भिखारी की बेटी ने बदली अपनी किस्मत, पहली बार रमाबाई ने अपने आदिवासी समुदाय का नाम किया रोशन

Success Story:16 साल की लड़की ने अपने समुदाय का का नाम रोशल किया है. भीख मांग कर रमाबाई चव्हाण ने 10वीं की परीक्षा को पास करके इतिहास रच दिया है.

Update: 2024-06-27 10:45 GMT

गर्मी, बारिश और सर्दी में सड़कों पर भीख मांगने वाले इस परिवार को कहां पता होगा कि मेरे घर में पल बढ़ रही बेटी रमाबाई चव्हाण किसी दिन अपने परिवार वालों का नाम रोशल करेगी. न सर पर छत और ना ही कोई काम- धंधा दो वक्त की रोटी खाने के लिए भी ये परिवार दर- दर भटकता था. ये पूरा परिवार भीख मांगकर गुजारा करता था. इन्ही हालातों में भिखारी की बेटी रमाबाई चव्हाण ने अपनी जिंदगी, अपने परिवार को इस गरीबी से निकालने और अपने समुदाय का नाम रोशन की जिद पकड़ ली.

ये सक्सेस स्टोरी आदिवासी नाथजोगी समुदाय से रमाबाई चव्हाण की है. रमाबाई चव्हाण का परिवार महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त विदर्भ इलाके के भंडारा जिले रहता है. 16 साल की रमाबाई चव्हाण ने अपने समुदाय के बारे में बिना सोचे समझे पढ़ने लिखने का फैसला किया. जब उसने अपने परिवार में बताया कि वो 10वीं की परीक्षा देना चाहती है को उसके परिवार वालों के पास उतने पैसे नहीं थे की वो उस परीक्षा के लिए किताबें भी खरीद पाए. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रमाबाई चव्हाण का दिमाग बहुत तेज था, जो उसे स्कूल में पढाया जाता वो उसे दिमाग में याद कर लेती थी.

परीक्षा जब देने के बारी आई तो रमाबाई काफी डर गई थी. इसी डर को दूर करने के लिए उसके एक टीचर ने उसे हिम्मत बंधाई और कहा, बिना डरे तुम इसकी परीक्षा दो. अगर अपने समुदाय में कुछ बदलाव लाना चाहती हूं तो इस परिक्षा को तुम्हे पास करना होगा. ये परीक्षा 10वीं की नहीं बल्कि तुम्हारे जीवन को बदल के रख देने वाली परीक्षा है. रमाबाई ने 10वीं की बिना डरे परीक्षा दी और पास हो गई. साथ ही अपने समुदाय में पहली 10वीं परीक्षा पास करने वाली लड़की बनी.

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