दिल्ली यूनिवर्सिटी में चौथे वर्ष की रिसर्च योजना फेल? छात्र-शिक्षक दोनों परेशान
चौथे वर्ष की तैयारी, वर्कलोड में सुपरविजन की गिनती और छात्रों पर बढ़ते अकादमिक दबाव जैसे कई अहम सवाल अब भी बने हुए हैं, जिससे DU का यह प्रयोग फिलहाल गंभीर संकट में नजर आ रहा है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के स्नातक पाठ्यक्रम के चौथे वर्ष को रिसर्च-केंद्रित बनाने का महत्वाकांक्षी प्रयास शुरुआती दौर में ही लड़खड़ाता नजर आ रहा है। विभिन्न कॉलेजों के शिक्षक और छात्र कम उपस्थिति, अस्थिर दिशानिर्देश, अव्यावहारिक अपेक्षाएं और संस्थागत गंभीरता की कमी की ओर इशारा कर रहे हैं।
चौथे वर्ष में कम हाजिरी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत लागू UGCF 2022 के अंतर्गत शुरू किए गए वैकल्पिक चौथे वर्ष को परास्नातक स्तर की रिसर्च की ओर प्रवेश-द्वार बताया गया था, जिसमें डिसर्टेशन अनिवार्य है। लेकिन पहले पूर्ण बैच के आगे बढ़ने के साथ ही कई कॉलेजों में यह सामने आया है कि चौथे वर्ष में नामांकन लेने वाले अनेक छात्र कक्षाओं में नियमित नहीं आ रहे और न ही डिसर्टेशन में गंभीर भागीदारी दिखा रहे हैं। देशबंधु कॉलेज के राजनीति विज्ञान के शिक्षक बिस्वजीत मोहंती ने कहा कि ऐसे कई छात्र हैं जिन्होंने चौथे वर्ष में दाखिला लिया है, लेकिन वे डिसर्टेशन लिखने के लिए आने को तैयार नहीं हैं। यह समस्या सिर्फ हमारे कॉलेज की नहीं, बल्कि कुछ कैंपस और महिला कॉलेजों को छोड़कर लगभग सभी कॉलेजों में दिख रही है।
मूल्यांकन प्रणाली की कड़ी आलोचना
दयाल सिंह कॉलेज में स्थिति और भी चिंताजनक बताई जा रही है। अंग्रेज़ी के शिक्षक सचिन निर्मला नारायण के अनुसार, चौथे वर्ष में नामांकित 36 छात्रों में से केवल 10 छात्र ही कक्षाओं में आ रहे हैं। उन्होंने कार्यक्रम की संरचना, खासकर मूल्यांकन डिजाइन पर तीखी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि सातवें और आठवें दोनों सेमेस्टर में वाइवा रखने का प्रावधान पूरी तरह अव्यवहारिक है। NEP लागू करने में DU अकादमिक ढांचे पर नहीं, सिर्फ औपचारिकताओं पर ध्यान दे रहा है।
डिसर्टेशन से पहले वाइवा पर सवाल
नारायण ने कहा कि सातवां सेमेस्टर लगभग खत्म होने को है, लेकिन छात्र वाइवा के लिए तैयार नहीं हैं। वाइवा तो डिसर्टेशन के बाद होना चाहिए। उससे पहले कराने का तर्क क्या है? उन्होंने चेताया कि कम सहभागिता के कारण AI से बनी या घटिया गुणवत्ता की डिसर्टेशन सामने आ सकती हैं।
स्नातक छात्रों से अव्यावहारिक अपेक्षाएं
शिक्षकों का कहना है कि गलती छात्रों की नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय प्रशासन की है। मोहंती के अनुसार, सातवें सेमेस्टर में छात्रों से कोर्सवर्क, मेथडोलॉजी और लिटरेचर रिव्यू पूरा करने की उम्मीद की जाती है और आठवें सेमेस्टर में 120 पन्नों तक की डिसर्टेशन लिखने को कहा जाता है। उन्होंने सवाल उठाया कि छह महीने में 120 पेज की डिसर्टेशन और 50 किताबें पढ़ना, क्या किसी स्नातक छात्र के लिए संभव है? उनका कहना है कि छात्रों को रिसर्च के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण ही नहीं दिया जा रहा।
रिसर्च सुपरविजन को वर्कलोड में नहीं गिना
कमला नेहरू कॉलेज की अर्थशास्त्र की शिक्षिका और अकादमिक काउंसिल सदस्य मोनामी बसु ने बताया कि अंडरग्रेजुएट रिसर्च की देखरेख को आधिकारिक वर्कलोड में शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि हमारे टाइमटेबल में रिसर्च छात्रों के लिए कोई तय समय नहीं है। यह मान लिया जाता है कि हम इसे खाली समय में कर लेंगे। पूरा शिक्षण और प्रशासनिक बोझ होने के कारण गंभीर सुपरविजन लगभग असंभव हो गया है। साथ ही, बार-बार बदलते दिशानिर्देशों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं।
हर हफ्ते बदलते नियम
बसु ने बताया कि रिसर्च से जुड़े दिशा-निर्देश लगभग हर हफ्ते जारी हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले छात्रों से रिसर्च प्रगति का 30 मिनट का वीडियो मांगा गया था, जिसे विरोध के बाद वापस लिया गया। इससे छात्र बेहद भ्रमित हैं।
छात्रों की शिकायत
श्याम लाल कॉलेज के चौथे वर्ष के एक अर्थशास्त्र छात्र ने बताया कि उन्हें डिसर्टेशन का विषय चुनने दिया गया, लेकिन सुपरवाइज़र चुनने का विकल्प नहीं मिला। उन्होंने कहा कि वीडियो और फोटो जैसी औपचारिकताएं सिर्फ इसलिए कराई गईं। क्योंकि यूनिवर्सिटी को खुद नहीं पता कि यह प्रक्रिया कैसे चलानी है। मिरांडा हाउस की चौथे वर्ष की एक अंग्रेज़ी छात्रा ने कहा कि कोर पेपर, जनरल इलेक्टिव और रिसर्च—सब कुछ एक साथ होने से कक्षाओं में आना मुश्किल हो गया है। हमें कहा गया था कि यह हमारा रिसर्च ईयर होगा, लेकिन यह तो किसी और साल जैसा ही है, बस रिसर्च का अतिरिक्त बोझ जोड़ दिया गया है।
उदासीनता पर सवाल
शिक्षकों का मानना है कि छात्रों की उदासीनता संस्थागत विफलता का नतीजा है। बसु ने कहा कि जब प्रशासन खुद गंभीर नहीं है तो छात्रों से गंभीरता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? इस मुद्दे पर DU की डीन (अकादमिक) के. रत्नाबली ने कहा कि सातवें और आठवें सेमेस्टर के अलग-अलग लर्निंग आउटकम्स के मूल्यांकन के लिए दोनों में वाइवा तय किया गया है। हालांकि, उन्होंने भारी कोर्सवर्क और रिसर्च के बीच संतुलन की शिकायतों पर सीधे जवाब नहीं दिया।
अभी भी अनसुलझे सवाल
चौथे वर्ष की तैयारी, वर्कलोड में सुपरविजन की गिनती और छात्रों पर बढ़ते अकादमिक दबाव जैसे कई अहम सवाल अब भी बने हुए हैं, जिससे DU का यह प्रयोग फिलहाल गंभीर संकट में नजर आ रहा है।