32 साल पुराना इतिहास, दिल्ली की इन 12 सीटों में छिपा है जीत का राज

2025 में दिल्ली की गद्दी पर कौन विराजेगा। इसका जवाब 8 फरवरी को मिलेगा। यहां पर हम कुछ ऐसी सीटों के बारे में बताएंगे जिसे जीतने वाला दल सरकार बनाने में कामयाब रहा।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-01-14 04:58 GMT

Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली में अगली सरकार किसकी बनेगी फैसला जनता को करना है। दिल्ली के करीब डेढ़ करोड़ मतदाता राजनीतिक दलों की किस्मत तय करेंगे। वैसे तो सरकार में बने रहने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है। लेकिन 36 के आंकड़े तक पहुंचना आसान भी नहीं होता। 2013 में आप आदमी पार्टी दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन दो साल बाद हुए चुनाव में सर्वोत्तम प्रदर्शन करते हुए 67 सीटों पर कब्जा जमा लिया। इन सबके बीच दिल्ली की 12 विधानसभाओं का खास जिक्र करेंगे। ऐसा कहा जाता है कि जिस किसी भी दल ने इन 12 सीटों पर जीत दर्ज की वो दिल्ली में सरकार बनाने में कामयाब रहा। आप इसे मिथक मान सकते हैं। लेकिन मदन लाल खुराना से लेकर शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल तक यह मिथक सच्चाई में बदलती हुई नजर आई है।

दिल्ली की वो 12 सीटें जिसे वेल वेदर सीट यानी कि सत्तापक्ष का इशारा करते हैं वो कुछ इस तरह हैं, मॉडल टाउन, तिमारपुर, सदर बाजार, पटेल नगर, मादीपुर, मालवीय नगर,पटपड़गंज, सीमापुरी ऐसी विधानसभाएं हैं जो सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को जिताते रहे हैं. या इसे आप ऐसे भी कह सकते हैं कि जिस पार्टी को इन सीटों पर जीत मिली वो सरकार बनाने में कामयाब रहा। जानकार कहते हैं कि इसकी व्याख्या अलग अलग तरह से की जा सकती है। लेकिन कोई मिथक सच्चाई के करीब इस वजह से भी लगने लगता है अगर उसका दोहराव होता रहे। जिन सीटों की जिक्र किया गया उसका इतिहास 1993, 1998, 2003, 2008. 2013, 2015, 2020 में नहीं बदला है। 

2008 से विकासपुरी, नई दिल्ली और देवली विधानसभाएं अस्तित्व में आईं। इन सीटों पर जिस राजनीतिक दल को विजय मिली और सरकार बनाने में कामयाब रहा। 2008 में नई दिल्ली से शीला दीक्षित चुनाव जीतीं थीं। 2013 में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को चुनाव हरा दिया था।  2008 से विकासपुरी, नई दिल्ली और देवली विधानसभाएं अस्तित्व में आईं। इन सीटों पर जिस राजनीतिक दल को विजय मिली और सरकार बनाने में कामयाब रहा। 2008 में नई दिल्ली से शीला दीक्षित चुनाव जीतीं थीं। 2013 में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को चुनाव हरा दिया था। अगर बात 2015 और 2020 की करें तो आम आदमी पार्टी की सरकार बनी।

दिल्ली की राजनीतिक पर नजर रखने वाले कहते हैं कि दरअसल इसे आप सिर्फ उदाहरण के तौर पर चर्चा के लिए पेश कर सकते हैं। हकीकत यह है कि जो सियासी दल जब तक जनता की नब्ज समझने में कामयाब रहा, वो सत्ता पर काबिज रहा। किसी भी दल की जीत या हार के लिए सिर्फ कोई एक वजह जिम्मेदार हो पुख्ता तौर पर नहीं कह सकते। आप को याद होगा कि 1966 के बाद 1993 में फिर से दिल्ली में विधानसभाएं गठित हुईं और बीजेपी को पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला। मदन लाल खुरान को कमान संभालने का मौका मिला। लेकिन पांच साल के भीतर ही दो और चेहरो साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज को सीएम बनाया। लेकिन 1998 के चुनाव में बीजेपी चुनाव हार गई। उस हार के लिए प्याज की कीमतों को जिम्मदार ठहराया गया। लेकिन बीजेपी के अंदर का कलह भी जिम्मेदार था। 

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