पिछले 27 साल में ऐसा रहा दिल्ली का दंगल, अब बदलाव या दोहराव ?

Delhi Assembly Election 2025 की तारीख भी अब सामने आ चुकी है। 2025 में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। उससे पहले 1998 से लेकर अब तक की तस्वीर पेश करेंगे।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-01-08 02:02 GMT
Delhi Assembly Election 2025:  दिल्ली में पिछले 10 साल से आम आदमी पार्टी की सरकार है। इस बीच 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव हुए। लेकिन इन दोनों चुनाव में आम आदमी पार्टी दम नहीं दिखा सकी। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में 67 और 2020 में 62 सीट जीत कर बीजेपी और कांग्रेस को संदेश दे दिया कि यहां हम आगे हैं। लेकिन सवाल ये कि 2025 में क्या दिल्ली बदलाव पर मुहर लगाएगी या दोहराव को पसंद करेगी। इन सबके बीच हम आपके सामने पिछले 27 साल में दिल्ली की सियासत में क्या कुछ हुआ उसे बताने की कोशिश करेंगे।
साल 1998 का था जब दिल्ली की गद्दी पर बीजेपी काबिज थी। दिल्ली की सूरत बदलने के लिए मेट्रो का ऐलान हो चुका था। दावा था कि ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में वर्ल्ड क्लास सुविधा देने जा रहे हैं। लेकिन प्याज की बढ़ती कीमतों में बीजेपी के रणनीतिकारों के आंखों में आंसू ला दिया और नतीजा यह हुआ कि दिल्ली की सत्ता से बीजेपी बाहर हो गई। दिल्ली की गद्दी पर कांग्रेस की शीला दीक्षित को बैठने का मौका मिला। शीला दीक्षित 15 साल तक शासन सत्ता के केंद्र में रहीं। 2003, 2008 के चुनाव को जीत यह बता दिया कि उनसे बेहतर तरीके से शासन दूसरा यानी बीजेपी नहीं कर सकती है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि 2004 से लेकर 2014 तक केंद्र की सत्ता में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार थी। लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि कांग्रेस के पतन के पीछे उसके कारनामे रहे हैं। एक ऐसा दल जिसकी पहचान उसके विरोधी दल भ्रष्टाचार के तौर पर करते हैं।

दिल्ली चुनाव 2025

  • 10 जनवरी को चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होगी
  • 17 जनवरी तक नामांकन का मौका
  • 18 जनवरी को नामांकन का परीक्षण
  • 20 जनवरी नाम वापसी की तारीख
  • 3 फरवरी प्रचार की आखिरी तारीख
  • 5 फरवरी को मतदान
  • 8 फरवरी को नतीजे

2008 से लेकर 2013 का कालखंड दिल्ली में कांग्रेस के लिए शुभ साबित नहीं हुआ। 2 जी, कोयला घोटाला ने जहां केंद्र सरकार की साख को कमजोर किया वहीं 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में दिल्ली भले ही चमकी हो लेकिन उसके पीछे भ्रष्टाचार के ऐसे मामले सामने आए जिसमें एक और शख्स अरविंद केजरीवाल को मौका नजर आया। उसने लोकपाल के जरिए भ्रष्टाचार के खात्मे का सपना जताया। जन आंदोलन से पार्टी गठित की और 2013 के चुनावी समर में कूद पड़ा। एक ऐसा दल जिसका कोई संगठन का आधार नहीं था। लेकिन दिल्ली की जनता ने उसकी झोली में 28 सीट दे सियासत की तस्वीर बदल दी। 

यहां हम आपको आंकड़ों के जरिए आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस की ताकत बताएंगे। 2020 के चुनाव में आम को 53.6 फीसद मत, बीजेपी को 38.5 फीसद मत और कांग्रेस को सिर्फ 4.3 फीसद वोट मिले। अगर सीटों की बात करें तो आप को 62 सीट, बीजेपी को 8 सीट और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल सकी। वहीं 2015 में 54.6 फीसद वोट शेयर और सीट 67, आप को 32.8 फीसद मत और सीट 3, कांग्रेस को 9.7 फीसद मत और एक भी सीट नहीं मिली। 2015 में आप के खाते में 67 सीट आईं जो अब तक का रिकॉर्ड है।

अगर आप 1993 से लेकर 2020 के आंकड़े को देखें तो बीजेपी को 49 सीट, कांग्रेस को 14 सीट, 1998 में कांग्रेस को 52, बीजेपी को 15, 2003 में कांग्रेस को 47 बीजेपी को 20, 2008 में कांग्रेस को 43, बीजेपी को 23 सीट, 2013 में बीजेपी को 31 सीट, आप को 28 सीट और कांग्रेस को 8 सीट मिली थी। 20215 में आप को 67 और बीजेपी को तीन कांग्रेस को शून्य सीट, 2020 में आप को 62 सीट, बीजेपी को 8 सीट, कांग्रेस को शून्य सी। यानी 1993 से 2020 के चुनावी इतिहास में आम आदमी पार्टी ने 2015 में रिकॉर्ड स्थापित कर दिया। 2010 से 2013 के बीच घोटालों की मार से कांग्रेसी नेता परेशान थे। लेकिन 2013 के चुनाव में 8 सीट हासिल करने में कामयाब रहे, हालांकि 2015 और 2020 में तस्वीर पूरी तरह बदल गई।

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