टूटी सड़कें, खराब हवा और गंदा पानी, दिल्ली तेरी यही कहानी
दिल्ली का चुनावी मिजाज गरम है। वादे, रेवडियों की बारिश, तकदीर बदलने की तकरीर। वहीं टूटी सड़कें,खराब हवा और गंदा पानी कड़वा सच है। नेता हमलावर नहीं है। इन सबके बीच द फेडरल देश जमीनी हकीकत को पांच फरवरी तक हर एक दिन आपके सामने पेश करेगा।;
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली की फिजा राजनीतिक शख्सियतों के बयानों से गरम है। मौसम चुनावी,वादों और दावों की झड़ी लगी हुई है। चाहे आम आदमी पार्टी हो (Aam Aadmi Party) , बीजेपी (BJP) हो या कांग्रेस (Congress) एक दूसरे पर तीखे हमले। दिल्ली की दुर्दशा में इन तीनों दलों को अपनी ना जिम्मेदारी और ना ही भागीदारी दिख रही है। यानी कि फैसला आप करें कि दिल्ली की खराब हवा, गंदे पानी और टूटी सड़कों के लिए गुनहगार या जिम्मेदार कौन है। लड़ाई 70 में से कम से कम 36 सीट पाने की है लिहाजा रेवड़ियों की बारिश में कमी नहीं है। लेकिन बुनियादी दिक्कतों पर कोई भी दल साफ साफ तौर सीधे सवाल उठाता नजर नहीं आ रहा है। लेकिन द फेडरल देश की कोशिश है कि उन दिक्कतों को आपके सामने रखें जिस पर सियासी चेहरों ने चुप्पी साध रखी है।
दिल्ली की टूटी सड़कों (Delhi Broken Road), गंदा पानी (Delhi Dirty Water) और खराब हवा (Delhi Air Pollution) के लिए किसकी जिम्मेदारी अधिक बनती है। इसे समझने के लिए पहले यह देखना होगा कि किस दल की सरकार सबसे अधिक समय तक दिल्ली पर काबिज रही है। इसके लिए हमें दिल्ली के चुनावी इतिहास की तरफ चलना होगा। साल 1993 में दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly Election 1993) के चुनाव हुए और दिल्ली की गद्दी पर मदन लाल खुराना (Madan Lal Khurana) काबिज हुए। उन्हें दिल्ली की जनता को सेवा करने का मौका मिला। 1996 तक वो सीएम बने रहे। लेकिन 1996 में कमान साहिब सिंह वर्मा (Sahib Singh Verma) के हाथ में आई वो दो साल तक यानी 1998 में सीएम रहे। 1998 में ही सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) (दिल्ली की पहली महिला सीएम) को मौका मिला और उन्होंने दो महीने तक कमान संभाली।
1998 में दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ। लेकिन नतीजे बीजेपी के खिलाफ आए। दिल्ली में कांग्रेस की सरकार शीला दीक्षित की (Sheila dixit) बनी और और अगले 15 साल तक कांग्रेस को जनता मौका देती रही। लेकिन 2013 में तस्वीर बदली। दिल्ली की राजनीति में जन आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी की एंट्री हुई। जनता ने मौका दिया लेकिन पूरी तरह से नहीं। अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) 49 दिन के लिए सीएम बने। लेकिन 2015 से उनकी पार्टी सरकार में है।
अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि दिल्ली की सत्ता में बीजेपी को पांच साल, कांग्रेस को 15 साल और आप को 10 साल 49 दिन शासन करने का मौका मिला। लेकिन दिल्ली की मौजूदा तस्वीर ये है कि आप किसी भी कोने में जाइए सड़कें टूटी नजर आएंगी, साफ हवा के नाम पर एक्य्आई का स्तर बेहद खराब यानी कि साल के 365 दिन में कुछ ही दिन स्वच्छ हवा में दिल्ली वाले सांस लेते हैं। पानी का हाल ये कि टोंटियो से गंदा पानी आ रहा है। हालांकि आप संयोजक अरविंद केजरीवाल राजेंद्र नगर इलाके में गए थे और 24 घंटे स्वच्छ पानी देने वाली योजना का आगाज किया। लेकिन हकीकत कुछ और ही है।
अब दिल्ली की टूटी सड़कों, पार्कों का क्या हाल है इस पर दिल्ली के लोग कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल के फ्री ने सब कुछ खराब कर दिया है। हमें फ्री का कुछ नहीं चाहिए। फ्री का पानी लेकिन आप उसे पी नहीं सकते। फ्री का पानी पीने का बाद हाल यह हुआ कि पेट संबंधी दिक्कतें आ रही है। स्वच्छ हवा के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है। दीवाली के आते ही जिस तरह से स्मॉग कहर बरपाने लगता है उसके लिए किसी सबूत की क्या जरूरत है। दिल्ली की सरकार अपनी जिम्मेदारी छोड़ दूसरे राज्यों को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर देती है। जब आप रेवड़ियां इस तरह बांटेगे तो कोई कैसे उम्मीद कर सकता है कि सड़कें अच्छी बनेंगी, हवा स्वच्छ रहेगी, पीने के लिए साफ पानी मिलेगा। हकीकत तो यह है कि रेवड़ी बांटकर वोटों की खरीद की जा रही है। हालांकि आप इसके लिए सिर्फ अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। जिम्मेदार तो सभी दल हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने बेड़ा गर्क कर दिया है।