वाम मोर्चा ने फिर जीता JNU, ABVP का सूपड़ा साफ
चारों पदों पर जीत के साथ वाम एकता ने JNU में अपना पुराना प्रभाव फिर से स्थापित कर लिया है। यह नतीजे न केवल छात्र राजनीति में वैचारिक संघर्ष की दिशा तय करते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि छात्रों का झुकाव अब फिर से संगठनात्मक एकता और सामाजिक न्याय के मुद्दों की ओर बढ़ रहा है।
JNUSU Election Results: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (JNUSU) चुनाव में वामपंथी गठबंधन ने शानदार वापसी करते हुए चारों केंद्रीय पदों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव पर कब्जा कर लिया। यह मतदान 4 नवंबर को हुआ था, जिसमें कुल 5,802 वोट डाले गए। इस बार ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) ने फिर से गठबंधन किया और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (DSF) के साथ मिलकर निर्णायक बहुमत हासिल किया।
करीबी मुकाबले में ABVP पिछड़ी
गुरुवार रात घोषित नतीजों में ABVP सभी पदों पर दूसरे स्थान पर रही। सुबह और दोपहर तक कई दौरों में वह कुछ सीटों पर आगे भी रही। महासचिव पद पर मुकाबला रोमांचक रहा। ABVP के राजेश्वर कांत दुबे अंतिम चरण तक आगे थे। लेकिन DSF के सुनील यादव ने अंत में बढ़त बनाकर 2,005 वोट हासिल किए, जबकि दुबे को 1,901 वोट मिले। संयुक्त सचिव पद पर भी कड़ा संघर्ष देखने को मिला। ABVP के अनुज दमारा ने शुरुआती बढ़त बनाई, लेकिन AISA के दानिश अली ने 2,083 वोट पाकर निर्णायक जीत दर्ज की। दमारा को 1,797 वोट मिले। अप्रैल में हुए पिछले चुनाव में ABVP ने यही पद 85 वोटों से जीता था।
AISA की अदिति मिश्रा बनीं अध्यक्ष
AISA की अदिति मिश्रा ने अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की, उन्हें 1,937 वोट मिले। ABVP के विकास पटेल को 1,488 वोट मिले। प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन (PSA) की उम्मीदवार शिंदे विजयलक्ष्मी व्यंकट राव ने 1,276 वोट हासिल कर तीसरा स्थान पाया। मिश्रा ने कहा कि निचले दो पदों पर कम अंतर से हुए नतीजे ABVP की ताकत नहीं, बल्कि “प्रगतिशील वोटों” के बिखराव को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि ABVP को आधा जनादेश नहीं मिला। कई प्रगतिशील संगठनों ने भी उम्मीदवार उतारे, जिससे वोट बंटे और मुकाबला करीबी रहा।
उपाध्यक्ष पद पर सबसे बड़ी जीत
वाम गठबंधन की सबसे बड़ी जीत उपाध्यक्ष पद पर दर्ज हुई, जहां SFI की के. गोपिका बाबू ने 3,101 वोट पाकर ABVP की तान्या कुमारी (1,787 वोट) को 1,314 वोटों के भारी अंतर से हराया। गोपिका बाबू ने मतदान के दिन कहा था कि ABVP के पास किसी भी सीट पर जीत की संभावना नहीं है। छात्र जानते हैं कि हिंसा और महिला-विरोधी सोच RSS और ABVP की पहचान है। हमें ऐसा छात्रसंघ चाहिए जो निजीकरण और कॉर्पोरेट दबाव के खिलाफ डट सके।
वाम ने किला मजबूत किया
पिछली बार ABVP ने संयुक्त सचिव पद के साथ 20 पार्षद सीटें जीती थीं। इस बार यह संख्या घटकर 14 रह गई। दिलचस्प बात यह रही कि स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज (SSS), जहां ABVP ने 25 साल बाद दो सीटें जीती थीं, इस बार निर्णायक साबित हुआ। SSS के अंतिम 1,400 वोटों ने वामपंथी उम्मीदवारों के पक्ष में बाजी पलट दी।
गठबंधन ने बनाया फर्क
ABVP जेएनयू मीडिया संयोजक विजय जायसवाल ने कहा कि हम जानते थे कि मुकाबला कड़ा रहेगा। वाम संगठनों ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा, सिर्फ हमें हराने के लिए। फिर भी हम दो पदों पर कड़ी टक्कर देने में सफल रहे और JNU में सबसे बड़ा एकल संगठन बने रहे।
वाम गठबंधन का ऐलान
नवनिर्वाचित JNUSU अध्यक्ष अदिति मिश्रा ने कहा कि छात्रों ने एकता की मांग की थी क्योंकि वे हिंसक राजनीति (ABVP) नहीं चाहते। अब हमारा ध्यान GSCASH (Gender Sensitisation Committee Against Sexual Harassment) की पुनर्स्थापना, मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृत्ति बढ़ाने, बेहतर लाइब्रेरी व लैब सुविधाओं, JSTOR जैसी डिजिटल पहुंच और JNU की अपनी प्रवेश परीक्षा बहाल करने पर होगा।