12% वाले स्लैब की ज़्यादातर वस्तुओं को 5% स्लैब में डाला जाएगा।
28% वाले स्लैब की अधिकांश वस्तुएँ 18% स्लैब में लाई जाएँगी।
कुछ “पाप वस्तुएँ” (sin goods) 28% से हटाकर नए 40% स्लैब में डाली जाएँगी।
लेकिन इस पुनर्गठन से होने वाली राज्यों की राजस्व क्षति की भरपाई कैसे होगी — इस पर कोई जवाब नहीं दिया गया।
राज्यों का राजस्व हिस्सा
2017 में जीएसटी लागू करते समय यह अपेक्षा की गई थी कि राज्यों को कम-से-कम उतना तो मिलेगा ही जितना जीएसटी से पहले उनकी जीएसडीपी (राज्य सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात में मिलता था।
जीएसटी लागू करने के लिए राज्यों ने अपने नौ अप्रत्यक्ष करों का अधिकार छोड़ दिया था। इन्हें केंद्र के आठ अप्रत्यक्ष करों के साथ मिलाकर जीएसटी बनाया गया। तब वादा किया गया कि पाँच साल तक राजस्व में कमी की भरपाई केंद्र करेगा। इस दौरान राज्यों की आमदनी को पहले से मिलने वाली सालाना 14% वृद्धि के हिसाब से बढ़ाया जाएगा।
लेकिन वास्तविकता यह रही कि जीएसटी अपेक्षित वादे पर खरा नहीं उतरा। इसी कारण 29 अगस्त (शुक्रवार) को आठ विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने दिल्ली में बैठक कर मुआवजे की माँग उठाई।
एनआईपीएफपी का अध्ययन
हाल ही में वित्त मंत्रालय के थिंक टैंक राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (NIPFP) ने एक अध्ययन प्रकाशित किया — “Reflecting on the Past to Plan the Future: Revenue Performance Evaluation of Indian GST” — जिसमें FY19 से FY24 तक जीएसटी का राज्यों के राजस्व पर असर परखा गया।
अध्ययन में साफ कहा गया कि बिना मुआवजे के राज्यों को गंभीर राजस्व घाटा झेलना पड़ता।
रिपोर्ट के मुताबिक कई राज्य अपनी जीएसडीपी के अनुपात में अपेक्षित राजस्व हिस्सेदारी हासिल नहीं कर पाए। कुछ राज्यों की स्थिति तो ऐसी रही कि मुआवजे के बावजूद वे पिछड़ गए। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि “क्या जीएसटी वास्तव में एक कारगर राजस्व मशीन है?”
किन राज्यों का प्रदर्शन कैसा रहा
रिपोर्ट बताती है कि FY19-FY24 के दौरान 18 बड़े राज्यों में से केवल छह ही एक बार बेसलाइन (FY16 का स्तर) से ऊपर जा सके:
आंध्र प्रदेश (FY19)
हरियाणा (FY24)
राजस्थान (FY19)
तेलंगाना (FY19)
उत्तर प्रदेश (FY19)
पश्चिम बंगाल (FY19)
महाराष्ट्र ने पाँच साल (FY19-FY24 में FY21 को छोड़कर) यह उपलब्धि हासिल की। बाकी राज्य कभी भी बेसलाइन पार नहीं कर सके।
मुआवजे के बाद प्रदर्शन कुछ बेहतर रहा, लेकिन फिर भी कई राज्यों ने लक्ष्य खो दिया।
आंध्र प्रदेश, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल — एक बार पिछड़े।
बिहार और तेलंगाना — दो बार।
छत्तीसगढ़, गुजरात और मध्य प्रदेश — तीन बार।
ओडिशा — चार बार।
हरियाणा और महाराष्ट्र — कभी नहीं पिछड़े।
असमान वृद्धि और कारण
अध्ययन के अनुसार SGST की वृद्धि दर राज्यों में असमान रही, इसके दो कारण थे:
कई बार दरों में कटौती — जिससे आर्थिक विकास और महंगाई पर असर को कम करने की कोशिश की गई, लेकिन राजस्व घट गया।
कर चोरी — जिसने राज्यों की आय को और नुकसान पहुँचाया।
इसलिए रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि राज्यों को नए कर स्रोत तलाशने चाहिए, जैसे — डिजिटल डाटा का भंडारण और उपयोग, ऑनलाइन वीडियो शेयरिंग, रोबोटिक्स आदि पर टैक्स।
राज्यों की चिंता
कर्नाटक के राजस्व मंत्री कृष्ण बायरे गौड़ा ने विपक्षी शासित राज्यों की बैठक में कहा कि जीएसटी में अब तक 17 बार दरों का पुनर्गठन किया गया है और हर बार राज्यों को शुद्ध राजस्व हानि हुई है। यानी “राजस्व उछाल (buoyancy)” का सिद्धांत पूरी तरह गलत साबित हुआ।
अलग-अलग राज्यों ने अनुमान लगाया है कि उनकी हानि 6,000-9,000 करोड़ रुपये तक होगी।
राज्यों की टैक्स आमदनी की हकीकत
गौड़ा ने यह कहा कि राज्य अपनी आधी आमदनी जीएसटी पर निर्भर करते हैं, लेकिन यह तथ्य गलत है। हालाँकि उनका यह अनुमान कि 15-20% का राजस्व नुकसान होगा, गलत नहीं कहा जा सकता।
आर्थिक सर्वेक्षणों के आँकड़े बताते हैं कि राज्यों की “स्वयं की कर आमदनी” (own tax revenue) ही उनकी कुल कर आय का बड़ा हिस्सा है। इसके प्रमुख स्रोत हैं:
SGST
राज्य आबकारी
वाहन कर
स्टांप ड्यूटी व पंजीकरण शुल्क
भू-राजस्व
जीएसटी से पहले (FY12-FY17) यह औसतन जीडीपी का 66.6% था।
जीएसटी लागू होने के बाद FY18 में यह 64.7% और FY19-FY26 (BE) में घटकर 64.6% रह गया।
2016-17 में गिरावट क्यों हुई?
राज्यों की “own tax” हिस्सेदारी FY15 के 9.4% से घटकर FY16 में 8.7% और FY17 में 7.8% रह गई। इसके दो कारण थे:
सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर गिर गई (FY15 के 9.8% से FY17 में 8.5%)।
नवंबर 2016 की नोटबंदी से गहरा नुकसान।
अनौपचारिक क्षेत्र पर झटका
जीएसटी लागू होना अनौपचारिक क्षेत्र के लिए बड़ा आर्थिक झटका साबित हुआ। इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की शर्तों ने व्यवसायों को औपचारिक क्षेत्र की ओर धकेला। हजारों एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) बंद हो गए।
इसका असर यह रहा कि FY20 में वृद्धि दर घटकर 3.9% रह गई। FY21 में महामारी ने और चोट की। FY22 आंशिक रूप से प्रभावित रहा। रिकवरी भी “K-आकार” की रही, क्योंकि एमएसएमई अब तक झटकों से पूरी तरह उबर नहीं पाए।
असमान टैक्स वृद्धि
इन झटकों की वजह से राज्यों की टैक्स वृद्धि दर बहुत असमान रही:
FY21: -5.8%
FY22: 9.7%
FY23: 7.6%
FY24: 9.2%
FY25: 6.5% (अनुमानित)
केंद्र से कर हस्तांतरण
“स्वयं की कर आमदनी” के अलावा राज्यों को केंद्र के सकल कर राजस्व में से हिस्सा भी मिलता है — जिसे वित्त आयोग की सिफारिशों से तय किया जाता है।
13वें वित्त आयोग ने 32% हिस्सा तय किया था।
14वें (FY15-FY20) में इसे बढ़ाकर 42% किया गया।
15वें (FY21-FY26) में यह 41% रहा।
16वाँ वित्त आयोग अपनी सिफारिशें अक्टूबर 2025 तक देगा।