HECI बिल: विरोध में शिक्षक और छात्र, गैर BJP सांसदों से समर्थन की मांग

HECI बिल 2025 विंटर सेशन 2025 में पेश होने वाला है। यह भारत की उच्च शिक्षा नियामक संरचना को पूरी तरह बदलने का प्रस्ताव करता है।

Update: 2025-12-10 06:14 GMT
HECI के खिलाफ कोऑर्डिनेशन कमिटी के सदस्य DMK MP कनिमोझी (बाएं से 5वें) के साथ।
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भारत में हायर एजुकेशन सिस्टम में बदलाव लाने वाला हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) बिल 2025 संसद में पेश होने जा रहा है। इस बिल के खिलाफ कोऑर्डिनेशन कमेटी अगेंस्ट HECI सांसदों से मिलकर उन्हें बिल का विरोध करने या कम से कम इसे Standing Committee को भेजने की मांग कर रही है। उनका कहना है कि सरकार बिना सार्वजनिक विचार-विमर्श के उच्च शिक्षा में व्यापक बदलाव के लिए जल्दबाजी कर रही है।

बता दें कि यह कमेटी 30 से अधिक शिक्षक और छात्र संगठनों का umbrella संगठन है। कमेटी अब तक DMK सांसद कनिमोझी, CPI(M) सांसद जॉन ब्रिटास, RJD सांसद मनोज कुमार झा, CPI(ML) लिबरेशन सांसद दीपंकर भट्टाचार्य और CPI सांसद पी संतोश कुमार से मिली है। इसके बाद अन्य विपक्षी दलों के सांसदों को भी रैली और पिटीशन के जरिए आश्वस्त किया जाएगा।

विरोध क्यों?

HECI बिल 2025 विंटर सेशन 2025 में पेश होने वाला है। यह भारत की उच्च शिक्षा नियामक संरचना को पूरी तरह बदलने का प्रस्ताव करता है। बिल के अनुसार, UGC एक्ट 1956, AICTE एक्ट 1987 और NCTE एक्ट 1993 को निरस्त किया जाएगा। हालांकि, बिल का ड्राफ्ट अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, जिससे शिक्षक और छात्र संगठनों का कहना है कि यह बिना पारदर्शिता और परामर्श के धकेला जा रहा है।

मुख्य चिंताएं

वित्तीय शक्ति का केंद्रीकरण: बिल के अनुसार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की वित्तीय शक्तियां शिक्षा मंत्रालय या किसी विशेष संस्था को दी जाएंगी। इससे सार्वजनिक निधि राजनीतिक या वैचारिक वफादारी के आधार पर खर्च की जा सकती है।

नियामक संरचना में केंद्रीकरण: HECI में 12 में से 10 सदस्य केंद्रीय सरकार के अधिकारी होंगे। केवल 2 शिक्षक प्रतिनिधि होंगे और कोई भी सामाजिक रूप से हाशिए पर समूह जैसे SC, ST, OBC, महिलाएं, ट्रांसजेंडर या दिव्यांग प्रतिनिधित्व नहीं पाएंगे।

राज्यों की भूमिका का नुकसान: बिल लागू होने पर केंद्र उच्च शिक्षा पर पूर्ण नियंत्रण रखेगा, जबकि राज्यों की संवैधानिक भूमिका कमजोर होगी।

ड्राफ्ट 2018 के आधार पर विशेषज्ञों का कहना है कि बिल संघीयता के सिद्धांत के लिए खतरा है। राज्य विश्वविद्यालयों और वित्तीय निर्णयों में राज्यों को शामिल न करना उनकी संवैधानिक भूमिका को कमजोर करता है।

संभावित प्रभाव

बिल के लागू होने पर HECI संस्थानों को अधिकृत करने, उनका ग्रेड तय करने या बंद करने का अधिकार रखेगा। इससे निगरानी, शुल्क वृद्धि, रोजगार असुरक्षा और निजीकरण बढ़ सकता है। विशेष रूप से NEP 2020 के तहत पहले से संघर्ष कर रही विश्वविद्यालयों के लिए यह और भी जोखिमपूर्ण हो सकता है।

सर्वोच्च प्राथमिकता

शिक्षक और छात्र संगठनों का कहना है कि शिक्षा concurrent सूची का विषय है। इसलिए इस तरह का बड़ा सुधार सार्वजनिक बहस और संघीय परामर्श के बाद ही होना चाहिए। सांसद जॉन ब्रिटास ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर कहा कि बिल को तुरंत पेश न किया जाए और इसे Joint Parliamentary Committee (JPC) के पास भेजा जाए, ताकि सभी हितधारकों को अपनी राय रखने का अवसर मिले। कमेटी ने सांसदों से अपील की है कि वे संसद में इस बिल के खिलाफ बोलें और इसे स्टैंडिंग कमिटी को भेजने की मांग करें। उनका कहना है कि बिना व्यापक परामर्श के यह केंद्रीयकृत सुधार भारतीय उच्च शिक्षा के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकता है।

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