डबल हेलिक्स के खोजकर्ता वॉटसन नहीं रहे, यादें और विवाद दोनों बाकी
डीएनए की डबल हेलिक्स संरचना खोजने वाले नोबेल विजेता जेम्स वॉटसन का निधन हो गया। उनकी महान वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ उनके विवादित नस्लवादी व स्त्री-विरोधी विचार आज भी बहस का विषय हैं।
अमेरिका में जन्मे नोबेल पुरस्कार विजेता जेम्स ड्यूई वॉटसन का निधन 6 नवंबर को हुआ। वे अपनी 100वीं वर्षगांठ से मात्र तीन वर्ष दूर थे। 1962 में फ्रांसिस क्रिक और मॉरिस विल्किन्स के साथ फिज़ियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वॉटसन उन दुर्लभ वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं, जिनकी प्रतिभा असाधारण थी, लेकिन जिनकी निजी मान्यताएँ कई बार बेहद त्रुटिपूर्ण साबित हुईं।
डीएनए (डिऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) की ‘डबल हेलिक्स संरचना’ की खोज ने जीवन के मूल सिद्धांतों को समझने की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया। लेकिन वॉटसन की साफ-सुथरी, बिना लाग-लपेट वाली व्यक्तित्व शैली और कई बार गैर-तर्कसंगत राय ने उन्हें उतना ही विवादस्पद बनाया। उनके नस्लवादी और स्त्री-विरोधी विचार उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत पर छाया बने हुए हैं। यहां तक कि कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी, जिसे उन्होंने दशकों तक संवारा, ने भी उनके निधन पर जारी नोट में इन विवादों का उल्लेख किया।
जीन और जीवन का रहस्य: महान खोज
वॉटसन और क्रिक ने 25 अप्रैल 1953 को नेचर पत्रिका में डीएनए की डबल हेलिक्स संरचना प्रस्तुत की—दो उल्टी दिशा में चलने वाली कुण्डलित श्रृंखलाएँ, जो आपस में घूमती हुई एक सर्पिल बनाती हैं। अडेनिन और थाइमिन तथा साइटोसिन और गुआनिन के बीच सटीक बेस-पेयरिंग के सिद्धांत ने यह स्पष्ट किया कि डीएनए आनुवंशिक जानकारी को कैसे संरक्षित और कोशिकीय प्रक्रियाओं में सटीक रूप से हस्तांतरित करता है। इस खोज ने आनुवंशिकी, फॉरेंसिक, जैव-प्रौद्योगिकी, जीन थेरेपी और आधुनिक चिकित्सा में नए युग की शुरुआत की।
1968 में प्रकाशित उनकी पुस्तक द डबल हेलिक्स ने इस खोज की रोमांचक कहानी को बेहद व्यक्तिगत और मनोरंजक शैली में दुनिया के सामने रखा।
वॉटसन का वैज्ञानिक सफर और योगदान
हार्वर्ड में काम करते हुए उन्होंने 1965 में मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ऑफ द जीन नामक प्रसिद्ध पाठ्यपुस्तक लिखी, जिसने आणविक जीवविज्ञान की पढ़ाई को नई दिशा दी। वे कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी के पुनरुत्थान में प्रमुख भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक थे—1968 से 1974 तक निदेशक और 2004 से 2007 तक चांसलर रहे, जब विवादित टिप्पणियों के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
मानव जीनोम परियोजना (HGP) में भी उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। वे जीनोमिक डेटा को सार्वजनिक रूप से साझा करने के प्रबल समर्थक थे।
एक वैज्ञानिक का निर्माण: आरंभिक जीवन
6 अप्रैल 1928 को शिकागो में जन्मे वॉटसन बचपन से ही प्राणीशास्त्र और प्राकृतिक इतिहास में रुचि रखते थे। एर्विन श्रॉडिंगर की प्रसिद्ध पुस्तक व्हाट इज़ लाइफ? पढ़ने के बाद वे आनुवंशिकी की ओर आकर्षित हुए। 1950 में उन्होंने इंडियाना विश्वविद्यालय से पीएचडी की, जहाँ उन्होंने नोबेल विजेता सल्वाडोर लूरिया के साथ बैक्टीरियोफेज पर शोध किया।
डीएनए संरचना की दौड़: क्रिक, फ्रैंकलिन और विल्किन्स
1951 में नेपल्स में विल्किन्स के व्याख्यान को सुनकर वॉटसन डीएनए संरचना पर काम करने को प्रेरित हुए और कैम्ब्रिज के मेडिकल रिसर्च काउंसिल (MRC) के प्रयोगशाला पहुंचे। वहीं उनकी मुलाकात फ्रांसिस क्रिक से हुई, जो बाद में उनके सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक साझेदार बने।
रोसालिंड फ्रैंकलिन की एक्स-रे संरचना संबंधी उपलब्धियों ने डीएनए मॉडल को सही दिशा दी। हालांकि उनकी ‘फोटोग्राफ 51’ नामक प्रसिद्ध इमेज को उनकी अनुमति के बिना विल्किन्स ने वॉटसन को दिखाया, जिसने निर्णायक संकेत प्रदान किए।
28 फरवरी 1953 को क्रिक ने कैम्ब्रिज के ईगल पब में घोषणा की “हमने जीवन का रहस्य खोज लिया है। अप्रैल 1953 में नेचर में डीएनए पर तीन महत्वपूर्ण शोधपत्र प्रकाशित हुए—वॉटसन-क्रिक मॉडल, विल्किन्स का विश्लेषण, और फ्रैंकलिन का प्रयोगात्मक डेटा। यह खोज आधुनिक आणविक जीवविज्ञान की नींव बनी।
विवाद जो पीछा नहीं छोड़ते
वॉटसन की वैज्ञानिक प्रतिभा जितनी महान थी, उतनी ही समस्याग्रस्त उनकी व्यक्तिगत विचारधारा थी। रोसालिंड फ्रैंकलिन को लेकर उनका अपमानजनक वर्णन। द डबल हेलिक्स में उन्होंने फ्रैंकलिन के रूप-रंग और स्वभाव पर अपमानजनक टिप्पणी की, जिसे व्यापक रूप से स्त्री-विरोधी माना गया।
नस्ल और बुद्धिमत्ता पर विवादित बयान
उन्होंने कई बार यह दावा किया कि नस्ल के आधार पर बुद्धिमत्ता अलग-अलग होती है—जिस पर विश्वभर में आलोचना हुई।
अन्य विवादित टिप्पणियाँ
मोटे लोगों को नौकरी न देने की बात (2000)
"मूर्खता एक बीमारी है जिसे ठीक किया जाना चाहिए"
सुंदरता को जीन इंजीनियरिंग से संभव बनाने की वकालत (2003)
इन सब कारणों से उन्हें अनेक पदों और सम्मान से हाथ धोना पड़ा। 2019 में उनकी ‘एमेरिटस’ स्थिति भी वापस ले ली गई।
निराशा और पश्चाताप का दौर
वैज्ञानिक समुदाय से अलग-थलग महसूस करते हुए, 2014 में उन्होंने अपनी नोबेल पदक और संबंधित दस्तावेजों की नीलामी कर दी। उन्होंने कहा कि यह वैज्ञानिक शोध के लिए धन दान करने और अपनी छवि सुधारने का प्रयास था।
विरासत: चमक और अंधेरे का मिश्रण
नोबेल विजेता वेन्कट रामकृष्णन सहित कई वैज्ञानिक मानते हैं कि वॉटसन का योगदान आधुनिक आणविक जीवविज्ञान की नींव है और आने वाली पीढ़ियों को दिशा देता रहेगा।लेकिन उनके नस्लवादी और लैंगिक पूर्वाग्रह यह भी याद दिलाते हैं कि विज्ञान सत्य की खोज का क्षेत्र है, परंतु वैज्ञानिक स्वयं मनुष्य होते हैं—अपनी प्रतिभा और अपने दोषों के साथ।
वॉटसन की खोजों ने जीवविज्ञान और चिकित्सा की दुनिया बदल दी, लेकिन उनकी विरासत यह चेतावनी भी देती है कि विज्ञान में नैतिकता, समावेशिता और मानवीय मूल्यों का महत्व सर्वोपरि है।