खुद को न होने दें डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगों के मंसूबों पर यूं फेरे पानी

देश भर में डिजिटल अरेस्ट का डर दिखा कर लोगों को ठगने के मामले आ रहे हैं सामने. साइबर फ्रॉड के इस नए तरीके पर पुलिस का कहना है कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज नहीं.

Update: 2024-05-20 01:42 GMT

एक ओर देश में डिजिटल इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है तो वहीँ दूसरी ओर साइबर फ्रॉड के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. साइबर ठगों के निशाने पर बुजुर्ग और महिलाएं हैं क्योंकि अधिकतर देखा गया है कि महिलाएं और बुजुर्ग जल्दी झांसे में आकर डर की जकड़ में आ जाते हैं. पिछले कुछ समय से एक ऐसा ही नया तरीका साइबर ठगों ने इजात किया है, जिसके तहत वो देश भर में लोगो खासतौर से बुजुर्ग और महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं. ये तरीका है डिजिटल अरेस्ट का डर दिखा कर लोगों से वसूली करने का. पुलिस की जनता से यही अपील है कि बगैर किसी जाँच पड़ताल के किसी के बहकावे में न आयें और किसी से डरें नहीं. डिजिटल अरेस्ट क्या है, इसके लिए सबसे पहले समझते हैं कि ठग किस तरह से लोगों को डर दिखा कर अपने जाल में फंसाते हैं.

कॉल करके फंसाते हैं

डिजिटल अरेस्ट के नाम पर ठगी करने वाले साइबर ठग लोगों को फ़ोन करते हैं. वो खुद को किसी भी जाँच एजेंसी जैसे पुलिस, ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स, कस्टम्स, नारकोटिक्स आदि का अधिकारी बन कर कॉल करते हैं. फिर कहते हैं कि आप किसी गैर क़ानूनी गतिविधि में लिप्त पाए गए हैं. उदाहरण के तौर पर आपके नाम पर एक पार्सल आया है, जिसमे ड्रग्स मिले हैं, उस पर आपका पता है, आपका फ़ोन नम्बर है या कहेंगे कि आपके मोबाइल का इस्तेमाल गैर क़ानूनी काम के लिए इस्तेमाल हुआ है. आपके बैंक अकाउंट से इल लीगल फंडिंग का पता चला है. ऐसे कई तरीके के दावे करके लोगों को डराया जाता है. फिर उस व्यक्ति को विडियो कॉल पर जुड़ने को कहा जाता है. इसके बाद बोला जाता है कि अब आपको डिजिटल हाउस अरेस्ट किया जा रहा है, आप कहीं बाहर नहीं जा सकते और ठग उस व्यक्ति को इस कदर डरा देते हैं कि वो खुद को बचने के चक्कर में अपने बैंक अकाउंट की डिटेल्स, एक्सेस ठगों को दे देते हैं.

क्या होता है डिजिटल अरेस्ट

ठगों की इस करतूत से बचने के लिए सबसे पहले जरूरत है डिजिटल अरेस्ट के बारे में समझना. अगर हम क़ानूनी तौर पर देखें तो ऐसा कोई भी प्रावधान देश में नहीं है. दिल्ली हाई कोर्ट के वकील दीपक चौधरी का कहना है कि न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई भी व्याख्या नहीं है, इसलिए अगर कोई ये कहे कि आपको डिजिटल अरेस्ट किया जाता है तो साफ़ स्पष्ट है कि कॉल करने वाला किसी भी जाँच एजेंसी से ताल्लुक नहीं रखता बल्कि वो एक ठग है. अगर ऐसा किसी के भी साथ होता है तो बिलकुल न घबराये और तुरंत कॉल को डिसकनेक्ट करके पुलिस को इसकी जानकारी दे. क़ानूनी पहलु ये है कि किसी को गिरफ्तार करने से पहले जाँच एजेंसी को उस मामले की गहन जाँच करनी जरुरी होती है. आरोपी से पूछताछ करनी जरुरी होता है, उसके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट भी लेना होता है. ऐसे ही किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.

किस तरह से करते हैं डिजिटल अरेस्ट

दिल्ली पुलिस व देश के अन्य शेहरों की पुलिस के पास इस तरह की शिकायतें मिली हैं. पीड़ितों ने पुलिस को बताया कि उनके पास अंजन नम्बर से कॉल आया. कॉलर ने खुद को जाँच एजेंसी का अधिकारी बताया या आइपीएस अधिकारी बताया. फिर कहा कि आप गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त है. पीड़ित के अनुसार कॉलर इस कदर उन्हें डरा चुका होता है कि वो ये मान बैठता है कि सामने वाला वाकई कोई पुलिस अधिकारी है और फिर उसकी हर बात को मानने लग जाता है. ये भांपते ही कॉलर पीड़ित को स्काइप या फिर अन्य विडियो कालिंग एप डाउनलोड करवाता है. फिर विडियो कॉल पर कनेक्ट होता है. फिर पीड़ित को बताया जाता है कि आपको डिजिटल अरेस्ट किया जाता है. आप कहीं बाहर नहीं जा सकते और न ही किसी से सम्पर्क कर सकते हैं. इसके बाद ठग उस व्यक्ति को इतना डरा देता है कि वो अपनी जान छुड़ाने के लिए अपनी गोपनीय जानकारी जैसे बैंक अकाउंट की डिटेल्स पासवर्ड आदि सब बता देता है. चाँद मिनटों में ठग पीड़ित का बैंक अकाउंट खाली कर देते हैं और फिर कहते हैं कि आपको अब गिरफ्तार नहीं किया जायेगा. इसके कुछ दिन बाद जब पीड़ित पूरी तरह से आश्वस्त होने के लिए ठग के नंबर पर संपर्क करता है तो संपर्क नहीं हो पता या फिर गूगल पर उस विभाग और अधिकारी की जानकारी खंगालता है तो पता चलता है कि ऐसा कोई अधिकारी नहीं है. तब उसे समझ में आता है कि वो ठगा गया. फिर वो असली पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुँचता है.

साइबर क्राइम हेल्प लाइन पर करें संपर्क

पुलिस का कहना है कि ऐसे ठगों से निपटने के लिए लोगों का जागरूक होना बेहद जरुरी है. सिर्फ पुलिस कुछ नहीं कर सकती है. इसलिए अगर ऐसी कोई कॉल आती है तो उसे इग्नोर करें क्योंकि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज ही नहीं है. तुरंत पुलिस से सम्पर्क करें, इसके अलावा साइबर क्राइम हेल्प लाइन 1930 पर सम्पर्क करके इसकी सूचना दे. पुलिस का ये भी कहना है कि ये ठग फर्जी पहचान से लिए गए मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा इन्टरनेट कालिंग के लिए वीपीएन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं ताकि आईपी एड्रेस और सर्वर की जानकारी को छुपाया जा सके.

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