दिल्ली दंगल में प्रवासी वोटर्स क्यों हैं खास, आंकड़े खुद कर रहे इशारा

Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रवासी मतदाताओं की भूमिका अहम है। इसका अर्थ ये कि पूर्वांचल और उत्तराखंड के वोटर्स खास हो जाते हैं।;

By :  Lalit Rai
Update: 2025-01-09 05:09 GMT

Delhi Election 2025: दिल्ली विधानसभा का चुनाव रोचक होता जा रहा है। तारीखों के ऐलान के बाद तीनों सियाली दल यानी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party), बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) ने एक दूसरे के खिलाफ मोर्च खोल रखा है। खास बात ये कि तीनों दल एक दूसरे को बी टीम बता रहे हैं। पोस्टर के जरिए, सोशल मीडिया के जरिए, एआई टूल के जरिए वादों-दावों की हकीकत और फसाने को बताया जा रहा है। यानी कि वोटर्स के दिल और दिमाग को अपने पक्ष में करने की कोशिश ताकि पांच फरवरी को ईवीएम पर वोटर्स की उंगलियां उनके चुनाव चिन्ह को दबा सकें। इस तरह से उनके विधानसभा जाने की उम्मीदों को झटका ना लगे। ऐसे में दिल्ली की सियासत में किस समाज की भूमिका अहम है उसे समझने की कोशिश करेंगे।

दिल्ली अपने आप में मिनी भारत है यहां हर राज्य के लोग रहते हैं इसमें से ज्यादातर लोग मतदाता (Delhi Voters) भी हो चुके हैं। यहां की सियासत में खातौर से पंजाबी, सिख, पूर्वांचली और उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले वोटर्स पर सभी सियासी दलों की नजर है। राजनीतिक दलों ने जातीय और क्षेत्रीय आंकड़ों को पेश किया है। इस आंकड़े के हिसाब से अनुसूचित जाति करीह 17.50 फीसद, मुस्लिम 10 फीसद, वैश्य 8 फीसद, जाट 7.50 फीसद, ब्राह्मण 7 फीसद, गु्र्जर करीब 4.50 फीसद, यादव 2.50 फीसद और राजपूत करीब 1.50 फीसद हैं।

पूर्वांंचल- उत्तराखंड का जोर

अगर स्थानीय समूह की बात करें तो पूर्वांचली आबादी 20 से 25 फीसद, पंजाबी-सिख चार से पांच फीसद,उत्तराखंडी करीब 4 से पांच फीसद, और अन्य 10 फीसद हैं। बुराड़ी, किराड़ी, उत्तम नगर, बादली, संगम विहार, करावल नगर, गोकलपुर, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, बदरपुर, राजेंद्र नगर, देवली, मॉडल टाउन, पटपड़गंज, विकासपुरी और सीमापुरी में पूर्वांचल के मतदाताओं की भूमिका अहम है।पूर्वांचली बहुल विधानसभाओं के बाद उत्तराखंड के वोटर्स की आरके पुरम, बुराड़ी, दिल्ली कैंट, करावल नगर, पटपड़गंज,लक्ष्मी नगर पालम और द्वारका हैं।

10 फीसद पंजाबी-सिख वोटर्स

पूर्वांचली और उत्तराखंड के बाद पंजाबी और सिख वोटर्स की भूमिका अहम है। करीब 10 सीटों जैसे राजेंद्र नगर, राजौरी गार्डेन, तिलक नगर, पटेल नगर, मोती नगर, शाहदरा, गांधीनगर, ग्रेटर कैलाश, तिलक नगर, गांधी नगर जनकपुरी में खास जोर है।

जाट-गुर्जर की यह है गणित

दिल्ली की सियासत में जाट और गुर्जर मतदाताओं की भूमिका कमतर नहीं माना जा सकता है। लेकिन इस समाज की खासियत यह रही है कि इस समाज का वोटर अपने उम्मीदवार को देखकर वोट करता रहा है,यानी कि इनकी नजर में सियासी दल की भूमिका कम रहती है। अगर आप सज्जन कुमार, साहिब सिंह वर्मा, प्रवेश वर्मा, तारीफ सिंह की सियासत को देखें तो इस समाज के रोल को आप आसानी से समझ सकते हैं। 

प्रवासियों को नहीं कर सकते नजरंदाज

दिल्ली में अलग अलग राज्य के मतदाताओं पर सियासी जानकार कहते हैं दिल्ली तो मिनी इंडिया है लिहाजा कमोबेश पर आप सभी राज्यों के मतदाताओं को पाएंगे। लेकिन पूर्वांचल और उत्तराखंड के लोगों अधिक संख्या में यहां आए। दशकों तक यहां रहे और इस मिट्टी का हिस्सा बन गए। अब चुनावी लड़ाई में जहां हर एक वोट कीमती है तो कोई भी राजनीतिक दल इन्हें कैसे इनकार कर सकता है, लिहाजा सियासत के केंद्र में वोटर्स का यह वर्ग है। अब चुनावी नैया पार कराने के लिए सियासी दल इन वोटर्स (Delhi Assembly Voters) के घरों का चक्कर लगाने के लिए बाध्य हो चुके हैं। 

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